के.एम. अग्रवाल
‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 41: स्नेह मधुर
my-life-life-km-agrawal-autobiography-written-by-senior-journalist-km-agrawal-41sneh madhur
सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।
एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।
गतांक से आगे…
सफर के साथी: 10
लगभग 12 वर्ष तक इलाहाबाद में प्रवास के दौरान पत्रकारिता से जुड़े अनेक ऐसे चेहरे हैं, जिनसे मुलाकात हो या न हो, वे प्रायः याद आते हैं। उनके बारे में भी लिखना अच्छा लगता है कि कौन कहाँ से आया और उसकी यात्रा कहाँ तक पहुँची ? इनमें कई ऐसे लोग भी हैं, जिनके बारे पर्याप्त जानकारी के अभाव में नहीं लिख पा रहा हूँ।
वीरेन्द्र मिश्र
सामान्य
[15/06, 5:51 PM] Maharaj km Agrawal: मेरा जीवन————- भाग — 41
— के.एम.अग्रवाल
सफर के साथी
—————–
स्नेह मधुर
———–
स्नेह मधुर एक ऐसा नाम है, जिसने 1978 से 2018 तक की अपनी पत्रकारिता की यात्रा में बहुत ही ऊबड़-खाबड़ रास्ते से चलते हुए दैनिक अखबार, मासिक-साप्ताहिक पत्रिका, न्यूज चैनेल और फिल्मी दुनिया तक के अनुभव को स्वयं में समेटा है। वर्तमान में इतने अर्से बाद अब वह महसूस करते हैं कि पत्रकारिता अब वह नहीं है, जब हमें खुलकर सच्चाई को लिखने की आजादी थी और ऐसा लिखते हुए हमें संपादक का संरक्षण मिलता था। वह खुलकर कहते हैं, ‘ अब तो दलाली अधिक होती है।’
बहरहाल, स्नेह मधुर ने 1978 में इलाहाबाद में दैनिक जागरण ज्वाइन किया और 1980 में माया पत्रिका में आ गये। बीच-बीच में अमृत प्रभात के भी सम्पर्क में रहे और 1983 में रिपोर्टर के रूप में इससे जुड़ गये, और मेरे साथ ही बैठने लगे। अमृत प्रभात ज्वाइन करने के पहले से वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख तथा फीचर आदि लिखते रहे।
रिपोर्टर रूम में उनके पहले दिन के पहले कुछ क्षण यादगार बन गये। मुझे तो याद नहीं, लेकिन स्नेह मधुर को याद है कि कमरे में उनके आने पर पहले मैं उन्हें परिसर से बाहर ले गया और ठेले से अंडा खिलाया। फिर एक छोटा सा समाचार दिया कि इसे संक्षिप्त में तीन-चार लाइनों में बना दें। लेकिन मधुर जी माया के पैटर्न पर काल्पनिक उड़ान भर कर तीन पेज में बना दिया। हमने उनकी ओर देखा और फिर दोनों मुस्कुरा दिये।
स्नेह मधुर ने अमृत प्रभात में लगभग 15 वर्ष गुजारे तथा अखबार में समय-समय पर आने वाले उतार-चढ़ाव को देखते, उनसे निपटते हुए सकुशल 1998 में इलाहाबाद में ही हिन्दुस्तान अखबार ज्वाइन कर लिया। लगभग 12 वर्ष तक हिन्दुस्तान में रहते हुए कभी इलाहाबाद और कभी बनारस में काम करते रहे। अंत में 2010 में हिन्दुस्तान छोड़ ही दिया और लखनऊ में नई दुनिया के विशेष संवाददाता बनकर चले गये। वह ऐसा दौर था, जब अखबार मालिक पत्रकार को स्थायी तौर पर न रखकर कांट्रैक्ट बेसिस पर रखने लगे थे। जो पत्रकार बाहर बहुत शान से रहता था, अखबार के भीतर प्रबंधतंत्र के उत्पीड़न का प्रायः शिकार होता था। वह या तो लड़े या छोड़कर चला जाय।
स्नेह मधुर हिन्दुस्तान में रहते हुए ‘ वायस आफ अमेरिका, वाशिंगटन डी.सी.’ में भारत स्थित पाँच संवाददाताओं में एक संवाददाता के रूप में काम करते रहे, जिसके लिए प्रबंधतंत्र से उन्हें नोटिस भी मिली, जिसका संतोषजनक जवाब उन्होंने दिया।
2015 के आस-पास नई दुनिया के बंद.हो जाने के बाद, दिल्ली से ही निकलने वाले नेशनल दुनिया के विशेष संवाददाता के रूप में लखनऊ में ही बने रहे। इस अखबार में साल भर रहे, लेकिन कार्य संतुष्टि नहीं मिली तो 2016 में एक साल ‘के.न्यूज’ चैनल में राजनीतिक संपादक के रूप में जुड़े रहे।
और फिर एक दिन आया जब स्नेह मधुर लखनऊ में ही हिन्दी ‘पायनियर’ में संपादक हो गये, जहाँ दो वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद 2018 में अवकाश ग्रहण कर लिया।
स्नेह मधुर वैसे तो बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। शुरू से ही उनकी रुचि फिल्मी दुनिया में थी, इसलिए प्रायः मुम्बई का चक्कर लगाते रहते। कई फिल्मों में विभिन्न रूपों में उन्होंने काम किया है। फिल्मी दुनिया में उनकी पहुँच का अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि 2007 में जयपुर में आयोजित ‘ इंटरनेशनल शार्ट फिल्म फेस्टिवल ‘ में वह जूरी सदस्य के रूप में जुड़े रहे। उनके साथ अन्य जूरी सदस्य शशि कपूर, रजा मुराद और बसु चटर्जी आदि थे।
