आचार्य अमिताभ जी महाराज
जबसे कोरोना का प्रारंभ हुआ है, तब से सारे थिएटर बंद हो गए हैं, सार्वजनिक सम्मेलन की समस्त संभावनाएं निषिद्ध हो गई हैं। किंतु व्यक्ति की अंतस चेतना में व्याप्त निरंतर और चिरंतन मनोरंजन प्राप्ति की पिपासा का समापन संभव नहीं हो पाया। अब इस आशा की पूर्ति का साधन क्या हो सकता है ? इसके नवीन साधन के रूप में अत्यंत अभिशप्त प्रकृति का ओटीटी माध्यम सामने आया है जिसको over-the-top कहते हैं। मेरी दृष्टि में यह ओवर द मोरल वैल्यू है, यह ओवर द मोरल एथिक्स है। यह ओवर द सोशल नेट है, यह ओवर द एवरीथिंग है। आप इसकी जैसे चाहे व्याख्या कर सकते हैं। व्यक्ति के जीवन की समस्त दमित इच्छाएं, वासना, दुराचारात्मक संदर्भ, विचार यह सब आप इस में नग्न रूप में प्राप्त कर सकते हैं बिना किसी प्रकार के प्रतिबंध के। इन पर आने वाले शोज में कोई बहुत सामर्थवान व्यक्ति होगा या बहुत लज्जा से रहित व्यक्ति होगा वही अपने परिवार के साथ बिना संकोच के देख सकता है! यह कौन सा सामाजिक विकास है मैं आज तक समझ नहीं पाया?
खून में और वासना से लिप्त कहानियां! अतार्किक रूप से परिवारों के भीतर पुरुषों और स्त्रियों के द्वारा प्रत्येक प्रकार के संबंधों का अतिक्रमण करके समस्त वर्जनाओ का परित्याग करके यौन आचरण का प्रदर्शन , यह सब किधर ले जा रहा है हमको समझ में नहीं आ रहा! यह कह देना बहुत सरल है कि जो लोग चाहते हैं वही हम दिखा रहे हैं, किंतु वास्तविकता यह है कि जो आप दिखा रहे हैं वही देखने के लिए लोग विवश हैं! चौराहे पर बंदरिया का नाच होता है, तब भी बहुत लोग एकत्र हो जाते हैं उसको देखने के लिए! इसका मतलब यह नहीं है कि बंदरिया का नाच किया जाना पशु अत्याचार उन्मूलन अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता।
शास्त्र का नियम है भजन,भोजन एवं भोग यह एकांत की विषय वस्तु है। लोग यह कह सकते हैं इंटरनेट पर निषिद्ध विषय वस्तु का संचार बहुत वर्षों से है और बहुत लोग उसको देखते हैं। उनका अपना दृष्टिकोण है उसको समाप्त करने के प्रयास भी फलित नहीं हुए ना कभी होंगे। किंतु मेरा मानना है कि आप स्नान तो बाथरूम में ही करते हैं और यह एक नैमित्तिक और प्राकृतिक क्रिया है किंतु यदि आप खुले में स्नान करने लगेंगे तो कुत्ते आपको काटने के लिए दौड़ेंगे। उसी प्रकार से इंटरनेट की उपलब्धता आज बहुजन तक होने के बावजूद एक आड़ बनी हुई है, किंतु जिस प्रकार से ब्रॉडबैंड और फाइबर नेटवर्क के माध्यम से घरों में गंदगी परोसी जा रही है। कुछ दिनों के बाद यह विश्वास करना कठिन हो जाएगा कि नैतिकता, आचरण गत अनुशासन एवं यौन शुचिता का कभी अस्तित्व था भी कि नहीं।
सिसकती हुई नैतिकता एवं मूल्य संरचनाएं – अट्टहास करती हुई महत्वाकांक्षा एवं वासना क्या आज हम यही देखने के लिए अभिशप्त हैं ? क्या आज समाज के यही प्रतिमान स्थापित किए जाएंगे तथा बुद्धिजीवी मात्र अरण्य रुदन करेंगे।
