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प्रकृति का वरदान और कहर

हम जिस पृथ्वी मे रहते हैं वहाँ हम मानवी जीवन के अलावा और कई ऐसे असंख्य जीव है जो जीवित है और अपनी दैनिक क्रिया कलाप करते है बिना हमारे जाने । हमे आज भी नहीं पता कि आखिर ऐसे कितने जीव, कितने सूक्ष्म जीवाणु, कीटाणु और विषाणु है जो हमारे साथ ही इस पृथ्वी पर रहते है । हम उनका स्वभाव तक नहीं जानते बदलते समय के साथ जब ये हमारे सामने आते है तब हम इनके व्यवहार को जान पाते है कि अच्छा है या बुरा लेकिन इस बाबत एक बात तो तय है ये पृथ्वी, ये प्रकृति समय के साथ नहीं बदलती ब्लकि इसमे निवास कर रहे लोगों को ढालने की कोशिश करती है, आज भी प्रकृति अपने अंदर जाने कितने रहस्य छुपाये बैठी है । मानव का प्रकृति के साथ खिलवाड़ शायद इस हद तक बढ़ गया है कि आज उसका परिणाम कोरोंना आज हम सबके सामने है और इसका शिकार आखिर मानव ही क्यों?
इसका सीधा सा जबाव है कि जब भी प्रकृति के साथ कोई भी अति करेगा तो ऐसे परिणाम सामने आते रहेंगे जैसे वर्तमान के है, हर 100 साल मे कोई न कोई ऐसी आपदा या महामारी का सामना हम सब करते है । आने वाले समय में और ना जाने कितने रहस्यमय जीव, कीटाणु, विषाणु, वायरस सामने आयेंगे ये तो प्रकृति ही जाने हमे सिर्फ और सिर्फ प्रकृति के कहर का सामना करना है जब तक हम कुदरत को अपना दोस्त ना बना ले, ये कहर इसलिए क्यूँकि हमने ही ऐसा करने पर इसे मजबूर किया है उस पर नये नये प्रयोग करके ।

पूजा प्रजापति
पत्रकारिता विभाग
कानपुर विश्वविद्यालय |

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