के.एम.अग्रवाल
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव जनवरी से मार्च के बीच होने के संकेत हैं, और इसी बीच कार्यकाल के अंतिम दौर में महराजगंज जिला पंचायत में ‘खेला’ हो गया। भाजपा के कहे जाने वाले जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभुदयाल चौहान के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार शासन ने गत 24 नवंबर, 2020 को सीज कर दिया। उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाये गये हैं। इसी के साथ भाजपा और सपा के बीच राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी हैं।
अन्य जिलों के लोग कम लेकिन महराजगंज और आसपास जिलों के थोड़ी भी राजनीतिक समझ रखने वाले जानते हैं कि 1995 में गोरखपुर से हटाकर महराजगंज जिला पंचायत के गठन के बाद से ही यहां के अब तक लगातार (एक बार छोड़कर) छह बार के भाजपा सांसद पंकज चौधरी के परिवार में ही जिला पंचायत रहा है। 1995 में पहली बार पंकज चौधरी के भाई प्रदीप चौधरी अध्यक्ष हुए। इसके बाद लगातार दो बार 2000 और 2005 में इनकी मां उज्ज्वला चौधरी जिला पंचायत अध्यक्ष हुईं। 2010 के चुनाव तक उनकी मां काफी वृद्ध हो चुकी थीं, तो किसी कठपुतली महिला की तलाश शुरू हुई। और तब भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता नंदलाल की अंगूठा छाप, घर पर बकरी चराने वाली पत्नी श्रीमती धर्मा देवी मिल गयीं, जिन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया गया। अध्यक्ष बन जाने के बाद उन्हें किसी प्रकार हस्ताक्षर करना सिखा दिया गया।
2015 का चुनाव आया तो सांसद पंकज चौधरी ने अपने भतीजे राहुल चौधरी को निचलौल क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव पूरे दमखम से लड़वाया, जिससे कि उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा सकें, लेकिन दुर्भाग्यवश राहुल हार गये। और तब फिर ‘यस मैन’ की तलाश शुरू हो गयी। दो तीन भाजपाई नामों में प्रभु दयाल का नाम पंकज जी को ठीक लगा और प्रभु दयाल को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवा दिया गया।
बताया जाता है कि शुरू के दो साल तक प्रभु दयाल पूरी तरह पंकज जी के लिए समर्पित थे और वही सब कुछ करते थे, जैसा कि उन्हें संकेत मिलता था। लेकिन इसके बाद से दोनों के बीच तथाकथित वैचारिक मतभेद बढ़ने लगे। वैसे वास्तविकता यह बतायी जाती है कि प्रभु दयाल को अब गुलामी रास नहीं आ रही थी और वह कुछ कुछ अध्यक्ष के अधिकार का स्वयं अपने मन से इस्तेमाल करना चाहने लगे।
प्रभु दयाल को डाउन करने के लिए एक दिन उनकी कार से एक साइकिल को टकरा दिया गया और उनके खिलाफ थाने में साइकिल सवार की ओर से एफ आई आर करवा दिया गया। और प्रभु दयाल हाथ पैर मारना बंद कर शांत हो गये। लेकिन अंदर ही अंदर उनका दम घुट रहा था।
एक दिन अखबारों में समाचार आया कि प्रभु दयाल ने लखनऊ जाकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश सिंह यादव से मुलाकात की है और उन्हें गुलदस्ता भेंट किया है। यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी। राजनीति के क्षेत्र में यहां सुगबुगाहट शुरू हो गयी। तरह तरह के कयास लगाए जाने लगे। और फिर समाचार आ गया कि उन्होंने भाजपा छोड़कर 27 अक्टूबर को सपा की सदस्यता ले ली है।
