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‘परिवार को नहीं पता, मैं कोरोना का इलाज कर रहा’: डॉक्टरों ने शेयर किए अनुभव

कोरोना संक्रमित मरीजों का दिल्ली के राममनोहर लोहिया और सफदरजंग अस्पताल में उपचार किया जा रहा है। इनके इलाज में जुटे चिकित्सकों का कहना है कि उपचार के दौरान काफी सावधानियां बरतनी पड़ती हैं। इलाज के दौरान कोरोना पीड़ित की तबीयत में सुधार होता है तो बेहद खुशी मिलती है। वहीं, उनके घर वालों को उनकी काफी चिंता सताती रहती है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में चिकित्सकों ने कहा कि जब काम शुरू होता है तो मरीज का इलाज करना मिशन की तरह लगने लगता है।

सफदरजंग अस्पताल

‘परिवार को नहीं पता, मैं कोरोना का इलाज कर रहा’

हमारे अस्पताल में देश में सबसे अधिक कोरोना पीड़ित मरीज भर्ती हैं। मैं कोरोना वार्ड में भर्ती मरीजों का उपचार कर रहा हूं। शुरू में जरूर थोड़ा घबराया था। मेरे घरवाले भी डरते हैं और पूछते हैं कि कोरोना को लेकर क्या चल रहा है। मैंने उन्हें बताया ही नहीं कि मैं कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रहा हूं। अस्पताल में कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए लगे डॉक्टरों में सांस रोग, मेडिसिन और एनेस्थीसिया विभाग के डॉक्टरों की संख्या अधिक है।

कोरोना वार्ड में शुरू में भर्ती हुए मरीजों को तेज बुखार था। पहले उन्हें बुखार के लिए पैरासिटामोल जैसी दवाएं दी गईं, लेकिन हमारे पास कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं थीं। एक वरिष्ठ डॉक्टर ने सांस में तकलीफ बता रहे मरीज को टेमी फ्लू दवा देनी शुरू की। इस दवा का इस्तेमाल स्वाइन फ्लू में होता है। इस दवा का जल्द ही असर होने लगा। ऐसे दो मरीजों की तबीयत जल्द ठीक होने लगी। मरीजों की सेहत में सुधार होता देख मुझे बहुत खुशी होती है।

कोरोना टीबी से खतरनाक नहीं

हमें कोरोना वायरस के मरीजों के उपचार का कोई अनुभव नहीं था लेकिन वरिष्ठ डॉक्टरों की सलाह पर उपचार कर रहे थे। हमारे एक प्रोफेसर ने बताया कि क्षय रोग (टीबी) के मरीज का तो सभी ने उपचार पहले भी किया है। वही सावधानियां इसमें भी बरतनी हैं। हालांकि, यह वायरस तेजी से फैलता है लेकिन टीबी और निपाह जैसे वायरस से ज्यादा खतरनाक नहीं है। मैं कुछ माह पहले निपाह जैसे खतरनाक वायरस का उपचार करने वाले डॉक्टरों से मिला था और उनके अनुभव का भी पता चला था।

राम मनोहर लोहिया अस्पताल

मैं पिछले कुछ वर्षों से राममनोहर लोहिया अस्पताल में काम कर रहा हूं। मेरी ड्यूटी पिछले दो सप्ताह में आठ दिन कोरोना के मरीजों के उपचार में लगी है। पहले दिन जब पता चला कि आईसीयू में कोरोना के मरीजों का उपचार करना है तो थोड़ा घबराया लेकिन ड्यूटी रोस्टर में मेरे साथ मेरे वरिष्ठ डॉक्टरों के नाम भी थे तो डर दूर हो गया। हम पहले भी संक्रामक रोगों का उपचार कर चुके हैं लेकिन कोरोना वायरस के चीन में तेजी से फैलने की खबरों के बाद हमें बेहद सावधानी बरतने के लिए कहा गया।

पीपीआई सूट पहनना पड़ा

हमें मरीजों के उपचार के दौरान प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) पहने रखना पड़ता है। यह सिर से पैर तक पूरी तरह ढंकता है। लगातार आठ से दस घंटे पीपीई पहनना शुरू में काफी बोझिल लगता था लेकिन कुछ दिनों में ही हमें इसकी आदत हो गई। जब यह सूट पहनते हैं तो इस दौरान न तो फोन पर बात करते और न ही कुछ खा सकते हैं। एक दिन 12 घंटे की ड्यूटी लग गई तो एक साथी डॉक्टर को बुलाकर बेहद सावधानी से बाहर जाकर खाना खाया।

घर वालों को अपने शहर भेज दिया

मैं अस्पताल से घर जाता था तो घर वाले डरते थे। चीन में कई डॉक्टरों के संक्रमित होने की खबरें आईं तो वे और डरने लगे। मैंने उन्हें समझाया कि घबराएं नहीं हम खुद एहतियात रखते हैं। इसके बाद खुद मेरे मन में शंका पैदा हुई तो परिजनों को कुछ दिनों के लिए अपने शहर भेज दिया। उपचार के दौरान अधिकतर मरीज ऐसे थे जो लक्षणों के आधार पर दी गई दवाओं से ही ठीक होने लगते थे।

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