ठाकुर परिवार में दो पीढ़ियों के बाद बेटी का जन्म हुआ, बहुत खुशियां मनाई गईं सबने कहा साक्षात लक्ष्मी पधारी है| नामकरण के लिए पंडित जी को बुलाया गयाऔर उन्होंने राशि के अनुसार और बहुत ही मन्नतों में मांगे जाने और बहुत ही मनोरम छवि के कारण उसका नाम मनोरमा रखा| पर घर में सब उसे मनु कहते और बहुत ही प्यार करते थे|
मनु को गुड्डे, गुड़ियों से खेलना बहुत पसंद था, वो अपनी सखियों संग घर-घर खेलती अपने गुड्डे, गुड़ियों का ब्याह रचाती और उन्हें विदा करती| इसके लिए एक छोटी सी डोली भी उसके पास थी जो खुद उसके बापू सा ने बनवाई थी, मनु के दो छोटे भाई भी थे| जो बड़े ही शरारती थे| मनु पढ़ने में बहुत तेज थी पर उसके गांव में सिर्फ आठवीं तक ही स्कूल था और उसके बाद की पढ़ाई के लिए उसके बापू सा ने पहले ही मना कर रखा था कि “मनु बेटा अब आगे तुम नहीं पढ़ पाओगी क्योंकि इतने दूर हम तुझे नहीं भेज सकते “।
तब मनु बोली “कोई बात नहीं बापू सा पढ़ लिख कर वैसे भी कौन सा कोई मास्टर बनना है, मुझे नहीं पढ़ना आगे”।इतना बोल कर मनु चली गई और अकेले में जाकर बहुत रोई क्योंकि उसकी कुछ सहेलियां साइकिल से पढ़ने दूसरे गांव जा रहीं थीं| पहली बार उसने हालात से समझौता किया था, क्योंकि अपने पिता की हालत उससे छिपी नहीं थी|
मनु के पिता ठाकुर जरूर थे पर स्वभाव से बहुत ही सीधे सज्जन आदमी थे पुरखों की जायदाद के नाम पर जमीन तो खूब थी पर पिछले तीन सालों से सूखा पड़ रहा था, और उनके खेत के कुए भी सूख गए थे| घर में खाने के लाले पड़े थे पर नाक इतनी ऊंची कि कभी किसी को नहीं बताया जरूरत पड़ने पर मनु की मां के गहने भी बिक गए।
उनकी एक मुंहबोली बहन थी जिसे वो सगी से ज्यादा मानते थे और वो भी उनको मानती थीं| एक बार वो घर आईं तब मनु ही उनके लिए चाय पानी लेकर गई और उसे देख कर वो बोली”अरे ! भाई सा मनु कितनी बड़ी हो गई है इसके ब्याह का कुछ सोचा है या नहीं “।ये सुन मनु की मां बोली ” ब्याह ! अब क्या बताऊं आपको “।और मनु की मां ने उन्हें सब बता दिया| तब वो बोली “आप बिल्कुल भी चिंता न करना मैं कुछ करती हूं”। और इतना कह वो चली गईं।
अगले महीने वो फिर आईं, लेकिन इस बार वो एक प्रस्ताव लेकर आईं थीं| जब ठाकुर साहब आ गए तब वो बोलीं ” भाई सा मैं आपकी समस्या का समाधान लेकर आई हूं “।वो कैसे ? “मनु का ब्याह करके” “क्या ? नहीं हम मर जाऐंगे पर अपनी बच्ची के जीवन से खिलवाड़ कभी नहीं होने देंगे”।
अरे! भाई सा एक न एक दिन तो आपको विदा करना ही है| एक ऐसा रिश्ता लेकर आई हूं, जहां हमारी मनु रानी बन रहेगी, और जिनका रिश्ता लेकर आई हूं वो बहुत ही नेक और रहमदिल इंसान हैं, मनु को सर आंखों पर बैठा कर रखेंगे, और मैं कोई दुश्मन नहीं हू जो अपनी ही भतीजी के साथ कुछ बुरा होने दूंगी”।मनु के बापू सा ने हामी भर दी और सोचा कि जो इच्छाऐं मनु की मैं पूरी नहीं कर पा रहा वो शायद ससुराल में पूरे हो जाएंगी|
और मनु का रिश्ता उसकी बुआ ने पक्का कर दियाऔर लड़के की बहन ने मनु को मंदिर में बुलाया और वहीं वो उसे सोने की चेन, पायल और कंगन के साथ-साथ कई सूट और साड़ियां भी दे गई| शादी के लिए मनु के पिता से कह दिया कि “आपको सिर्फ लड़की लेकर पहुंचना है, बाकी का सारा इंतजाम हो जाएगा”|
पन्द्रह साल की मनु अपने गहने, कपड़े देख-देख फूली नहीं समा रही थी| घर जाकर उसने अपनी सारी सखियों को बुला कर सारा सामान दिखाया| मनु तो बहुत खुश थी पर उसकी मां का दिल खुश नहीं था, वो यही सोच रही थी कि आखिर क्या बात है जो इतने बड़े घर के लोग मेरी इस छोटी सी बच्ची को अपने घर की बहू बना रहे हैं और हम जैसे गरीब लोगों से रिश्ता जोड़ रहे हैं, क्योंकि पैसों की कमी तो है ही ऊपर से हमारी बेटी भी कम पढ़ी लिखी सीधी सादी है।