Home / Slider / “श्रीमद्भागवत कथा: दत्तात्रेय उपाख्यान-प्रथम पुष्प “

“श्रीमद्भागवत कथा: दत्तात्रेय उपाख्यान-प्रथम पुष्प “

यह शरीर एक हीरा है जिसके भीतर साक्षात् नारायण निवास करते हैं

“श्रीमद्भागवत कथा” “दत्तात्रेय उपाख्यान “

प्रथम पुष्प

आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज

जिनका मन विषयों में फंसा हुआ है वह उन कामनाओं का परित्याग कर सकें, यह बहुत कठिन और बहुत दुष्कर है। 

इस संपूर्ण संसार से किस प्रकार से अलग होकर के व्यक्ति मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो सकता है?

श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध में भगवान श्रीकृष्ण एवं उद्धव के मध्य का जो संवाद है ,उसको अवधूत गीता भी कहते हैं, यह प्रसंग उसी के अंतर्गत आता है।

मन में यह जो पूछना और उसका उत्तर देना है न, यह एक बड़ी अद्भुत स्थिति होती है। कई बार जब बात बहुत थोड़े में कहते हैं तो पूछने वाले को पूछने का मौका मिल जाता है। और कई बार जब पूछने वाला उदार होता है और स्वयं समझदार भी होता है फिर भी और लोग समझ सके इस उद्देश्य से विस्तार से पूछता है जिससे कि सारे संदर्भ स्पष्ट हो सकें।

उद्धव कहते हैं, “हे कृष्ण, समस्त प्रकार के कर्मों का, चाहे वह आध्यात्मिक हो, चाहे वह लौकिक हो, प्रत्येक प्रकार के कर्म का परिणाम या फल प्रदान करने वाले एकमात्र तुम ही हो तो तुम जो त्याग की बात करते हो! यह बात समझ में नहीं आती है क्योंकि जिनका मन विषयों में फंसा हुआ है वह उन कामनाओं का परित्याग कर सके, यह बहुत कठिन और बहुत दुष्कर है। व्यक्ति अपने जूते का, अपने कपड़ों का, अपने पेन का, अपनी पुस्तक का, अपने परिवार का त्याग करने की बात भी नहीं सोच सकता है।

ऐसी स्थिति में व्यक्ति बात तो मुक्त होने की करता है, किंतु वास्तव में यदि किसी वस्तु से या किसी स्थिति से उसका वियोग हो जाए तो उसके प्राण संकट में आ जाते हैं।

तो जब लौकिक संदर्भों से मुक्त होने की स्थिति सही नहीं है तो इस संपूर्ण संसार से किस प्रकार से अलग होकर के व्यक्ति मुक्त होने की दिशा में अग्रसर हो सकता है?

उद्धव कहते हैं कि आप उपदेश प्रदान करने के लिए नितांत उपयुक्त पात्र हो क्योंकि आप ज्ञानी हो, आपका शील और स्वभाव अत्यंत उत्तम है और आप अनंत हो। मृत्यु के उस पार तक अर्थात आपका कोई समापन नहीं है और उसके साथ-साथ आप ज्ञानी होने के साथ-साथ आप रक्षा करने की सामर्थ्य से भी युक्त हो। अतः आपके द्वारा प्रदत उपदेश अतः आपके द्वारा प्रदत उपदेश हृदय में स्थापित होगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

 ज्ञान की उपयोगिता तभी है जब प्रदान करते समय कोई उपयुक्त पात्र सामने आ जाए और उस ज्ञान को हृदय में स्थापित करते हुए उसके आगे प्रसार में सहायक भी सिद्ध हो। 

