अपराधियों के असलहों में पुलिस की गोलियां,
एक दशक पूर्व से चल रहा है यह चलन, नौकरी के दौरान ही तैयार कर लिया था दागी यशोदा नंद ने अपना सिंडिकेट। आखिर अपराधियों तक कैसे पहुंचते हैं कारतूस- यह सवाल हर किसी को कर रहा है बेचैन।
ए अहमद सौदागर
लखनऊ। बेखौफ अपराधियों के हाथों मे अवैध असलहा और उसमें इस्तेमाल होने वाले कारतूस चलाकर वारदातों को अंजाम देना कोई नया चलन नहीं है, बल्कि बहुत पहले से ही है यह व्यवस्था।
उदाहरण के तौर पर 2 अप्रैल 2011 को गोमती नगर में सीएमओ परिवार कल्याण डॉक्टर बीपी सिंह की हत्या कर दी गई। मौके पर पहुंची पुलिस छानबीन की तो घटनास्थल से 7,65 एमएम बोर का कारतूस खोखा मिला।
2 मार्च 2011 को वजीरगंज में सरकारी मुलाजिम सैफ की हत्याकांड में अपराधियों ने प्रतिबंधित बोर कारतूस का इस्तेमाल किया, जो घटनास्थल से खोखा कारतूस बरामद किया गया था।
2 जून 2011 को चारबाग में चश्मा व्यवसाय गुलाब टेक चंदानी की हत्या बदमाशों ने 9mm कारतूस का इस्तेमाल किया
यह तो बानगी भर है और भी कई घटनाओं में बदमाशों ने प्रतिबंधित बोर कारतूस ओं का इस्तेमाल कर चुके।
अपराधियों के हाथों प्रतिबंधित बोर के कारतूस कैसे पहुंचते हैं यह खुशबू आज से नहीं बल्कि एक दशक पूर्व उस समय आई थी, जब दागी पुलिसकर्मी यशोदा नंद सिंह को राज्य की स्पेशल टास्क फोर्स ने भारी मात्रा में सरकारी कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था।
यह दागी पुलिसकर्मी खूंखार अपराधियों यानी नक्सलियों को कारतूस सप्लाई कर रहा था।
याद करें तो दागी पुलिसकर्मी यशोदा नंद वर्ष 2002 में चुनार कारतूस घोटाले में निलंबित हो चुका था।
सवाल है कि आखिर अपराधियों के हाथों में प्रतिबंधित बोर के कारतूस कैसे पहुंचते हैं। यह सवाल हर किसी को बार-बार बेचैन कर रहा है कि अपराधी असलहा तो आसानी से हासिल कर ले रहे हैं, लेकिन प्रतिबंधित बोर कारतूस आखिर कौन मुहैया करा रहा है?
आरमोरर के पद पर तैनात था यशोदानंद
कैसे प्रतिबंधित बोर कारतूस अपराधियों तक कैसे पहुंचते हैं इस पर और करे तो करीब एक दशक पूर्व इलाहाबाद के नैनी निवासी यशोदा नंद सिंह वर्दी की आड़ में कई सालों से असलहों एवं कारतूसों का गोरखधंधा कर रहा था।
वह नौकरी के दौरान ही उसने गिरोह चलाने का सिंडिकेट तैयार कर लिया था।
वर्ष 2002 में चुनार कारतूस घोटाले में उसका नाम सामने आया तो पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया था। वह समय यशोदा नंद रामनगर की 36 वीं वाहिनी पीएससी में उप निरीक्षक था।
यह तो दूर बस्ती जिले की पुलिस लाइन में तैनात डिप्टी आरमोरर राम कृपाल सिंह को भी एसटीएफ ने भारी मात्रा में कारतूस के साथ दबोचा था।
उस समय एसटीएफ ने जांच पड़ताल की तो पता चला कि रामकृपाल का तार नक्सलियों से जुड़ा हुआ।
दागी पुलिसकर्मी रामकृपाल के पास से जो कारतूस मिले थे वह केंद्रीय आयुध भंडार सीतापुर की मोहर लगी थी। हालांकि उस समय एसटीएफ की टीम ने मीडिया को कुछ भी बताने से परहेज किया था।
यह तो बीते दौर की बात थी अब चलें नए दौर में। राजधानी लखनऊ पुलिस ने कई बार असलहा तस्करों को गिरफ्तार कर उनके पास से भारी मात्रा में अवैध असलहा बरामद किया लेकिन पुलिस आज तक उन तस्करों तक नहीं पहुंच पाई, जो अपराधियों के हाथ कारतूस बेच रहे हैं।
बीते एक दशक पूर्व जिस तरह से दागी पुलिसकर्मियों का नाम कारतूस सप्लाई करने में आया था इससे यही लग रहा है कि अभी भी इस काम को कोई न कोई दागी जरूर इनवाल है। क्योंकि अपराधी असलहा तो आसानी से मुहैया करा लेता है, लेकिन कारतूस उनके हाथ कौन सप्लाई करता है।
अब नहीं चलेगी मनमानी, एसएसपी ने का कड़ा रुख
अवैध असलहों एवं अवैध कारतूस व को बेचने वाले तस्करों की धरपकड़ के लिए और रोकथाम के लिए आर्म्स एंड एमूनेशन कंट्रोल सेल का गठन किया है, जो हर समय पैनी नजर रखेगा।
- एसएसपी कलानिधि नैथानी के मुताबिक मामले की तह तक जाने के लिए यह योजना चलाई जा रही ताकि अवैध असलहा और कारतूसों की सप्लाई करने वालों की गर्दन तक पुलिस टीम आसानी से पहुंच सकेगी उन्होंने बताया कि असलहा तस्करों की गिरफ्तारी के बाद उनसे गहन पूछताछ की जाएगी की उनके पास कारतूस कहां से आते हैं।