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होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है, जाने पूरी घटना

वेसे तो होली का त्योहार हर साल फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन बड़े ही उल्लास के साथ मनाई जाती है। तेज संगीत, ढोल और नागारे के साथ एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है । प्राचीन काल की एक पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी को बहुत चर्चित माना जाता है

होली का इतिहास

आज से हजारो साल पहले हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा हुआ करता था जो कि राक्षस की तरह था। वह हर समय अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे महा प्रभु भगवान विष्णु ने मारा डाला था। इसलिए हिरण्यकश्यप अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक तपस्या किया ।

आखिरकार उसे वरदान मिला ही गया था की उसे न कोई देव, दानव, मनुष्य, जानवर, और ना ही किसी प्रकार अस्त्र व सस्त्र से उसकी मीर्तु ना हो। लेकिन इसके कारण से हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा था और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को जबरदस्ती करने लगा।

इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह महा प्रभु भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी भी शुकार नही किया था और सिर्फ महा प्रभु भगवान विष्णु की पूजा आरधना करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने का निर्णय कर लिया ।

हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाए | क्योंकि होलिका को यह बरदान मिला था की वह आग में कभी भी जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो पाई क्योंकि प्रहलाद भगवान विष्णु अनन्य भक्त था और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई।

होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन की जाती है।

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