Home / Slider / कर्नाटक के 17 विधायकों की अयोग्यता बरकरार

कर्नाटक के 17 विधायकों की अयोग्यता बरकरार

उपचुनाव लड़ सकेंगे, जीते तो मंत्री भी बन सकेंगे, “विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए उन्हें चुनाव लड़ने से मना कर देना गलत”

विधि विशेषज्ञ जे.पी. सिंह की कलम से

कर्नाटक में अयोग्य करार दिए गए 17 बागी विधायकों की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने अहम फैसला सुनाते हुए स्पीकर के अयोग्य ठहराने के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन विधानसभा कार्यकाल यानी 2023 तक अयोग्य ठहराने के फैसले को रद्द कर दिया। इसके साथ ही अब ये अयोग्य विधायक पांच दिसंबर को होने वाले उपचुनाव में हिस्सा ले सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा है इस्तीफा देने के बावजूद 17 विधायकों को सदस्यता के अयोग्य करार देने का स्पीकर को अधिकार था, लेकिन विधानसभा के पूरे कार्यकाल के लिए उन्हें चुनाव लड़ने से मना कर देना गलत था।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि संसदीय लोकतंत्र में नैतिकता सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर लागू होती है, लेकिन पार्टियां सुविधा से स्टैंड बदलती हैं। विधायकों के इस्तीफा देने से स्पीकर के अधिकार बाधित नहीं हो जाते, लेकिन स्पीकर को सिर्फ यह देखना होता है कि इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया है या नहीं।उच्चतम न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता से बदला नहीं जा सकता।

जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोग्यता उस तारीख से संबंधित है जब इस तरह के दलबदल की कार्रवाई होती है। इस्तीफे का स्पीकर के अधिकार क्षेत्र पर कोई असर नहीं पड़ता है।पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि जिस तरह से आप यहां आए हैं वो सही तरीक़ा नहीं है। आपको पहले हाई कोर्ट में जाना चाहिए था।

पीठ ने कहा कि उपरोक्त सभी मामलों में विशिष्ट समय न देने के आरोपों पर हमारे निष्कर्ष प्रत्येक मामले के अलग तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित हैं। इसका मतलब यह नहीं समझा जाना चाहिए कि स्पीकर सुनवाई की अवधि कम कर सकता है। अयोग्यता कार्यवाही का निर्णय लेने से पहले स्पीकर को एक सदस्य को पर्याप्त अवसर देना चाहिए और विधानमंडल के नियमों में निर्धारित समय सीमा का पालन करना चाहिए। यह स्पष्ट है कि स्पीकर के पास दसवीं अनुसूची के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की या उस अवधि को इंगित करने की शक्ति नहीं है जिसके लिए कोई व्यक्ति अयोग्य होगा और न ही वो किसी को चुनाव लड़ने से रोक सकता है।

फैसले में कहा गया कि हमें यह याद रखना चाहिए कि किसी विशेष नियम या कानून की वांछनीयता, किसी भी स्थिति में उसी के अस्तित्व के सवाल के साथ भ्रमित नहीं होनी चाहिए और संविधान की नैतिकता को कभी भी राजनीतिक नैतिकता द्वारा नहीं बदला जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि अंत में हमें ध्यान देने की आवश्यकता है कि स्पीकर से ,एक तटस्थ व्यक्ति होने के नाते, सदन की कार्यवाही या किसी याचिका की कार्यवाही का संचालन करते हुए स्वतंत्र रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। उसके ऊपर संवैधानिक ज़िम्मेदारी का पालन करने का कर्तव्य है उनका राजनीतिक जुड़ाव पक्षपात के रास्ते में नहीं आ सकता।यदि स्पीकर अपनी राजनीतिक पार्टी से अलग नहीं हो पाता है और तटस्थता और स्वतंत्रता की भावना के विपरीत व्यवहार करता है, तो ऐसा व्यक्ति सार्वजनिक विश्वास और भरोसे के लायक नहीं है।

पीठ ने कहा चूंकि हम अयोग्यता का फैसला कर रहे हैं, इसलिए इस्तीफे पर विचार करना जरूरत नहीं है। जैसे कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अयोग्यता का इस्तीफे से कोई लेना-देना नहीं है। पीठ ने कहा कि विधायक 5 दिसंबर को होने वाला उपचुनाव लड़ सकते हैं, अगर वे जीतते हैं तो मंत्री भी बन सकते हैं। पीठ ने यह भी कहा कि लोगों को स्थायी सरकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

