कई लोगों को दोपहर में सोने की आदत होती है। वे दिन के समय मौका मिलते ही झपकी लेने का मौका नहीं छोड़ते हैं। लेकिन, हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक उम्रदराज लोगों का दोपहर के समय सोना कई बीमारियों को न्योता देता है जिसमें डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और कैंसर शामिल हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह स्थिति हाइपरसोमनोलेंस कहलाती है, जिसके अनुसार रात को सात या उससे ज्यादा घंटे की नींद लेने के बाद भी दिन के समय नींद आती है। यह कुछ लोगों के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है और इससे रोजाना किए जाने वाले काम प्रभावित हो सकते हैं।
अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के स्टडी ऑथर मौरिस एम ओहायोन ने कहा, ‘उम्रदराज लोगों में नींद आने की इस स्थिति पर ध्यान देकर डॉक्टर आगे की सेहत की स्थिति का पता लगा सकते हैं और उन्हें रोक सकते हैं। इन उम्रदराज लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को सोने की आदतों पर बारीकी से नजर रखने की जरूरत होगी, ताकि ज्यादा गंभीर स्थिति के संभावित खतरे को समझा जा सके।‘ इस स्टडी में 10,930 लोगों ने हिस्सा लिया और लगभग 34 प्रतिशत लोग 65 साल या उससे अधिक उम्र के थे।
शोधकर्ताओं ने इस स्टडी के लिए तीन साल में इन प्रतिभागियों से फोन पर दो बार इंटरव्यू लिया। पहले इंटरव्यू में 65 से ऊपर की उम्र के 23 प्रतिशत लोगों ने जरूरत से ज्यादा नींद आने की बात कही। दूसरे इंटरव्यू में 24 प्रतिशत ने नींद की अधिकता की बात की। इनमें से 41 प्रतिशत लोगों ने उनकी नींद को एक पुरानी समस्या बताया।
फोन पर दिए गए पहले इंटरव्यू में जिन प्रतिभागियों ने नींद आने की समस्या बताई, उनमें तीन साल बाद हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज का जोखिम 2.3 गुना तक बढ़ गया था। इस इंटरव्यू में जिन्होंने नींद नहीं आने का कहा, उन्हें ये खतरा नहीं था। शोधकर्ताओं का कहना है कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम वाले प्रतिभागियों में कैंसर होने का जोखिम भी दोगुना हो गया।
फोन पर लिए गए पहले इंटरव्यू में 840 प्रतिभागियों ने नींद आने की समस्या बताई और इनमें 52 लोगों यानी 6.2 प्रतिशत को दिन में कभी नहीं सोने वाले 74 लोगों यानी की 9.2 प्रतिशत के मुकाबले डायबिटीज हो गई। वहीं इन 840 लोगों में से 20 यानी 2.4 प्रतिशत को 21 लोगों यानी 0.8 प्रतिशत की तुलना में कैंसर पाया गया जो दिन में नहीं सोए।
शोधकर्ताओं का कहना था कि जिन लोगों ने दोनों इंटरव्यू के दौरान दिन में नींद आने की जानकारी दी, उनमें दिल की बीमारी होने का खतरा 2.5 गुना अधिक था।
जिन लोगों ने केवल दूसरे इंटरव्यू में नींद आने की बात कही उनमें कनेक्टिव टिश्यू और मांसपेशियों से जुड़ी समस्याओं अर्थराइटिस, टेंडनिटिस और ल्यूपस का जोखिम 50 प्रतिशत तक बढ़ गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस अध्ययन की सीमा प्रतिभागियों की नींद लेने का कुल समय, गुणवत्ता के बजाए याद्दाश्त पर निर्भर था।
www.myupchar.com का कहना है कि ज्यादा नींद आना यानी हाइपरसोमनिया की स्थिति में भी लोगों को दोपहर के समय खूब नींद आती है। इस स्थिति में भी रात में लगातार सोना और इसके साथ दिन में भी झपकियां लेना। वैसे हाइपरसोमनिया के मरीज के लिए 24 घंटों में 16 घंटे सोकर बिताना कोई असामान्य बात नहीं है।
अधिक जानकारी के लिए देखें :https://www.myupchar.com/disease/covid-19/myths-and-facts