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विवाह घरों में ध्वनि प्रदूषण पर वसूलें भारी जुर्माना: हाईकोर्ट

यदि कोई विवाह घर ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून का पालन नहीं करता तो पहली गलती पर एक लाख, दूसरी गलती पर पांच लाख व तीसरी गलती पर 10 लाख रुपये जुर्माना वसूला जाए। साथ ही तीन गलती के बाद जिलाधिकारी उस विवाह घर का लाइसेंस निरस्त कर दें।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवाह घरों में ध्वनि प्रदूषण पर सख्त रुख अपनाते हुए नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना लगाने और बार-बार मना करने के बावजूद न मानने पर उसका लाइसेंस निरस्त करने का निर्देश दिया है।

साथ ही किसी विवाह घर में अधिक ध्वनि होने की पुलिस को 100 नम्बर पर शिकायत मिले तो पुलिस निर्देशों का पालन करे। यह भी कहा कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमों के तहत डीजे बजाने की अनुमति न दी जाए और निश्चित मात्रा से अधिक ध्वनि होने कार्रवाई की जाए।

कोर्ट ने कहा कि सुशील चंद्र श्रीवास्तव के केस में दिए गए निर्देशों के तहत यदि कोई विवाह घर ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून का पालन नहीं करता तो पहली गलती पर एक लाख, दूसरी गलती पर पांच लाख व तीसरी गलती पर 10 लाख रुपये जुर्माना वसूला जाए। साथ ही तीन गलती के बाद जिलाधिकारी उस विवाह घर का लाइसेंस निरस्त कर दें। कोई भी बारात संबंधित विवाह घर से अधिकतम 100 मीटर की दूरी पर एकत्र होकर प्रारंभ की जाए। इसका पालन न करने पर विवाह घर के मालिक से जुर्माना लिया जाए। प्रत्येक विवाह घर से एनसीटी नीति के अनुसार हलफनामा लिया जाए।

यह आदेश न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल एवं न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की खंडपीठ ने शिव वाटिका बारात घर व अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि शहर में कई विवाह घर कानून के खिलाफ चल रहे हैं, जो शहरवासियों के लिए परेशानियों का सबब बने हैं। पीडीए ने भी माना है कि विवाह घर शहर की यातायात व्यवस्था के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। प्राधिकरण ने दो बाइलॉज प्रस्तुत किए हैं।


कोर्ट ने कहा कि मैरेज हॉल 1500 वर्गगज में होने चाहिए। साथ ही वह 18 मीटर चौड़ी सड़क पर हो और उसका फ्रंटेज18 मीटर होना चाहिए। 30 फीसदी कवर एरिया व 40 फीसदी ओपन एरिया होना चाहिए। साथ ही वाहन पार्किंग की व्यवस्था हो।
कोर्ट ने शहर का मास्टर प्लान व जोनल प्लान पर भी विचार किया और कहा कि केवल सिविल लाइंस में ही जोनल प्लान है। 19 साल बीत गए, पूरे शहर का जोनल प्लान तैयार नहीं किया जा सका। कोर्ट ने प्रस्तावित बाइलॉज को पहले से लागू बाइलॉज के विपरीत होने के कारण अनुमोदित करने से इनकार कर दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार बाइलॉज तैयार किया जाए। कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण के सचिव से इस मामले में छह नवंबर को प्रगति रिपोर्ट मांगी है

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