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अयोध्या : रामजन्मभूमि ट्रस्ट को संपूर्ण भूमि का विधिवत स्वामित्व मिला

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को रामजन्मभूमि परिसर के संपूर्ण क्षेत्रफल का अब विधिवत स्वामित्व प्राप्त हो गया है। हाल में ही अयोध्या मंडल के मंडलायुक्त एमपी अग्रवाल ने ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को संपूर्ण भूमि का दस्तावेज सौंप दिया है। इसका खुलासा रविवार को श्रीराय ने ‘हिन्दुस्तान’ से विशेष भेंट में किया। उन्होंने कहा कि अभी संपूर्ण दस्तावेज का अवलोकन नहीं किया गया है, लेकिन सभी अधिकारी श्रेष्ठ हैं, इसलिए उन अधिकारियों ने सरकार के निर्देशों का पालन अवश्य किया होगा। ऐसे में दस्तावेजों को सुरक्षित रख दिया गया।

इससे पहले सुप्रीम फैसला आने के बाद कोर्ट के निर्देश पर पांच फरवरी 2020 को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के गठन की घोषणा की थी। इसी घोषणा की ही तिथि पर सायं कमिश्नर श्री अग्रवाल ने ट्रस्ट के नामित ट्रस्टी व अयोध्या नरेश विमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र को अधिग्रहीत भूमि के रिसीवर का दायित्व हस्तान्तरित करने की औपचारिकता पूरी कर दी थी। खास बात यह है कि पांच फरवरी को प्रधानमंत्री की ओर से ट्रस्ट गठन की घोषणा हुई थी लेकिन ट्रस्ट के ट्रस्टियो का नाम अगले दिन घोषित किया गया। वह भी निर्धारित 15 ट्रस्टियों में से नौ ही नाम घोषित किए गए और छह रिक्त स्थानों की प्रतिपूर्ति ट्रस्ट की 20 फरवरी को हुई पहली बैठक में की गयी। इसके कारण दस्तावेजी हस्तान्तरण की कार्यवाही भी अटकी रही।

फिलहाल दस्तावेजी हस्तान्तरण के बाद ट्रस्ट को संपूर्ण भूमि पर विधिवत अधिकार प्राप्त हो गया है। मालूम हो कि छह दिसम्बर 92 की घटना के बाद सात जनवरी 1993 को पारित एक्यूजीशन एक्ट आफ सर्टेन एरिया आफ अयोध्या के अन्तर्गत 67.77 एकड़ से अधिक भूमि का अधिग्रहण तत्कालीन केंद्र सरकार की ओर से किया गया था। इस अधिग्रहण में विवाद ग्रस्त भूमि भी समाहित थी। हालांकि यह भ्रम हमेशा से बना रहा कि विवाद ग्रस्त भूमि और अधिग्रहीत भूमि अलग-अलग है और यह भ्रम भी कोर्ट के कारण ही पैदा हुआ था।

11 दिसंबर 92 के हाईकोर्ट के आदेश से संयुक्त हुई भूमि
रामजन्मभूमि जन्मस्थान का मूल वाद तो विवादित परिसर जिसका निर्धारित क्षेत्रफल 80 गुणा 90 फिट था, के लिए ही था। राम मंदिर आन्दोलन के दौरान 30 अक्तूबर 90 को अयोध्या चलो आह्वान को देखते हुए तत्कालीन प्रदेश सरकार ने 2.077 एकड़ भूमि के चारों ओर बैरिकेडिंग करा दी। इसके अगले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सत्ता बदल गई और फिर वर्ष 1991 में प्रदेश सरकार ने 42.077 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया और 41 एकड़ भूमि रामजन्मभूमि न्यास को पट्टे पर दे दी। इस अधिग्रहण के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में अपील कर दी। हाईकोर्ट के तीन सदस्यीय पीठ ने पहले तो अपने अंतरिम आदेश में अधिग्रहण को वैध मान लिया। पुन: छह दिसम्बर 92 की घटना के बाद 11 दिसम्बर 92 को हाईकोर्ट ने अंतिम फैसले में अधिग्रहण को खारिज कर दिया और संपूर्ण भूमि को ही विवादग्रस्त भूमि से सम्बद्ध कर दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी 1994 में असलम भूरे बनाम यूनियन आफ इंडिया केस में हाईकोर्ट के ही निर्णय पर मुहर लगा दी।

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