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मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 32

 रामधनी जी दैनिक जागरण बरेली में लगभग दस साल तक रहे और वहीं से 2009 में अवकाश ग्रहण किया लेकिन प्रबंधन ने उन्‍हें सेवा विस्‍तार दिया और 2010 में उनका स्‍थानांतरण दिल्ली (नोएडा) हो गया। जहां वह इस समय तक (2020) कार्यरत हैं। दैनिक जागरण की भाषा-वर्तनी पर उन्होंने काफी काम किया है। इस समय वह नोएडा के प्रमुख संस्‍करणों की कंटेंट मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं। वह दैनिक जागरण की कोर टीम के सदस्य भी हैं।

के. एम. अग्रवाल

सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।

एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।

गतांक से आगे…

सफर के साथी:1

लगभग 12 वर्ष तक इलाहाबाद में प्रवास के दौरान पत्रकारिता से जुड़े अनेक ऐसे चेहरे हैं, जिनसे मुलाकात हो या न हो, वे प्रायः याद आते हैं। उनके बारे में भी लिखना अच्छा लगता है कि कौन कहाँ से आया और उसकी यात्रा कहाँ तक पहुँची ? इनमें कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके बारे पर्याप्त जानकारी के अभाव में नहीं लिख पा रहा हूँ।

रामधनी द्विवेदी


अमृत प्रभात में अधिकतर लोग लखनऊ के स्‍वतंत्र भारत से आए थे, लेकिन कुछ लोग दूसरे अखबारों से भी आए जिनमें रामधनी द्विवेदी भी थे। वह अमृत प्रभात के प्रारंभ से ही जुड़े थे और प्रकाशन शुरू होने के दस दिन पहले इलाहाबाद आ गए थे। मैं अक्‍टूबर 77 में इलाहाबाद आया था और रामधनी जी दिसंबर में आए। इसके पहले वह कानपुर से प्रकाशित हो रहे आज में थे। आज बनारस के बाद कानपुर से अप्रैल 1975 में शुरू हुआ था और वह वहां भी आज के प्रकाशन शुरू होने के साथ ही जुड़े थे। वह आज में लगभग ढाई तीन साल रहे और अमृत प्रभात खुलने पर उनका चयन यहां के लिए हुआ। आज के पहले वह बनारस के जनवार्ता में पत्रकारिता शुरू कर चुके थे। वह उनका पहला संस्‍थान था।

अमृत प्रभात में उनका चयन उप संपादक के रूप हुआ था, जहां वह धीरे-धीरे मुख्य उप संपादक/उप समाचार संपादक और 1995 में समाचार संपादक तक बने।

1989 के बाद पत्रिका समूह आर्थिक संकट में फंसने लगा था, लोगों को समय से वेतन नहीं मिलता था। विभिन्‍न कारणों से वह डेढ़ डेढ़ साल के लिए दो बार बंद भी हो चुका था। जब वह दोबारा खुला तो भी हालात नहीं सुधरे। 1998 आते-आते जब अमृत प्रभात की हालत बहुत ही खराब हो गयी, कर्मचारियों को वेतन मिलना बंद हो गया तो वह लखनऊ अमर उजाला में सिटी चीफ होकर चले गये। वह अमर उजाला में ही एक साल ही रहे और वहां से इस्‍तीफा देने के बाद अप्रैल 1999 में दैनिक जागरण में समाचार संपादक बनकर बरेली चले गये।

रामधनी जी दैनिक जागरण बरेली में लगभग दस साल तक रहे और वहीं से 2009 में अवकाश ग्रहण किया लेकिन प्रबंधन ने उन्‍हें सेवा विस्‍तार दिया और 2010 में उनका स्‍थानांतरण दिल्ली (नोएडा) हो गया। जहां वह इस समय तक (2020) कार्यरत हैं।

दैनिक जागरण की भाषा-वर्तनी पर उन्होंने काफी काम किया है। इस समय वह नोएडा के प्रमुख संस्‍करणों की कंटेंट मॉनिटरिंग का काम कर रहे हैं। वह दैनिक जागरण की कोर टीम के सदस्य भी हैं।

अमृत प्रभात में वह डेस्‍क पर थे। डेस्‍क पर दो शिफ्टें थी जिसमें वह एक शिफ्ट के प्रमुख सदस्‍य के रूप में रहे और बाद में समय-समय पर प्रोन्‍नत होते हुए समाचार संपादक बने। वह अमृत प्रभात के उन कुछ लोगों में थे जो विज्ञान के विविध विषयों पर प्रति सप्‍ताह विज्ञान चर्चा कॉलम भी लिखते थे। अमृत प्रभात हिंदी का पहला अखबार था जिसने विज्ञान पर नि‍यमित कॉलम छापना शुरू किया। उस समय तक नवभारत टाइम्‍स में भी ऐसा कॉलम छपता था लेकिन अमृत प्रभात में यह काफी लंबे यमय तक छपा। रामधनी द्विवेदी ने हिंदी में लगभग 15 वर्षो तक अमृत प्रभात में यह कॉलम लिखा जो काफी लोकप्रिय था। यहीं पर उन्‍होंने प्रति सप्‍ताह विज्ञान चर्चा नाम से पेज भी निकाला जो पूरी तरह विज्ञान के विषयों पर आधारित होता था लेकिन यह पेज एक साल में ही बंद हो गया।

