कब तक लहुलुहान होती रहेगी खाकी
ऐसे ही बदमाशों का निशाना बनती रही पुलिस तो मुश्किल में होगी कानून-व्यवस्था
ए अहमद सौदागर
लखनऊ।
2 मार्च 2013 को प्रतापगढ़ जिले के बली पुर में सीओ कुंडा जियाउल हक की हत्या।
17 मई को चित्रकूट में बदमाशों को पकड़ने गए दिल्ली के दरोगा की गोली मारकर हत्या।
-28 मई को आगरा में दबिश देने गए मथुरा एसओजी के सिपाही सतीश की हत्या।
– 5 जून को सहारनपुर में सिपाही राहुल की हत्या।
– 9 जून को बरेली में दबिश के दौरान सिपाही अनिरुद्ध की हत्या।
– 21 जुलाई को बागपत जिले की बड़ौत चौकी में घुसकर सिपाही विक्रम भाटी की हत्या।
– एक अगस्त को फिरोजाबाद जिले में आगरा- कानपुर हाईवे पर बदमाशों को पकड़ने गए सिपाही रमाकांत की गोली मारकर हत्या।
तीन सितंबर को गाजियाबाद के एसपी सिटी के यहां तैनात सिपाही कृष्णपाल की बड़ौत में गोली मारकर हत्या।
आठ सितंबर को बाराबंकी जिले के सतरिख थाना क्षेत्र सिपाही कमल सिंह का शव रेलवे ट्रैक से बरामद।
– 14 जून को इलाहाबाद में लुटेरों का पीछा कर रहे बारा थानाध्यक्ष रहे राजेंद्र प्रसाद दि्वेदी की लुटेरों ने हत्या की।
– 10 सितंबर को लखीमपुर-खीरी कचहरी में सिपाही विक्रम प्रताप सिंह की हत्या।
-23 नवंबर 2013 को वाराणसी में डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की गोली मारकर हत्या।
– तीन जुलाई 2020, दिन गुरुवार और रात दस बजे कानपुर देहात जिले के बिकरु गांव में दबिश देने गए आठ पुलिसकर्मियों को 60 मुकदमा वाला हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ताबड़तोड़ फायरिंग कर मौत की नींद सुला दिया।
दिल को झकझोर देने वाली घटना को लोग-बाग अभी भुला भी नहीं पाए थे कि 9 फरवरी 2021 को कासगंज के सिढपुरा में मंगलवार की रात दबिश के दौरान शराब माफिया दरोगा अशोक कुमार व सिपाही देवेन्द्र को नंगला भिकारी जंगल में बंधक बनाकर पीट-पीटकर अधमरा कर दिया, जिससे सिपाही देवेन्द्र की मौत हो गई, जबकि दरोगा अशोक कुमार अस्पताल में जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है।
– सवाल है कि जिस खाकी के खौफ से बड़े-बड़े खूंखार अपराधियों के माथे पर पसीने छूट जाते थे, लेकिन अब वही खाकी वर्दी वाले संकट में हैं।
कुछ साल पहले से लेकर अभी तक हो रहे जानलेवा हमलों से पुलिस की वर्दी अपराधियों के हाथों लहूलुहान हो रही है।
इसे रोकने के लिए वैसे तो यूपी पुलिस के मुखिया सहित अन्य जिम्मेदार अफसरानों ने कई बार कई तरह की योजनाएं तैयार की, लेकिन अपराधियों का हौसला पस्त होने के बजाए फिलहाल बढ़ता नजर आ रहा है।
इसकी बानगी एक बार फिर कासगंज में देखने और सुनने को मिली तो लोगों के रोंगटे खड़े हो गए।
,, पुलिस पर भारी पड़ रहे अपराधी,
कासगंज में शराब माफिया के हाथों सिपाही देवेन्द्र की हुई हत्या और बुरी तरह से ज़ख्मी हुए दरोगा अशोक कुमार के बाद एक बार फिर वर्दी खून से नहा गई।
इस सनसनीखेज घटना ने कानपुर देहात सहित अन्य पुराने जख्मों को ताजा कर दिया।
गौर करें तो चाहे कुंडा सीओ जियाउल हक हत्याकांड हो या कानपुर देहात में आठ पुलिसकर्मियों की गई जान का मामला अपराधियों द्वारा पुलिसकर्मियों का खून बहाने का चलन बड़ा पुराना है।
कासगंज में सिपाही देवेन्द्र की हत्या के बाद वह सभी पुलिसकर्मी शाय़द सोच में पड़ गए हैं, जिनके कंधों पर दूसरों की सुरक्षा का जिम्मा है।
हालांकि कानपुर देहात में डीएसपी सहित आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे और कासगंज में सिपाही देवेन्द्र की जान लेने वालों पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया।
वहीं गहनता से गौर करें तो सूबे की जेलों और बाहर दो तरह के कानून चलते हैं। एक कानून सरकार का है तो दूसरा अपराधियों का।
दो-चार दशक पूर्व जाएं जब जेल और उसके बाहर खाकी वर्दी का खौफ होता था, लेकिन बीते कुछ सालों से अपराधियों का आतंक इस कदर बढ़ा कि आम आदमी तो दूर पुलिसकर्मियों को भी जब चाहा और जहां चाहा निशाना बनाया।
हनक, खनक और धमक से अपराधियों का यह सिस्टम चलता है।
आतंक का पर्याय बने अपराधियों पर लगाम कसने और उनकी धरपकड़ के लिए क़दम उठाने की कोशिश की तो पुलिसकर्मियों को जान देकर कीमत चुकानी पड़ती है।
कानपुर देहात में डीएसपी सहित आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और कासगंज में सिपाही देवेन्द्र की हत्या और घायल हुए दरोगा अशोक सहित पूर्व में पुलिस अफसरों एवं उनके मातहतों की हुई हत्या इसका उदाहरण है।