यह स्थिति अब सांसद पंकज चौधरी के लिए घबराहट पैदा करने वाली थीं। कुछ प्लानिंग हुई है। प्रभु दयाल के निकट के ही कुछ लोगों द्वारा उन पर भ्रष्टाचार का लिखित आरोप लगवाया गया। आरोप भी ऐसे ऐसे थे, जो आज के समय की राजनीति में बहुत ही साधारण माने जाते हैं। आरोप लगाये गये कि जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभु दयाल ने जिला पंचायत की गाड़ी का व्यक्तिगत कार्यों में इस्तेमाल किया, जिला पंचायत में किसी रिश्तेदार की गाड़ी को लाभ पाने की दृष्टि से किराये पर लगवा दी, कार्ययोजना को पहले निरस्त किया और फिर स्वयं ही बहाल कर दिया तथा अपने किसी चहेते को ठेकेदारी के लिए जिला पंचायत में रजिस्ट्रेशन करवा दिया।
बताया जाता है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव स्वयं में भ्रष्टाचार का उदाहरण बन चुका है। आरोप है कि चाहे ब्लाक प्रमुख का चुनाव हो या जिला पंचायत अध्यक्ष का, खुलकर सदस्य खरीदें जाते हैं। महराजगंज जिला पंचायत का 75-80 करोड़ का सालाना बजट स्वयं में एक चुंबक है।
शासन ने जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभु दयाल के सभी पावर सीज करने के साथ ही तीन सदस्यों की एक कमेटी भी बना दी, जो जांच पूरी होने तक जिला पंचायत का कार्य देखेगी। कमेटी के तीनों सदस्यों ने 25 नवंबर को अपना कार्यभार भी ग्रहण कर लिया। गोरखपुर के मंडलायुक्त आरोपों की जांच करेंगे।
कुछ लोगों का कहना है, प्रभु दयाल ने यदि समझदारी से काम लिया होता तो पावर सीज होने की नौबत नहीं आती, बल्कि मामला उलझा रहता और वह आसानी से अपना कार्यकाल पूरे अधिकार के साथ पूरा कर लेते।
बहरहाल, जिला स्तर पर सपा पार्टी अब खुलकर सामने आ गयी है। स्वयं प्रभु दयाल का कहना है कि उनपर लगाते गये सभी आरोप मनगढ़ंत हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि जब तक वह भाजपा में थे, ईमानदार थे और भाजपा छोड़कर सपा में जाते ही भ्रष्ट हो गये? यदि वह भ्रष्ट थे तो आरोप लगाने वाले आज के पहले कहां थे, चुप क्यों थे ?
उन्होंने खुलकर कहा है कि 1995 से हुए सारे कार्यों की ईमानदारी से जांच होनी चाहिए। यदि ऐसी जांच हो जाय, तो भ्रष्टाचार की पोल खुल जायेगी।
सपा जिलाध्यक्ष आमिर हुसैन ने भी भाजपा पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष राजेश यादव ने तो खुलकर कहा है कि प्रशासनिक अधिकार सीज करना सत्यता का खुला दुरुपयोग है। जिला पंचायत एक ही व्यक्ति की मुट्ठी में कैद होकर रह गया है। जिला पंचायत अध्यक्ष प्रभु दयाल ने अपने अधिकारों का प्रयोग करना शुरू किया तो बौखलाहट बढ़ गयी।
सपा के पूर्व सांसद कुंवर अखिलेश सिंह ने कहा है कि जिला पंचायत अध्यक्ष ने कोई वित्तीय अनियमितता की है तो जिला पंचायत के अपर मुख्य अधिकारी को भी निलंबित किया जाना चाहिए, क्योंकि वह भी जिम्मेदार हैं।
वैसे भाजपा के जिलाध्यक्ष परदेशी रविदास ने कहा है कि महत्त्वकांक्षा में किसी को अपनी नैतिकता नहीं भूलनी चाहिए। पूरे प्रकरण की जांच के बाद सच्चाई सामने आ जायेगी।
सांसद पंकज चौधरी ने इस मामले में शुरू में ही कहा था कि लोकतंत्र में किसी को भी अपना निर्णय लेने का अधिकार है।
वैसे एक बात तय है कि जिला पंचायत का अगला चुनाव संपन्न होने के पहले इस प्रकरण की जांच पूरी नहीं होगी। इस बात की भी चर्चा होती रहती है कि ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जब तक सीधे न होकर, इसके सदस्य करते रहेंगे, भ्रष्टाचार समाप्त होने वाला नहीं है।