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वक्त के साथ बदल गया राई नृत्य का अंदाज

अशोकनगर :  रंगपंचमी पर आयोजित होने वाले करीला मेला पर समीपस्थ ग्राम ललितपुर से आकर झण्डा चढ़़ाया जाता है, इसके साथ ही मेले की औपचारिक शुरुआत होती है। वहीं रंगपंचमी की अगली सुबह सभी नृत्यांगनाएं एक साथ शामिल होकर घेरा बनाकर नृत्य करती हैं और मां जानकी का धन्यवाद अर्पित करती हैं, इसे घेरा की राई कहा जाता है। इसी घेरा की राई के साथ मेला का पारंपरिक समापन माना जाता है।
ढोल-नगाड़े, मंजीरे की थाप-धुन पर मादक भाव-भंगमाओं के साथ होने वाला राई नृत्य अब बहुत कुछ बदल गया है। करीला मेला में आने वाली आज के दौर की नृत्यांगनाएं लोकगीतों के बजाय डीजे धुन वाले फिल्मी गीतों पर नाचने लगी हैं। वह अपनी पुरानी पीढिय़ों की नृत्यांगनाओं से पारंपरिक कलाएं सीखने के बजाय यू-ट्यूब पर डांस के स्टेप सीख रहीं हैं।

करीला में आने वाली 19 वर्षीय मोनिका ने बताया कि बदलते दौर में राई नृत्य के तौर तरीकों में भी बदलाव की जरूरत है। नृत्य कराने वाले भी फिल्मी गीतों पर डांस की मांग करते हैं। हालांकि इसके बाद भी वह नृत्य के हर पुराने तौर-तरीकों से वाकिफ हैं। फिर भी पिछले पांच वर्षों में बहुत कम आयोजक लोकगीतों पर नृत्य की फरमाईश करते हैं। अधिकांश आयोजनों में डीजे की धुन पर फिल्मी गीतों का ही प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि पारंपरिक सौंदर्य प्रसाधानों के बजाय उनकी साथी नृत्यांगनाएं मल्टी-नेशनल कंपनियों के उत्पादों को खरीदती हैं। राई नृत्य के अतिरिक्त इस पेषे से जुड़ी रहीं युवतियों ने डांस बार और मॉडलिंग कंपनियां भी ज्वाईन कर ली हैं। वहीं पारंपरिक लहंगे की जगह भी आधुनिक परिधानों ने ले ली है।

वाल्मीकि आश्रम एवं मां जानकी मंदिर के रूप में ख्यातिप्राप्त करीला धाम की एक अन्य महत्वपूर्ण पहचान यहां पर होने वाला राईनृत्य है। वैसे तो बुंदेलखण्ड का कोई धार्मिक मेला हो या सांस्कृतिक मेला, शादी-बारात का आयोजन हो या दष्टोण और मुंडन का कार्यक्रम। यहां राई कराना आम बात मानी जाती है। करीला में होने वाली राई की ख्याति और मान्यता इन सबसे भिन्न है। लोकोक्ति है कि लवकुश के जन्म लेने पर स्वर्ग से अप्सराओं ने धरती पर उतर कर इस प्राचीन मंदिर परिसर में बधाई स्वरूप राई नृत्य किया था। इसी लोकोक्ति के चलते करीला में मन्नत और पूरी होने पर बधाई कराने की परंपरा जुड़ गई। रंगपंचमी मेला पर खिंचे चले आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के मन में जहां मां जानकी के दशन करने की अभिलाषा होती है, वहीं एक इच्छा होती है कि ढोलक की थाप पर नृत्यांगनाओं द्वारा किया जाने वाला मनमोहन नृत्य भी देखा जाए। अब करीला में राई का तरीका और अंदाज दोनों बदल गए हैं।

पहले जहां बेडिय़ा समुदाय की कुछ दर्जन नृत्यांगनाएं करीला मेला में पहुंचती थीं, वहीं अब इस समुदाय के अलावा राजस्थान के कंजर समुदाय की महिलाएं भी पहुंचने लगी हैं। इनके अलावा पिछले कुछ वर्षों में इस मेले में पेषेवर नाच करने वाली महिलाएं व युवतियां देश के कोने-कोने से आ रही हैं। खास बात है कि पंद्रह लाख श्रद्धालुओं की आवक वाले इस मेले में शासन-प्रशासन तमाम व्यवस्थाएं जुटाता है लेकि नृत्यांगनाओं की पहचान के लिए कोई पंजीकरण की व्यवस्था तक नहीं होती। नृत्य के लिए सुविधा करने के नाम पर प्रशासन ने रैलिंग युक्त पक्के चबूतरे बनवाए हैं, वहीं बिजली के लैम्पों की व्यवस्था भी मेला परिसर में की है। इससे पहले उखड़े पत्थरों के बीच मशालों की रोशनी में राई नृत्य किया जाता था।

-मॉ जानकी के दर्शन कर लाखों श्रद्धालु लेते हैं आर्शीवाद:
रंगपंचमी पर सुबह से ही श्रद्धालुओं का करीला धाम आना प्रारंभ हो जाता है। रंग पंचमी के दिन व रात में लाखों श्रद्धालु मॉ जानकी के मंदिर में शीश नवाते हैं तथा दर्शन लाभ लेकर आर्शीर्वाद प्राप्त करते हैं। मन्नतें पूरी होने पर हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर के बाहर राई नृत्य करवाते हैं। करीला के मुख्य मंदिर में मॉ जानकी के साथ-साथ महर्षि वाल्मिीकि व लव-कुश की प्राचीन प्रतिमायें स्थापित है।
-मां जानकी दरवार की भभूति से फसलों के होते है रोग दूर:
मां जानकी माता के दरवार पर जो श्रद्धालु आते है। दर्शन लाभ लेकर श्रद्धालु मां जानकी दरवार की भभूति अपने साथ ले जाते है। इस भभूति को फसल के समय खेतो में फसलों पर छिडक़ी जाती है। यदि फसल में इल्ली लग जाती है तो भक्तजन मां के दरबार की भभूति खेतों में डालते है। इस भभूति से फसलों में लगे रोग एवं इल्ली दूर हो जाती है।

-कराई जाती हैं समुचित व्यवस्थाएं:
करीला मेले की सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ-साथ सम्पूर्ण मेले की व्यवस्थाएं जिला एवं पुलिस प्रशासन द्वारा कराई जाती हैं। मेला परिसर में पेयजल सहित विद्युत, स्वच्छता तथा सुरक्षा की बेहतर व्यवस्थाएं रहती हैं। जिले के सभी विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मेला व्यवस्थाओं के लिए दायित्व सौंपे जाते हैं। जिसके तहत सभी अधिकारी एवं कर्मचारी पूरी मुस्तैदी के साथ कार्य करते हैं। सेक्टर मजिस्ट्रेटों द्वारा दर्शनार्थियों को कोई असुविधा न हो इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पुलिस के जवान मंदिर परिसर में निर्मित 35 फिट वॉच टावर पर पहुंचकर दूरबीन से सुरक्षा व्यवस्थाओं का जायजा लेते हैं। साथ ही मंदिर परिसर एवं मेला स्थल पर लगाए गए सी.सी.टी.वी.कैमरों से मेले पर सतत निगरानी रखी जाती है। मेला में आवागमन को सुगम बनाने हेतु चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती की जाती है।

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