“जब हम परम पुरुष श्रीकृष्ण के ध्यान का स्मरण करते हैं तो
हम तीन संदर्भों से पूर्ण तरह मुक्त हो जाते हैं: शोक, मोह एवं डर “
आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज
हमारी शास्त्रीय परंपरा में वैदिक काल से ही हरि नाम स्मरण का बहुत महत्व है, इसको मनन के रूप में भी स्वीकार कर सकते हैं ।
जब हम स्मरण शब्द की व्याख्या करते हैं तो यह त्रिआयामी प्रतीत होता है। इसके तीन अंश है: स्मर, मरण एवं रण।
जब हम ईश्वर के नाम का स्मरण करते हैं तो स्मर अर्थात महत्वाकांक्षा चाहे वह स्त्री विषयक हो ,चाहे पुरुष विषयक हो चाहे धन विषयक हो ,चाहे सामर्थ्य विषयक हो ,वह सब समाप्त हो जाती हैं।
इसके अतिरिक्त स्मरण करते रहने से मरण का भय भी समाप्त हो जाता है।
इस व्यवहारिक जीवन में सबसे बड़ी बात यह होती है कि व्यक्ति इस संसार में निरंतर निरंतर चलने वाली रण अर्थात युद्ध के लिए ईश्वर की कृपा से संबंधित होकर स्वयं को तत्पर करता हुआ, उसी प्रकार से इस संसार विषयक समुद्र को पार कर जाता है जैसे कि गोपद जल अर्थात गाय के खुर से बने हुए गड्ढे में भरे जल को हम पार कर जाते हैं। वैसे ही मनुष्य संसार सागर को पार कर जाता है।
श्रीमद्भागवत के सूत्र का संकेत है, जब हम परम पुरुष श्रीकृष्ण के ध्यान का स्मरण करते हैं तो हम तीन संदर्भों से पूर्ण तरह मुक्त हो जाते हैं: शोक मोह एवं डर।
आप देखें कि हमारा जीवन इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द नाचता रहता है।
जब हम परम पुरुष श्रीकृष्ण के ध्यान का स्मरण करते हैं तो हम तीन संदर्भों से पूर्ण तरह मुक्त हो जाते हैं: शोक, मोह एवं डर।
आप देखें कि हमारा जीवन इन्हीं तीनों के इर्द-गिर्द नाचता रहता है।
भूतकाल में जो घटित हो गया उसके शोक और चिंतन में हम बहुत सारा समय नष्ट कर देते हैं ,इसके अतिरिक्त वर्तमान में जो कुछ घटित हो रहा है तथा जो हम से जुड़ा हुआ है हम उसके मोह में रहते हैं कि यह मानकर चलते हैं कि हमारे बिना तो कुछ हो ही नहीं सकता तथा हम व्यर्थ में ही भविष्य के डर को ले करके परेशान रहते हैं कि न जाने क्या घटित हो जाएगा? नाना प्रकार की आशंकाएं हमारे जीवन को घेरे रहती हैं जिस वजह से अपने वर्तमान के आनंद को प्राप्त करने से हम वंचित रह जाते हैं।
महामुनि व्यास जी कहते हैं कि नाम का उच्चारण व्यक्ति के इतने पापों को नष्ट करने की ताकत रखता है।

महामुनि व्यास जी कहते हैं कि नाम का उच्चारण व्यक्ति के इतने पापों को नष्ट करने की ताकत रखता है जितना कि व्यक्ति प्रयास करने पर भी कर नहीं सकता ।
महामंत्र अर्थात
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे
राम हरे राम राम राम हरे हरे”
का उच्चारण उसी प्रकार से समग्र पाप राशि को नष्ट कर देता है जिस प्रकार से रुई के ढेर से भरे हुए गोदाम में फेंकी गई एक चिंगारी पूरे गोदाम को नष्ट कर देती है। किंतु समस्त शास्त्र एक बात स्पष्ट कह देते हैं कि हरि नाम स्मरण नाम का उच्चारण व्यक्ति के समस्त पापों को नष्ट कर देता है इसमें तो कोई संशय नहीं है किंतु जो व्यक्ति अपने पापों की निरंतरता को बनाए रखने के लिए नाम को माध्यम के रूप में स्वीकार करता है, उस व्यक्ति के पापों को साक्षात् नारायण भी यदि चाहें तो समाप्त करने की ताकत नहीं रखते।
हरि नाम स्मरण के साथ व्यक्ति की संबद्धता एवं आस्था की प्रबलता के आधार पर ही उसके जीवन में उसकी सामर्थ्य तथा संघर्षों को करने की उसकी बलवती इच्छा प्रकट होती है। कष्टों के आने की निरंतरता को रोकना संभव नहीं है किंतु ईश्वर की कृपा से वह पुष्प वत कष्ट पहुंचा करके निकल जाएं और व्यक्ति की अपनी आस्था उसके व्यक्तित्व को यथावत बनाए रखें, यह बहुत महत्वपूर्ण है।
जिस प्रकार से आप एक छोटी कार खरीदते हैं और वह गड्ढे पर कूदती है तो उसके सस्पेंशंस इतने अच्छे नहीं होते और शरीर पर अधिक झटका लगता है जबकि एक महंगी एसयूवी पर बैठकर आप उसी गड्ढे से होकर के गुजरते हैं तो गाड़ी कूदती भी है, सस्पेंशन पर जोर भी पड़ता है किंतु शरीर को कष्ट कम होता है।
उसी प्रकार से ईश्वरी आस्था से युक्त व्यक्ति के जीवन में सांसारिक कष्टों के आगमन के होने पर भी व्यक्तित्व के नष्ट कर देने वाले संदर्भों का उतना अधिक प्रभाव नहीं होता जितना कि एक सामान्य आस्था विहीन व्यक्ति के जीवन में होता है।

