मायावती के भतीजे आकाश का वर्चस्व बढऩे के बाद से पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले दूसरे नंबर के नेता अब अपने को उपेक्षित सा महसूस कर रहे है इसलिए उनके साथ ही उनके समर्थकों को नये ठीहे की जरूरत महसूस होती दिख रही है।
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। तेलगूदेशम, सपा और कांग्रेस में सेंध लगाने के बाद भारतीय जनता पार्टी अब यूपी में बहुजन समाज पार्टी में बड़ी सेंध की तैयारी में दिख रही है। हांथी का बोझ हल्का करने की गरज से राज्यसभा सदस्यों के साथ ही लोकसभा के निर्वाचित दस सदस्यों में से बसपा के छह सदस्य भाजपा नेतृत्व के संपर्क में बताए जा रहे है।
अभी तक बसपा के संकटमोचक कहे जाने वाले पार्टी में दूसरे नंबर के नेता जिन्हे चाणक्य कहा जाता है वो भी यदि हांथी से उतर कर हांथ में कमल ले ले तो राजनीतिक विश्लेषकों को कोई हैरानी नहीं होगी। बसपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के भतीजे आकाश का वर्चस्व बढऩे के बाद से पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले दूसरे नंबर के यह नेता अब अपने को उपेक्षित सा महसूस कर रहे है इसलिए उनके साथ ही उनके समर्थकों को नये ठीहे की जरूरत महसूस होती दिख रही है। विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद लोकसभा चुनाव में भले बहुजन समाज पार्टी को थोड़ी आक्सीजन मिल गई हो लेकिन इसका के्रडिट पार्टी के बजाए गठबंधन को ही दिया जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद अब यूपी में होने वाले एक दर्जन विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनावों में जहां अकेले लडऩें जा रही है।
जानकारों की माने तो बसपा को इन उपचुनावो में आटे दल का भाव पता लगेगा उससे पहले ही पार्टी के भीतर बड़ी टूट की सुगबुगाहट ने पार्टी के बाकी नेताओं की बैचेनी बढ़ा दी है। बहुजन समाज पार्टी को सबक सिखाने के लिए भाजपा यह समय मुफीद मान रही है। तीन बार भाजपा को गच्चा दे चुकी बसपा ने जिस तरह महागठबंधन तोड़कर सपा को झटका दिया है उसी तर्ज पर अब भाजपा विधानसभा उपचुनाव से पहले उसे ऐसा सबक सिखाने की तैयारी में जिससे उबरने में उसे काफी लंबा वक्त लगे। इस समय यूपी से बसपा के दस सांसद है जिनमें तीन मुस्लिम है। यदि पार्टी के छह सांसद एक मुश्त भाजपा के पाले में खड़े हो जाएंगे तो उनपर दलबदल का कानून भी लागू नहीं होगा। दूसरे दलों से आए जो लोग बसपा से सांसद बने है वो इन दिनों पार्टी की रवैये को लेकर खासे नाराज बताए जा रहे है। बसपा से सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे इन संासदों को इस बात का बखूबी एहसास है कि केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार होने के नाते उन्हे अगले पांच साल तक सांसदी में ही सब्र करना पड़ेगा। यदि भाजपा से मंत्रिमंडल में शामिल करने या लाभ का कोई दूसरा पद मिलने का आश्वासन मिलता है तो उन्हे पाला बदलने मेे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। बसपा और मायावती में निष्ठïा समर्पण दिखाने वालों का क्या हश्र होता है यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में जो भी सांसद चुनकर आए है उन्हे इस बात का बखूबी एहसास है कि वो कहां क्या कितना खर्च करके आए है उसके बाद भी उनपर निलंबन या निष्कासन की गाज गिर जाए किसी को पता नहीं है। केन्द्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार होने से सांसदों को लगता है कि उन्हे बसपा का होने की सजा मिल रही है। सपा से गठबंधन टूटने के बाद अब भाजपा नेतृत्व को बसपा में बड़ी सेंध लगाने की राह आसान लग रही है। अभी तक विधानसभा के उपचुनाव नहीं लड़ती थी लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में दस सीटे मिलने के बाद उत्साहित बसपा ने विधानसभा की दस सीटों पर होने वाले उपचुनावों में अपना दमखम दिखाने की तैयारी की है। लोकसभा चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता के बाद भाजपा उसी तरह की सफलता इन उपचुनावों में भी चाहती है। गठबंधन टूटने के बाद अब उसे इन उपचुनावों में सपा के साथ ही बसपा से भी चुनौती मिल सकती है। अभी तक यूपी में भाजपा ने सपा को ही एक के बाद कई झटके दिए है अब बारी बसपा की है। कांग्रेस में तोडऩे के लिए कुछ है नहीं है। यदि भाजपा का यह आपरेशन कामयाब रहा तो बसपा के लिए बड़ा झटका होगा। दस में जो छह सांसद टूटने वालों की जमात में शामिल है उनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक सांसद की भूमिका प्रमुख बताई जा रही है।
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