अलीगढ़ : कार्डधारकों को मिलने वाले राशन पर अब नगर व क्षेत्र में सक्रिय कई गेहूं माफिया डाका डाल रहे हैं। कई गेहूं माफिया क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो क्षेत्र व नगर के कई राशन डीलरों से साठगांठ कर गरीबों के राशन पर डाका डाल रहे हैं। इससे पर्याप्त मात्रा में कार्डधारकों को राशन नहीं मिल पा रहा है। पहले भी कई बार शिकायत की जा चुकी है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। जिले में खाद्यान्न माफियाओं व कोटेदारों का गठजोड़ काफी मजबूत है।
कोटेदार के साथ-साथ माफिया भी मालामाल हो रहे हैं। खाद्यान्न उठान की नियत तिथि से पहले ही यह माफिया गरीबों के अनाज पर डाका डाल देते हैं। इसका खामियाजा उन गरीब राशन कार्डधारकों को भुगतना पड़ता है, जो राशन मिलने की आस लगाए बैठे रहते हैं।
सरकार गरीबों को दो जून की रोटी देने के उद्देश्य से सस्ते दर पर राशन उपलब्ध करा रही है, पर उस राशन पर जिसका हक है वह कितना पा रहा है यह एक बड़ा सवाल है।
ऐसा ही मामला रविवार को हमारे संवाददाता ने अपने कैमरे में कैद किया। कि थाना गभाना के गांव जिरौली डोर के पूर्व प्रधान जितेन्द्र सिंह के खेत पर लगे ट्यूवैल पर राशन माफिया भोला ठाकुर सरकारी बोरियों में खुलेआम प्राइवेट बोरियों में राशन के चावल को कालाबाजारी हेतु टैम्पों जंगल के बीच लादकर ले जा रहा है।
राशन माफिया भोला ने अपना गोदाम खैर रोड़ नादापुल पर स्थापित कर लिया हैं। जहां से गाजियाबाद और दिल्ली के लिये ट्रकों में गरीबों का राशन लोड होता है।
ब्लॉकवार गोदामों पर खाद्यान्न वितरण की तिथि निर्धारित है। समय से कोटेदार खाद्यान्नों का उठान तो करते हैं, लेकिन यह गरीबों तक पहुंचता है या नहीं, इसकी कभी भी तहकीकात नहीं की जाती है। इसका फायदा माफिया उठा रहे हैं। उनकी पैनी निगाहें गरीबों के निवाले पर टिकी रहती है।
वे समय का इंतजार करते रहते हैं कि कब किस गांव का खाद्यान्न बंटना है। उसके बाद कोटेदार से माफियाओं का गठजोड़ शुरू हो जाता है। ज्यादातर गोदाम से ही गरीबों का निवाला व्यापारियों तक पहुंच जाता है।
-महीने के आखिरी में उठान कर की जाती गड़बड़ी
ज्यादातर कोटेदार माफियाओं से गठजोड़ कर महीने के आखिरी में गेहूं, चावल आदि खाद्यान्न की उठान करते हैं और फिर कम से कम एक सप्ताह लगा देते हैं सत्यापन आदि कार्यों में। उसके बाद कार्ड धारकों को खाद्यान्न वितरित किया जाता है। देर से उठान के कारण महीने के बीच में वितरण का खेल कार्ड धारक नहीं समझ पाते। हालांकि इसी का फायदा उठाकर माफिया अगले महीने का राशन कोटेदार के साथ मिलकर डकार जाते हैं और किसी को पता भी नहीं चलता।
-घर बैठे हो जाता है सत्यापन
खाद्यान्न पात्रों को मिले इसके लिए बाकायदा अलग-अलग विभागों के कर्मियों की डय़ूटी भी लगाई जाती है। इन्हें वितरण तिथि के पहले गांवों मे कोटेदारों की ओर से बनाए गए गोदाम मे राशन का सत्यापन करना होता है उसके बाद वितरण के समय मौके पर मौजूद रहना होता है, मगर शायद ही कहीं वितरण अधिकारी मौके पर मिले। माफियाओं के साथ मिल कोटेदार सत्यापन अधिकारी से उसके घर पर ही सत्यापन कार्य पूरा हो जाता है।
-गरीब लगाते कोटेदार के घरों का चक्कर
सार्वजनिक प्रणाली पर खाद्यान्न माफिया इस कदर हावी हैं कि कई कोटेदारो को सिर्फ कागजों पर हस्ताक्षर तक सीमित रहना पड़ता है। ज्यादा दबाव हुआ तो उन्हें भी कुछ फायदा पहुंचा दिया जाता है। कोटेदारों की कुंडली रख खाद्यान्न डकारने में माहिर यह माफिया सफेदपोशों के साथ मिलकर कोटेदारों को बीच-बीच में कार्रवाई कराने की धमकी तक दे डालते हैं। अगर उन्हें गठजोड़ में कोटेदार भारी लगा तो मौका देखते ही दुकान निलंबित कराकर दूसरे को कोटा भी माफिया दिला देते हैं। इस पर उनका साथ विभागीय कर्मी भी निभाने में नहीं संकोचते। गरीब राशन कार्ड धारक जिनके घर में कोटे के राशन की बदौलत चूल्हा जलता है वे दिन-रात कोटेदार के घरों का चक्कर लगाया करते हैं और उनका निवाला बिक चुका होता है।