Home / सिनेमा / 9 साल की उम्र में कभी RSS की शाखा में जाते थे मिलिंद सोमन, बोलें- पिता को हिंदू होने पर गर्व था लेकिन मुझे कभी गर्व महसूस नहीं हुआ

9 साल की उम्र में कभी RSS की शाखा में जाते थे मिलिंद सोमन, बोलें- पिता को हिंदू होने पर गर्व था लेकिन मुझे कभी गर्व महसूस नहीं हुआ

सुपरमॉडल रह चुके मिलिंद सोमन का नाम उन चुनिंदा सितारों में शामिल है जो 50 की उम्र पार करने के बावजूद फिटनेस में हर किसी को मात दे रहे हैं। मिलिंद की फिटनेस यंग जेनरेशन के हर उस शख्स के लिए एक इंस्पिरेशन है जो खुद को मैनेटली और फिजिक्ली एक्टिव रखना चाहते हैं। फिटनेस के अलावा मिलिंग अक्सर अपनी लव लाइफ और वाइफ अंकिता कोनवार की वजह से खबरों में छाए रहते हैं। मिलिंग आज भले ही फिल्मी दूनिया से दूर है लेकिन वह अपने सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से खबरों की सुर्खियों में छाए रहते हैं। फिलहाल मिलिंग अपनी किताब ‘मेड इन इंडिया’ को लेकर काफी चर्चा में हैं।

दरअसल हाल ही में मिलिंद की एक किताब ‘मेड इन इंडिया- ए मेमॉयर’ आई है। लेखिका रूपा पाई के साथ मिलकर लिखी गई इस किताब में मिलिंद ने अपनी ज़िंदगी के अनुभव साझा किए हैं। द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक़ मिलिंद ने अपनी इस किताब में उन दिनों का ज़िक्र भी किया है जब वो आरएसएस की शाखा में जाया करते थे। किताब में उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी कई यादों का जिक्र किया और बताया कि बचपन के दिनों में वह अपने पिता के साथ मुंबई के शिवाजी पार्क में शाखा के लिए जाते थे। उन्हें शाखा से जुड़ी कई सारी बातों का उल्लेख अपनी किताब में किया है।

 

किताब में उन्होंने जिक्र किया कि मैं उस वक़्त क़रीब 9 साल का था और वहीं हम खेल कूद में हिस्सा लेते और अनुशासन में रहना सीखते थे। मैं दो-तीन कैंपों में भी गया जहां मेरी तरह हज़ारों बच्चे आते थे। वहां पर हमें बताया जाता था कि अच्छे नागरिक कैसे बनें, आत्मनिर्भर कैसे बनें। इन बात से मैं आज भी इत्तेफ़ाक़ रखता हूं। मिलिंद ने आगे कहा, “हो सकता है कि आरएसएस उस वक़्त राजनीतिक नहीं थी, लेकिन मैं जिस वक़्त शाखा में गया और लोगों से मिला मुझे उनमें राजनीति नहीं दिखी। हो सकता है कि वक़्त के साथ बाद में ये राजनीतिक हो गई।

मिलिंद ने अपनी किताब में आगे लिखा कि आज शाखा को लेकर मीडिया में जो सांप्रदायिक चीजें आती हैं, उनसे मैं काफी हैरान हूं। मिलिंद ने अपनी किताब में शाखा को याद करते हुए बताया कि हर शाम शाखा में जाना पूरी तरह से अलग होता था ।

 

 

मिलिंद सोमन ने शाखा के दिनों को याद करते हुए बताया, “हम वहां खाकी शॉर्ट्स में मार्च करते थे, योग करते थे, फैंसी संसाधनों की जगह पर पारंपरिक चीजों से कसरत करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते थे। हालांकि हमें यह चीज बिल्कुल भी समझ नहीं आती थी। अपनी किताब में उन्होंने आगे बताया कि  मेरे पिता भी आरएसएस का हिस्सा रहे हैं और वो एक बहुत प्राउड हिंदू थे। मैंने कभी नहीं समझा कि इसमें गर्व करने जैसा क्या था लेकिन वहीं मैंने ये भी नहीं देखा कि इसमें कंप्लेन्ट करने जैसा क्या है। मुझे नहीं पता कि मेरे शाखा लीडर्स हिंदू होने के बारे में क्या सोचते थे, जितना मुझे याद है, वो इस बारे में अपने विचार भी हमारे सामने कभी नहीं रखते थे। अगर उनके ऐसे कोई विचार थे भी तो। छोटी उम्र में आरएसएस शाखा में जो डिसिप्लीन उन्होंने सीखा उससे उन्हें आज भी फ़ायदा हो रहा है।

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