‘वी वान्ट स्नेह मधुर’
———————-
वैसे तो स्नेह मधुर रिपोर्टर के रूप में काम करते हुए कई उतार-चढ़ाव से गुजरे हैं, लेकिन 1997 में इलाहाबाद में एक दिन अमर उजाला में एक छोटा सा समाचार छपा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुछ छात्राएं वेश्यावृत्ति करते हुए पकड़ी गयीं। उन दिनों एस.के.दुबे संपादक बनकर पत्रिका में पुनः लौट आये थे। उन्होंने स्नेह मधुर को बुलाकर कहा, ‘ इतना महत्वपूर्ण समाचार कैसे छूट गया ? हमें यह समाचार विस्तार से चाहिए। ‘स्नेह मधुर ने कहा, ‘ यह ऐसा समाचार है, जिसे मैंने यदि लिख दिया तो पत्रिका में आग लग जायेगी।’ दुबे जी ने कहा, ‘ आप हमें समाचार दीजिए, छपेगा।’
बहरहाल, दो दिन बाद स्नेह मधुर ने विस्तार से उस समाचार को लिखकर दिया, जिसमें बताया गया था कि विश्वविद्यालय की महिला छात्रावास की अधीक्षिका ही यह रैकेट चलाती हैं और इसमें न्यायपालिका से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारी और कुछ प्रोफेसर तक सम्मिलित हैं। लम्बा-चौड़ा यह समाचार अमृत प्रभात मे बाई लाइन छपा।
इस समाचार का छपना था कि सचमुच आग लग गयी, तहलका मच गया। अधीक्षिका के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में विश्वविद्यालय की छात्राओं ने पत्रिका को घेर लिया। प्रदर्शनकारियों के साथ सिटी मजिस्ट्रेट भी मौजूद रहे। नारे लगाती हुईं ये छात्रायें जैसे ही मुख्य गेट पर पहुँचीं, गेट को बंद कर दिया गया। प्रदर्शनकारी छात्राएं स्नेह मधुर से बात करना चाहती थीं, क्योंकि उन्होंने ही समाचार लिखा था। स्थिति को देखते हुए, पत्रिका के प्रबंधतंत्र ने स्नेह मधुर को एक कमरे में बंद कर दिया और संपादक के.बी.माथुर तथा प्रबंधक संतोष तिवारी को गेट पर छात्राओं से बात करने के लिए भेजा। लेकिन लड़कियाँ और अधीक्षिका उनसे बात करने को तैयार नहीं थीं। उनका बार-बार समझाना सब बेकार।
तभी दो-तीन लड़कियाँ एकाएक गेट पर चढ़कर परिसर में घुस आयीं और ‘ वी वान्ट स्नेह मधुर ‘ नारे परिसर में घूम-घूमकर लगाने लगीं।
स्थिति को काफी तनावपूर्ण होते देखकर प्रबंधतंत्र ने जिलाधिकारी से संपर्क किया लेकिन उन्होंने कोई मदद नहीं की। प्रदेश के किसी मंत्री ने भी टेलीफोन पर संपर्क करने पर कोई कारवाई नहीं की। अंत में प्रबंधतंत्र ने केन्द्रीय गृहमंत्री को फोन करके स्थिति की जानकारी दी। गृहमंत्री ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को बोला और तब राज्यपाल ने हस्तक्षेप किया। परिणामस्वरूप, तब बड़ी संख्या में पुलिस आयी और प्रदर्शनकारियों को मौके से हटाया।
अधीक्षिका और लड़कियों ने वापस जाते-जाते कहा, ‘ कल हमलोग फिर आयेंगे।’
दूसरे दिन अमृत प्रभात में प्रथम पृष्ठ पर इस संदर्भ में संपादकीय छपा कि ‘ हम झुकेंगे नहीं ‘।
बताया जाता है कि जिस समय छात्राएँ पत्रिका परिसर के गेट पर प्रदर्शन कर रहीं थीं, इसकी जानकारी शहर में दूर-दूर तक लोगों को हो गयी और सैकड़ों की संख्या में तमाशबीन वहाँ इकट्ठा हो गये।
दो दिन बाद पत्रिका के प्रबंध निदेशक तमाल कांति घोष, स्नेह मधुर को लेकर दिल्ली चले गये और गृहमंत्री आदि से मिलकर लखनऊ होते हुए एक सप्ताह बाद लौटे। तब तक स्थिति काफी कुछ शांत हो चुकी थी। बताया जाता है कि बाद में अधीक्षिका ने स्नेह मधुर से मिलकर प्रदर्शन के लिए खेद व्यक्त किया था।
स्नेह मधुर की व्यंग्य पर भी अच्छी पकड़ है। यही कारण है कि काफी पहले ही ‘घूमता आईना’ नाम से उनकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है, जिसमें समय-समय का समाज पूरे व्यंग्य और हास्य के साथ दिखाई देता है। ये मंचीय कवि तो नहीं हैं, लेकिन समय -समय पर इनकी लेखनी कुछ अच्छी कविताएँ भी लिख देती हैं
————
— क्रमशः 42
[15/06, 6:12 PM] Maharaj km Agrawal: सातवें पैरे के बाद इसे जोड़ दें —
लखनऊ में रहते हुए इन्होंने अखबारी दुनिया के अलावा प्रशासन और राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी खास पहचान बना ली। पायनियर के संपादक बन जाने के बाद तो इन्होंने एक विशेष स्तर प्राप्त कर लिया।
————
— के.एम.

क्रमशः 42