जब इतने समर्पण के साथ कुछ सीखने वाला कोई चेला मिल जाए तो गुरु की आत्मा भी बहुत प्रसन्न होती है। क्योंकि आप भी अपने जीवन में देखो कि आप सुंदर आम के रस का पदार्थ तैयार करो और किसी की अपेक्षा करो कि वह उसे आकर के ग्रहण करें, किंतु यदि वह व्यक्ति न आवे तो ऐसा लगता है कि जो हमने बनाया वह व्यर्थ हो गया। उसी प्रकार ज्ञान की उपयोगिता तभी है जब प्रदान करते समय कोई उपयुक्त पात्र सामने आ जाए और उस ज्ञान को हृदय में स्थापित करते हुए उसके आगे प्रसार में सहायक भी सिद्ध हो।

अपनी आत्मा को भी गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है। अर्थात जब किसी बात के लिए आपको आपकी अपनी आत्मा धिक्कार रही हो तो प्रयास करें कि उस कार्य की पुनरावृत्ति न करें और जो अपने हृदय की आवाज को सुनना बंद कर देते हैं वह तो पशु तुल्य हो जाते हैं और उनके पतन का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।

देखो क्या है कि इस जीवन में व्यक्ति को दुख सहन करना आता है, यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। उसको सुख भी सहन करना आना चाहिए।

दुख में दब जाना और सुख में बह जाना, यह जीवन के और व्यक्तित्व के नाश का कारण बनता है। इस भाव से चलते रहना ही जीवन की निरंतरता को सिद्ध करता है।

अत्यंत अलौकिक मनुष्य शरीर को प्राप्त करके भी हमने इस शरीर के भीतर आत्मा में निवास करने वाले वासुदेव का अनुभव प्राप्त नहीं किया तो यह उसी प्रकार से है, जैसे हमने अपने हाथ में आए हुए किसी बहुमूल्य रत्नों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया हो और देखो, जहां तक शरीर का सवाल है, तो यह शरीर एक हीरा है जिसके भीतर साक्षात् नारायण निवास करते हैं। संसार के विषय कूड़ा हैं, इसमें कोई संदेह नहीं और यही हीरा कीड़ों से लिपटा हुआ अपनी चमक को निरंतरता में खो रहा है और उसको तराश करके चमक दे सके, ऐसा कोई गुरु ढूंढने की जो एक प्रतिबद्धता होनी चाहिए, वह व्यक्तियों में दिखाई ही नहीं देती है।

बड़ी हास्य की बात है आप देखो कई-कई प्रकार के जानवर होते हैं, कई प्रकार के कीड़े होते हैं। उनके चार चार 6-6, 8-8 पैर होते हैं। अगर मनुष्य की बात कहें तो उसके भी न्यूनतम 2 पैर होते हैं और दो हाथ होते हैं किंतु उसके साथ उसका विस्तार भी होता है। जब तक ब्रह्मचारी थे, अविवाहित थे, तब तक दो और दो हाथ से युक्त हो गए तो चार-पांच हाथ वाले हो गए और बेटा भी हो गया। अब बोलो! और अगर अधिक बच्चे हो गए तो अधिक हाथ बढ़ गए! अब ये जितने हाथ पैर हैं, फिर आएंगे। इनका खून चूसो, उनसे खून चूसो, यही जिंदगी चलती रहती है और ईश्वर के नाम का स्मरण करने का तो अवसर ही प्राप्त नहीं होता है।

अंतर्मुखी होकर आत्म चैतन्य के भीतर ही ईश्वर का अनुसंधान करने की प्रक्रिया को प्रारंभ करने के बाद ही हम इस ब्रह्मांड में व्याप्त नारायण या परम ब्रह्म को जानने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।

जब हम खुद को ही जान नहीं पाए तो हम ईश्वर को जानने का दावा या उस प्रक्रिया के लिए अपने आप को योग्य मानने का दावा कैसे कर सकते हैं? अतः इस संसार से तथा इस में व्याप्त विभिन्न संदर्भों से ज्ञान किस प्रकार से प्राप्त करके स्वयं को विकसित और ईश्वर की प्राप्ति के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए योग्य बनाया जा सकता है?