गौरतलब है कि कर्नाटक के 17 अयोग्य विधायकों ने तत्कालीन स्पीकर के रमेश कुमार के आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दाखिल की थी, जिसमें उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया था और उन्हें 15 वीं कर्नाटक विधानसभा के कार्यकाल के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। विधायकों को येदियुरप्पा मंत्रालय में शामिल नहीं किया जा सका क्योंकि उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था। विधायकों ने अयोग्य ठहराए जाने को उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन बताया क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विश्वास मत के दौरान सदन में उपस्थित होने के लिए बाध्य करने के लिए स्पीकर द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने अध्यक्ष पर 10 वीं अनुसूची के प्रावधानों को तोड़-मरोड़कर अयोग्य ठहराने को गलत बताया और यह भी कहा है कि अनिवार्य नोटिस अवधि के बिना निर्णय लिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अध्यक्ष ने संविधान की व्याख्या के साथ जानबूझकर छेड़छाड़ की।

याचिका में बागी विधायकों ने यह भी तर्क दिया कि उनमें से अधिकांश ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था और उनके इस्तीफे पर फैसला करने के बजाए स्पीकर ने अवैध रूप से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जबकि स्पीकर को पहले इस्तीफों पर फैसला करना चाहिए था। यह भी तर्क दिया गया कि स्पीकर ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन किया है क्योंकि अयोग्यता से पहले कोई सुनवाई नहीं की गई। इन अयोग्य विधायकों ने कहा कि 28 जुलाई को पारित स्पीकर के आदेश पूरी तरह से अवैध, मनमानी और दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि उन्होंने मनमाने ढंग से उनके स्वैच्छिक इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने 6 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था लेकिन स्पीकर केआर रमेश कुमार ने कांग्रेस पार्टी द्वारा 10 जुलाई को पूरी तरह से गलत याचिका के आधार पर उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया।

स्पीकर ने जुलाई में दलबदल क़ानून के आधार पर विधायकों को अयोग्य ठहराया था।स्पीकर ने जब इन विधायकों को अयोग्य ठहराया था तो यह भी कहा था कि वो इस विधानसभा के कार्यकाल ख़त्म होने तक कोई चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।स्पीकर के इस फ़ैसले को उच्चतम न्यायालय ने अमान्य ठहरा दिया है। इन विधायकों के बाग़ी बनने के कारण ही कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार गिर गई थी और बीजेपी के येदियुरप्पा को सरकार बनाने का मौक़ा मिला था।

अयोग्य करार दिए गए 17 विधायकों में से 15 सीटों पर 5 दिसंबर को चुनाव होना है। पहले इन 15 सीटों पर 21 अक्टूबर को चुनाव होना था, लेकिन विधायकों को अयोग्य करार देने से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। इसके चलते चुनाव आयोग ने मतदान की तारीखों को 5 दिसंबर तक टाल दिया था। कर्नाटक में कुल 224 सीटें हैं। 17 विधायकों को अयोग्य ठहराने के बाद विधानसभा सीटें 207 रह गईं। इस लिहाज से बहुमत के लिए 104 सीटों की जरूरत थी। भाजपा (105) ने एक निर्दलीय के समर्थन से सरकार बना ली।15 सीटों पर 5 दिसंबर को उपचुनाव कराए जाएंगे। दो सीटों मस्की और राजराजेश्वरी नगर पर कर्नाटक हाईकोर्ट में मामला लंबित है, लिहाजा यहां चुनाव नहीं होंगे। 15 सीटों पर चुनाव होने के बाद विधानसभा में 222 सीटें हो जाएंगी। उस स्थिति में बहुमत का आंकड़ा 111 हो जाएगा। भाजपा को सत्ता में बने रहने के लिए कम से कम 6 सीटों की जरूरत होगी।

Check Also

“ये सदन लोकतंत्र की ताकत है”: मोदी

TEXT OF PM’S ADDRESS AT THE SPECIAL SESSION OF PARLIAMENT माननीय अध्‍यक्ष जी, देश की ...