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ग्लूकोमा से बचने के लिए सतर्कता जरूरी, ग्लूकोमा सप्ताह आज से 14 मार्च तक

खण्डवा :  स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले में विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 8 से 14 मार्च 2020 तक आयोजित किया जा रहा है। ग्लूकोमा अर्थात काला मोतिया आंखों की गंभीर बीमारी है। ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण पकड़ में नहीं आते, समुचित उपचार न होने से यह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। यह आंखों की ऊपरी सतह को तो प्रभावित करता ही है, कई बार यह आंखों की रोशनी भी छीन लेता है। ग्लूकोमा अंधेपन का दूसरा बड़ा कारण माना जाता है।

दरअसल आंख के कॉर्निया के पीछे सीलियरी टिशूज होते हैं, जिनसे एक्वेस ह्यूमर तरल पदार्थ बनता रहता है और बाहर निकल कर पुतलियों से होता हुआ आंख के भीतरी हिस्से में जाता है, इस प्रक्रिया से आंखें स्वस्थ रहती हैं इसी से आंखों में नमी बनी रहती है, लेकिन जब यह प्रक्रिया ढंग से काम नहीं करती है तो आंखों पर इंट्राओक्यूलर प्रेशर बढने लगता है और आंख के सीलियरी टिशूज भी डैमेज होने लगते हैं, जिससे मस्तिष्क को विजुअल सिग्नल भेजने वाली आंखों की ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है और .ष्टि क्षमता कमजोर होने लगती है। इसे ओपन एंगल ग्लूकोमा कहते हैं। ध्यान न देने पर आंखों में प्रेशर बढ़ जाता है। शुरुआत में धुंधला दिखाई देता है और ध्यान न देने पर पूर्णत: अंधापन आ जाता है, इसे क्लोज एंगल ग्लूकोमा कहते हैं।

ग्लूकोमा का द्वितीय कारण आनुवंशिक होता है। इस कारण के अंतर्गत परिवार में किसी को यह बीमारी हो तो परिवार का कोई भी व्यक्ति उसका शिकार हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान आंखों की बनावट की गड़बड़ी से जन्मजात ग्लूकोमा के मामले देखे जाते हैं, जिनका समय पर इलाज जरूरी है। लंबे समय से स्टेरॉइड लेने, अस्थमा, आर्थराइटिस जैसी बीमारियों के मरीजों को भी यह बीमारी हो जाती है। चोट, सर्जरी, डायबिटीज, हार्ट डिजीज और ब्लडप्रेशर के मरीजों को भी यह बीमारी होने का खतरा रहता है।

ग्लूकोमा से बचाव के उपाय
ग्लूकोमा से बचाव के उपायों में 35 वर्ष की उम्र के बाद साल में दो बार, 40 से 54 वर्ष में 3 बार, 55 से 64 वर्ष में 2 बार और 65 वर्ष के बाद हर 6 माह में आरएनएफएल जांच कराएं। आनुवंशिक कारण होने पर बच्चों की आंखों का चेकअप जरूर समय से कराएं। चश्मे का नंबर जल्दी जल्दी बदले, तो नेत्र चिकित्सक से संपर्क करें। आंखों में चोट लगने या कोई भी सर्जरी होने पर नियमित चेकअप कराएं, आहार का विशेष ध्यान रखें, विटामिन ए, बी, सी और ई से युक्त आहार लें। आहार में हरी सब्जियां, फल, दूध, सूखे मेवे आदि लें।

इलाज के लिए प्रारंभिक अवस्था में पहचान व जांच जरूरी है। देर होने पर पूर्ण इलाज संभव नहीं हो पाता है, आंखों में बढ़े प्रेशर को कम करने के लिए मेडिसिन व आई ड्रॉप दी जाती है, साथ में नियमित जांच जरूरी है। दवा से ठीक नहीं होने पर लेजर सर्जरी से आंखों की ऑप्टिकल नर्व ठीक कर ग्लूकोमा को नियंत्रित किया जा सकता है। सर्जरी के बाद आंखों को धूल-मिट्टी से बचाना चाहिए और आंखों को न रगड़ते हुये आंखों की सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिये।
7 मार्च, 2020 –

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