गोपाल रंजन


गोपाल रंजन 1979 में अमृत प्रभात में उप संपादक के रूप में आये। उसके पहले वह गोरखपुर में दैनिक जागरण में 1975 से लगभग चार साल तक उप संपादक थे। वैसे तो वह 1998 तक अमृत प्रभात में रह गये, लेकिन 1990 से बाद का उनका समय बहुत तनावपूर्ण रहा। प्रबंधतंत्र कभी उन्हें दिल्ली तो कभी रायबरेली भेजता रहा। वह बताते हैं कि अंत में तंग आकर खस्ताहाल अमृत प्रभात को उन्होंने 1998 में छोड़ दिया। उन्होंने कुछ साल किताब महल में बिताये, फिर 2001 में इलाहाबाद में ही यूनाइटेड भारत में सहायक संपादक हुए। बाद में वहीं पर स्थानीय संपादक भी हुए, लेकिन 2008 में यहाँ से भी हट गये। फिर वह तीन वर्ष तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेन्टर फार मीडिया स्टडी से जुड़े रहे।

गोपाल रंजन 2011 में दिल्ली चले गये, जहाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। लेकिन उन्हें तो अपनी पत्रिका निकालनी थी, जो 2017 में ‘ सृजन सरोकार‘ के रूप में सामने आयी।

कल्याण चन्द जायसवाल


1978 तक भारत समाचार पत्र और फिर इलाहाबाद की माया पत्रिका में लगभग 5-6 वर्ष तक उप संपादक के रूप में काम करने के बाद कल्याण चन्द अमृत प्रभात में आ गये। बाद में वह मेरे साथ ही 1989 में गुवाहाटी पूर्वांचल प्रहरी में उप समाचार संपादक बनकर चले गये। लेकिन एक वर्ष बाद ही मेरे हट जाने के बाद वह भी वहाँ से वापस आकर इलाहाबाद में दैनिक जागरण में  ज्वाइन कर लिया। 2003 आते-आते कल्याण चन्द ने छलांग लगाई और दैनिक भास्कर के उप समाचार संपादक बनकर नागपुर चले गये। पुनः मौका मिला तो इसी अखबार में कार्यकारी संपादक बनकर जबलपुर आ गये, जहाँ 2017 में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। वैसे वह आज भी दैनिक भास्कर को अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

सुनीता द्विवेदी

सुनीता द्विवेदी ने 1975 में लखनऊ में अंग्रेजी के पायनियर अखबार में रिपोर्टर के रूप में पत्रकारिता की शुरुआत की। उन्हीं दिनों मैं भी लखनऊ में पायनियर ग्रुप के स्वतंत्र भारत में स्टाफ रिपोर्टर था। दोनों अखबारों के संपादकीय अगल-बगल थे, इसलिए मुलाकात होती रहती थी। बाद में 1984 में वह इलाहाबाद के एन.आई.पी. में सब एडिटर के रूप में आ गयीं। तीन साल बाद ही उन्होंने इलाहाबाद में ही टाइम्स आफ इंडिया ज्वाइन कर लिया और लगभग सात साल तक लखनऊ और इलाहाबाद दोनों जगह रहीं। वह चार-पाँच महीने हिन्दुस्तान टाइम्स में भी रहीं।
सुनीता जी बाद में दिल्ली चली गयीं, जहाँ उनके पति राकेश द्विवेदी सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। सुनीता जी ने एल.एल.बी. करके पाँच साल तक प्रैक्टिस भी किया। लेकिन फिर वह गौतम बुद्ध के जीवन, उनके उपदेशों, दर्शन तथा विभिन्न देशों पर उनके प्रभाव आदि को लेकर शोध कार्य करने लगीं। इस संदर्भ में उन्होंने अब तक एशिया के दर्जन भर देशों की यात्रा की है। उनकी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं:

1. बुद्धिस्ट हेरिटेज साइट्स आफ इंडिया।
2. इन क्वेस्ट आफ दि बुद्धा – ए जर्नी आन सिल्क रोड।
3. बुद्धा इन सेन्ट्रल एशिया।
4. बुद्धा इन गांधार। (प्रेस में)।
सुनीता द्विवेदी अंग्रेजी पत्रकारिता से शुरू करके आज वह बुद्ध विषय की देश की जानी-मानी विद्वान और लेखिका हैं। पिछले 22 वर्षों से अब यही उनका क्षेत्र है।

क्रमशः 33

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