कोरोना संकट की इस घड़ी में काशीवासियों ने अनूठी पहल की है। संकल्प किया है कि जब तक देश में स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, वे आधा पेट खाएंगे और देश का अनाज बचाएंगे। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि यदि पूर्ण रूप से स्वस्थ्य बहुत सारे लोग ऐसा करने लगें, तो इससे काफी मात्रा में देश का अनाज बचाया जा सकता है, जो दूसरे देशवासियों के काम आएगा।
इस संकल्प की शुरुआत मानसरोवर स्थित श्रीराम तारक आंध्र आश्रम के मैनेजिंग ट्रस्टी के परिवार से शुरू हुई। मैनेजिंग ट्रस्टी वीवी सुंदर शास्त्री ने बताया कि आश्रम में उनके परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त 20 ऐसे दक्षिण भारतीय हैं, जो स्थाई रूप से काशीवास कर रहे हैं। उन लोगों ने भी ऐसा ही करने का निर्णय किया है। उनके इस निर्णय में आश्रम के स्टाफ ने भी सहयोग करने का संकल्प किया है। इस प्रकार सिर्फ आंध्र आश्रम में ही 43 लोग हैं, जिन्होंने ने इस संकल्प का पालन करना आरंभ कर दिया है।
सुंदर शास्त्री ने कहा कि जो लोग चार रोटी खाते हैं वे तीन रोटी ही खा रहे हैं। सामान्य दिनों में आश्रम में रोजाना कम से कम दो प्रकार की सब्जी, रसम, सांभर, चावल और मट्ठा भोजन में परोसा जाता है। शुक्रवार की दोपहर से सिर्फ चावल और सब्जी बनाने का क्रम आरंभ हो गया। वहीं सोनारपुरा निवासी फाइन आर्ट्स के शिक्षक राम कुमार वर्मा और उनके परिवार ने भी इस संकल्प पर अमल का व्रत लिया है। अग्रसेन महाजनी विद्यालय से अवकाश प्राप्त करने के बाद डीरेका के निकट अपना निजी फाइन आर्ट्स स्कूल चलाने वाले राम कुमार वर्मा ने बताया कि उन्होंने अपने दादा देवकीनंदन वर्मा (अब स्वर्गीय) से लाल बहारदुर शास्त्री के आह्वान के बारे में सुना था।
वर्ष 1964 में उनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश में अनाज का संकट पैदा हो गया था। अमेरिका अपनी शर्तों पर भारत को अनाज देने के लिए तैयार था, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री ने इसे भारत के स्वाभिमान के खिलाफ माना और देशवासियों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने का आह्वान किया था। श्री वर्मा कहते हैं उस समय के संकट की तुलना में वर्तमान संकट बहुत बड़ा है। आपदा के दौरान हर देशवासी तक भोजन पहुंचे इसके लिए मेरे परिवार के चारों सदस्यों ने यह निर्णय किया है। जरूरत पड़ी तो हम आधा पेट भी खाएंगे, लेकिन इस वक्त देश का अनाज बचाना भी बहुत जरूरी है ताकि सरकार अधिक से अधिक लोगों तक मुफ्त में अनाज पहुंचा सके।