व्यक्ति का व्यक्तित्व एक इनवर्टर के समान है तथा जिसमें आस्था एक माध्यम है जो ईश्वर की कृपा से सदैव चार्ज होता रहता है। यदि हम यह मान करके चलें कि प्रत्येक कार्य के लिए हम उत्तरदाई हैं हम ही सब कुछ करते हैं और हमारे अतिरिक्त हम को नियंत्रित और निर्देशित करने वाला कोई नहीं है तो अवसाद के क्षणों में कष्ट के क्षणों में हमारे पास पुनः ऊर्जा प्राप्त करने का कोई माध्यम शेष नहीं बचेगा और हम समाप्त हो जाएंगे।
और यदि हम यह मान करके चलें कि जो कुछ हो रहा है ईश्वरीय कृपा के माध्यम से ही हो रहा है और यदि किसी प्रकार की कोई हानि हुई है तो पुनः ईश्वर का नाम स्मरण करके हम पुनः अपनी सामर्थ्य को अर्जित करेंगे सफलता प्राप्त करेंगे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे तो वह कार्य तुलनात्मक रूप से अधिक सरल और सहज हो जाता है।

अतः ईश्वरी नाम का स्मरण आध्यात्मिक रूप से मूल्यवान होने के साथ-साथ मानवीय मनोविज्ञान की दृष्टि से भी अत्यंत सहायक सिद्ध होता है ।
शुभम भवतु कल्याणम!!
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परम पूज्य संत आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज
एक परिचय
परम पूज्य संत आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज राधा कृष्ण भक्ति धारा परंपरा के एक प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं।
श्रीमद्भागवत के सुप्रतिष्ठ वक्ता होने के नाते उन्होंने श्रीमद्भागवत के सूत्रों के सहज समसामयिक और व्यवहारिक व्याख्यान के माध्यम से भारत वर्ष के विभिन्न भागों में बहुसंख्यक लोगों की अनेकानेक समस्याओं का सहज ही समाधान करते हुए उनको मानसिक शांति एवं ईश्वरीय चेतना की अनुभूति करने का अवसर प्रदान किया है
आध्यात्मिक चिंतक एवं विचारक होने के साथ-साथ प्राच्य ज्योतिर्विद्या के अनुसंधान परक एवं अन्वेषणत्मक संदर्भ में आपकी विशेष गति है।
पूर्व कालखंड में महाराजश्री द्वारा समसामयिक राजनीतिक संदर्भों पर की गई सटीक भविष्यवाणियों ने ज्योतिर्विद्या के क्षेत्र में नवीन मानक स्थापित किए हैं। किंतु कालांतर में अपने धार्मिक परिवेश का सम्मान करते हुए तथा सर्व मानव समभाव की भावना को स्वीकार करते हुए महाराजश्री ने सार्वजनिक रूप से इस प्रकार के निष्कर्षों को उद्घाटित करने से परहेज किया है।
सामाजिक सेवा कार्यों में भी आपकी दशकों से बहुत गति है गंगा क्षेत्र में लगाए जाने वाले आपके शिविरों में माह पर्यंत निशुल्क चिकित्सा, भोजन आदि की व्यवस्था की जाती रही है।
उस क्षेत्र विशेष में दवाई वाले बाबा के रूप में भी आप प्रतिष्ठ हैं ।
अपने पिता की स्मृति में स्थापित डॉक्टर देवी प्रसाद गौड़ प्राच्य विद्या अनुसंधान संस्थान तथा श्री कृष्ण मानव संचेतना सेवा फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से आप अनेकानेक प्रकल्पओं में संलग्न है
जन सुलभता के लिए आपके द्वारा एक पंचांग का भी प्रकाशन किया जाता है “वत्स तिथि एवं पर्व निर्णय पत्र” जिस का 23 वां संस्करण प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है, यह निशुल्क वितरण में सब को प्रदान किया जाता है
मानव सेवा माधव सेवा आपके जीवन का मूल उद्देश्य है।