अपराधियों के लिए सुरक्षित ठौर बनती जा रही राजधानी
बेखौफ, लखनऊ में आश्रय पा रहे अपराधी
रसूखदारों तक नहीं पहुंच पा रही पुलिस
ए अहमद सौदागर
लखनऊ।
27 अक्टूबर 2010 को विकासनगर में सीएमओ परिवार कल्याण डॉ विनोद कुमार आर्या दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या।
इसके ठीक 6 महीने बाद दो अप्रैल 2011 विभूतिखंड क्षेत्र में डॉ बीपी सिंह को सरेराह ताबड़तोड़ फायरिंग कर गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया गया।
10 मार्च 2014 को रिवर बैंक कॉलोनी निवासी रिटायर्ड प्रोफेसर एमवी त्रिवेदी व इंदिरानगर में अवर अभियंता सत्यनारायण वर्मा की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या।
27 फरवरी 2015 को हसनगंज क्षेत्र में भरी दोपहर में तीन लोगों की हत्या।
5 मार्च 2016 विकासनगर में बागपत जेल में मारे गए माफिया ओमप्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी के साले पुषपजीत सिंह व उसके साथी संजय मिश्रा को गोलियों से भून दिया गया।
5 मार्च को ही गोमतीनगर के मिठाई वाला चौराहे पर इंदिरा नगर निवासी रितेश अवस्थी की सरेआम गोली मारकर हत्या।
एक दिसंबर 2017 गोमतीनगर में मुन्ना बजरंगी के करीब मोहम्मद तारिक की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
इन संगीन वारदातों को शाय़द लोग भुला भी नहीं पाए थे कि 6 जनवरी 2021 को देर शाम विभूतिखंड क्षेत्र स्थित कठौता चौराहे पर जनपद मऊ निवासी पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह की हत्या कर बदमाशों ने सनसनी फैला दी।
राजधानी लखनऊ पुलिस की सक्रियता और कानून-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त होने के दावे के लिए फिलहाल 11 हुई सगीन वारदात बयां करने के लिए काफी है।
आजमगढ़ जिले के सगड़ी विधानसभा से पूर्व विधायक सर्वेश सिंह उर्फ सिपू हत्याकांड में मुख्य गवाह रहे पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह की हुई हत्या ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजधानी लखनऊ अपराधियों के लिए मजबूत ठौर है और शातिर अपराधियों व शूटरों की शरणस्थली बन चुकी है।
अपराध की दुनिया में दखल देने वाले श्री प्रकाश शुक्ला व बबुआ तिवारी जैसे शूटरों के बाद एक बार फिर शहर में उसी तरह की जघन्य घटनाएं करने वाले बदमाश पनप रहे हैं।
जिस तरह से भीड़भाड़ वाले चौराहे कठौता चौराहे बाइक सवार बदमाशों ने पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह की हत्या गवाह है।
चन्द रुपयों के लिए बेधड़क होकर किसी को भी मौत के घाट उतारने वाले यह बदमाश भले ही गैर जिलों के रहने वाले हों, लेकिन लखनऊ शहर में उनकी पैठ गहरी है।
कई मुकदमे वाले पूर्व ब्लॉक प्रमुख अजीत सिंह हत्याकांड के बाद यह सवाल अब पुलिस अधिकारियों को बेचैन कर रहा है। कड़वा सच यह भी है कि राजधानी लखनऊ के बाहरी इलाकों में बनी ऊंची-ऊंची इमारतें भी खतरे से कम नहीं साबित हो रही है, लिहाजा इन आलीशान बंगलों में चाहकर भी पुलिस पता लगाने में कामयाब नहीं हो पाती कि यहां किस किस्म के लोग रहते हैं शरीफ़ या फिर अपराधीॽ
विभूतिखंड में 6 जनवरी 2021 की देर शाम दो बाइक सवार बदमाश हाथों में लिए असलहों से ताबड़तोड़ फायरिंग की और अजीत को मौत की नींद सुला दिया।
इस सनसनीखेज में आजमगढ़ जिले के जीयनपुर कोतवाली क्षेत्र स्थित छपरा गांव निवासी कुंटू सिंह और एक बाहुबली सांसद का नाम प्रकाश में आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कड़ा रुख देख पुलिस की जांच पड़ताल तेज़ तो हो गई लेकिन शूटर अभी तक हाथ नहीं लग सके।
दो सीएमओ की हत्याकांड का पर्दाफाश करने पर तत्कालीन पुलिस अफसरों ने भी स्वीकार किया था कि गोली चलाने वाले शूटरों की लखनऊ में गहरी पैठ थी। अजीत हत्याकांड के बाद एक बार फिर वही सवाल पुलिस के लिए बना हुआ है। भले ही शूटर गैर जनपदों से यहां बुलाए गए हों उन्हें शहर में शरण देने कौन है ॽ आखिर कौन ऐसा शख्स, जिसकी मदद से ऐसी घटनाएं करने के बाद आसानी से फरार हो जाते हैं।
फिलहाल अजीत सिंह की जान लेने वाले कातिलों तक पहुंचने के लिए यूपी के अलावा मध्यप्रदेश और मुंबई तक पुलिस की टीमें डेरा डाले हुए। हालांकि की कातिल अभी पुलिस की पकड़ से दूर हैं।
पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर का कहना है कि जितना भागना हो भाग लें शूटर पुलिस से बच नहीं सकते।