लंदन : चीन से फैले जानलेवा कोरोना वायरस ने अब कर दुनिया के बड़ा भूभाग को अपनी चपेट में लिया है। चिकित्सा विज्ञानियों ने कोरोना वायरस के बारे में पहले ही आगाह किया था, लेकिन लोग समझ नहीं पाए। 24 जनवरी को चीनी डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी का पहला विवरण जारी किया था। उन्होंने बताया था कि किस प्रकार एक करोड़ 10 लाख की आबादी वाले शहर वुहान में दिसम्बर में निमोनिया के मामले सामने आए थे।
उस समय तक इस नई बीमार के 800 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी। यह वायरस थाईलैंड, जापान व दक्षिण कोरिया में भी पहुंच चुका था। एक ताजा प्रकाशित रिपोर्ट में जिन 41 लोगों के बारे में बताया गया था, उनमें से अधिकांश में बुखार व खांसी के लक्षण बताए गए थे। इनमें से आधे को सांस लेने में समस्या थी। सबसे गंभीर बात यह थी कि इनमें से एक तिहाई मरीजों की खराब हालत के कारण आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा था। बाद में इनमें से आधे मरीजों की मौत हो गई। चीनी वैज्ञानिकों ने लिखा कि मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने इस नए वायरस के महामारी का रूप लेने की आशंका को देखते हुए सावधानी पूर्वक निगरानी का अनुरोध किया था।
यह जनवरी का समय था। इसके बावजूद ब्रिटेन की सरकार ने वायरस की गंभीरता को समझने में आठ सप्ताह का समय लिया। वैज्ञानिक लगातार चेतावनी दे रहे थे, लेकिन ब्रिटेन इस बीमारी को रोकने के प्रभावी उपाय नहीं कर पाया।
2003 में सेवेर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) के खतरे को सार्वजनिक नहीं करने को लेकर चीनी अधिकारियों की बहुत आलोचना हुई थी। 2020 में चीनी वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी ने इससे सबक लिया। जब यह नई बीमारी फैल गई, तो उन्होंने अपने परिणामों को विदेशी भाषा में लिखा और हजारों मील दूर के मेडिकल जर्नल में इसे प्रकाशित कराया। वो जिस गति से काम कर रहे थे, वह दुनिया के लिए एक चेतावनी थी।
लेकिन ब्रिटिश सरकार के चिकित्सा व वैज्ञानिक सलाहकारों ने उनकी चेतावनी को नजरअंदाज किया। अज्ञात कारणों से उन्होंने इंतजार किया। जो वैज्ञानिक मंत्रियों को सलाह दे रहे थे, वे यह मानकार चल रहे थे कि इस नए वायरस का उपचार इंफ्लुएंजा की तरह किया जा सकता है। चीन से पहली रिपोर्ट मिलने के बाद ही ब्रिटेन के सबसे अच्छे वैज्ञानिकों को पता चल गया था कि यह बीमारी बहुत घातक है। इसके बावजूद उन्होंने इसे लेकर बहुत देर से और बहुत कम काम किया। यह वायरस शीघ्र ही यूरोप के अन्य देशों में भी पहुंच गया। इटली पहला यूरोपीय देश है जिसमें लोगों की बहुत अधिक मृत्यु हुई है।