ऐसा हो रहा है और ऐसा क्यों हो रहा है ? अंग्रेजी का एक शब्द है (नैरेटिव ) साधन संपन्न मीडिया समूहों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने धन अर्जन के लिए यह एक नया नैरेटिव स्थापित करने का कुत्सित प्रयास प्रारंभ किया है जो निसंदेह बहुत ही प्रभावशाली है और समस्त नैतिक मान्यताओं को उसी प्रकार से भूमिसात कर देने की सामर्थ्य रखता है जिस प्रकार से समुद्र के बिगड़ जाने के उपरांत नगर ध्वस्त हो जाते हैं। उसके बाद फिर यह बात करने का कोई तात्पर्य शेष नहीं रहेगा कि नैतिकता की, मानवता की एकता की भावनाओं की, सहानुभूति की स्थिति को पुनः स्थापित कैसे किया जाए।
आप ही सीरियलों में देखिए हाथों में पिस्टल हैं और कईयों के हाथ में तो दाढ़ी बनाने वाले उसतरे हैं। खुलेआम हत्या कर रहे हैं। शासन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ पुलिस, मैं एक वर्ग के रूप में यह बात कर रहा हूं ,उस वर्ग के लोग घुटने के बल बैठ कर के माफिया का चरण चुंबन कर रहे हैं। जनता रो रही है सामर्थ्य और गुंडई नृत्य कर रहे हैं। मैं तो कहता हूं कि इन सब चीजों को देख करके कम से कम पुलिस विभाग ही किसी प्रकार का कोई कार्यक्रम संपन्न करें, कोई निषेधात्मक कार्य करें, मुकदमा करें सुप्रीम कोर्ट में, किस प्रकार से समाज एवं व्यवस्था का मान भंग हो रहा है। मानता हूं कि पुलिस में भी बहुत सारे दोष हैं लेकिन सभी बदमाश नहीं होते हैं। उनमें भी बहुत से अच्छे लोग हैं जिनके कारण समाज में पुलिसिंग हो पा रही है।
सेंसर बोर्ड तो इस पूरी पद्धति में पूर्णता अक्षम सिद्ध हुआ है ऐसा प्रतीत होता है कि ओटीटी चैनल सीधे मंगल से प्रक्षेपित किए जा रहे हैं। उनका भारत भूमि से कोई लेना देना नहीं है, जिसका जो मन आ रहा है वह दिखा रहा है। समस्त वर्जनओं से मुक्त गटर का कीचड़ जनता के कंठ में और नेत्रों में और कानों में घुसा जा रहा है l कौन इस पर दृष्टिपात करेगा? कौन है जो इस पर नियंत्रण करेगा? और मैं फिर कहता हूं यह मत कहिए कि जनता यह देखना चाहती है। आप उसे देखने के लिए विवश कर रहे हैं, इसलिए वह देख रही है।
यह इसी प्रकार से है, जैसे शराब की दुकानें खुली हुई हैं और बगल में ही गांधी जी की फोटो लगाकर के मदिरा निषेध का विज्ञापन चल रहा है। उसको लोग देखते हैं, मुंह बिचका आते हैं और दारू की दुकान में घुस जाते हैं, तो उसको प्रेरणा कौन प्रदान कर रहा है ?शासन के अंग! यदि आज उस पर नियंत्रण नहीं हुआ तो हम बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में या भारत वर्ष के भीतर बहुत सारी नैतिकता का क्षरण होने के उपरांत भी जो कुछ बचा, यदि आज उस पर नियंत्रण नहीं हुआ तो हम बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी और कम से कम भारतीय उपमहाद्वीप में या भारत वर्ष के भीतर बहुत सारी नैतिकता का क्षरण होने के उपरांत भी जो कुछ बचा रह गया है, वह भी स्वयं समाप्त हो जाएगा।
शुभम भवतु कल्याणम!!!