इसी बात का सुंदर दर्शन करते हुए श्रीमद्भागवत के एकादश स्कंध में महाराज यदु एवं दत्तात्रेय का उपाख्यान श्री कृष्ण के द्वारा उद्धव जी को प्रदान किया गया। वह कहते हैं कि यह उपाख्यान अत्यंत प्राचीन है और वंश परंपरा में इसे बहुत लोगों ने कहा है और मैं भी वही आपको सुनाने का बताने का प्रयास करता हूं। यह उपाख्यान अमित तेजस्वी अवधूत दत्तात्रेय एवं अमित तेजस्वी महाराज यदु का संवाद है। अमित अर्थात जिसकी कोई सीमा न हो।

अवधूत वह है, जो त्याज्य वेशभूषा से युक्त हो, जिसको देखकर के लोग मुस्कुराए, हंसे और मजाक करें। जिसको समझने के लिए बौद्धिक व्यायाम करना पड़े। जो उस समाज से थोड़ा हटकर के चल रहा हो किंतु यदि आप उसको समझ ले तो आप समाज में सुप्रतिष्ठ हो सकते हैं।

यह एक दीर्घकालिक संदर्भ है। निरंतरता में दीर्घकाल पर्यंत चलता रहेगा। 
अस्तु !!!
शुभम भवतु कल्याणम

“”””””””””””””””””””

परम पूज्य संत आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज

एक परिचय

परम पूज्य संत आचार्य श्री अमिताभ जी महाराज राधा कृष्ण भक्ति धारा परंपरा के एक प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं।
श्रीमद्भागवत के सुप्रतिष्ठ वक्ता होने के नाते उन्होंने श्रीमद्भागवत के सूत्रों के सहज समसामयिक और व्यवहारिक व्याख्यान के माध्यम से भारत वर्ष के विभिन्न भागों में बहुसंख्यक लोगों की अनेकानेक समस्याओं का सहज ही समाधान करते हुए उनको मानसिक शांति एवं ईश्वरीय चेतना की अनुभूति करने का अवसर प्रदान किया है
आध्यात्मिक चिंतक एवं विचारक होने के साथ-साथ प्राच्य ज्योतिर्विद्या के अनुसंधान परक एवं अन्वेषणत्मक संदर्भ में आपकी विशेष गति है।
पूर्व कालखंड में महाराजश्री द्वारा समसामयिक राजनीतिक संदर्भों पर की गई सटीक भविष्यवाणियों ने ज्योतिर्विद्या के क्षेत्र में नवीन मानक स्थापित किए हैं। किंतु कालांतर में अपने धार्मिक परिवेश का सम्मान करते हुए तथा सर्व मानव समभाव की भावना को स्वीकार करते हुए महाराजश्री ने सार्वजनिक रूप से इस प्रकार के निष्कर्षों को उद्घाटित करने से परहेज किया है।
सामाजिक सेवा कार्यों में भी आपकी दशकों से बहुत गति है गंगा क्षेत्र में लगाए जाने वाले आपके शिविरों में माह पर्यंत निशुल्क चिकित्सा, भोजन आदि की व्यवस्था की जाती रही है।
उस क्षेत्र विशेष में दवाई वाले बाबा के रूप में भी आप प्रतिष्ठ हैं ।
अपने पिता की स्मृति में स्थापित डॉक्टर देवी प्रसाद गौड़ प्राच्य विद्या अनुसंधान संस्थान तथा श्री कृष्ण मानव संचेतना सेवा फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से आप अनेकानेक प्रकल्पओं में संलग्न है
जन सुलभता के लिए आपके द्वारा एक पंचांग का भी प्रकाशन किया जाता है “वत्स तिथि एवं पर्व निर्णय पत्र” जिस का 23 वां संस्करण प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है, यह निशुल्क वितरण में सब को प्रदान किया जाता है।

मानव सेवा माधव सेवा आपके जीवन का मूल उद्देश्य है।

Check Also

PM Modi being welcomed by Indian Community in Dubai

Prime Minister being welcomed by Indian Community in Dubai