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इलाहाबाद और लखनऊ हाईकोर्ट बेंच 8 मई से शिफ्ट में सुनवाई करेंगी

जे.पी. सिंह

कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण लॉकडाउन के तीसरे चरण के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद और लखनऊ में “शिफ्ट” में काम करने का फैसला किया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने न्यायालय की गर्मियों की छुट्टी रद्द की और उस दौरान नियमित सुनवाई का फैसला किया है।
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, उच्च न्यायालय की बेंच 8 मई, 2020 से दो अलग-अलग शिफ्ट में आपराधिक और सिविल मामलों के लिए अलग-अलग सत्रों में खुलेगी। नोटिस में कहा गया है कि प्रत्येक सत्र के लिए समय सुबह 10.30 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक और दोपहर 1.30 बजे से 3.30 बजे तक होगा। अदालतों का संचालन करते समय सामाजिक दूरी से संबंधित सभी प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा।

नोटिस में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने अर्जेंट आवेदन” दाखिल करने की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया है और कहा है कि सभी ताजा मामलों को मैन्युअल रूप से और साथ ही इलेक्ट्रॉनिक मोड द्वारा ताजा मामलों को लेने के लिए दायर किया जा सकता है। कोई भी आग्रह करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी। इस अवधि के दौरान सुचारू कामकाज के लिए उच्च न्यायालय जल्द ही अन्य तौर-तरीकों की सूचना देगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी हाईकोर्ट खंडपीठ के साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों में नियमित कार्य को स्थगित रखने के आदेश को जारी रखने का संकल्प लिया है। हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति की एक बैठक में यह प्रस्ताव पास किया गया है कि इस अवधि के बदले, जून के महीने में गर्मियों की छुट्टी की अवधि के दौरान उच्च न्यायालय खुला रहेगा। 22 जून से 26 जून 2020 के बीच की अवधि के अवकाश को रद्द कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि समिति ने राज्य में अधीनस्थ या वाणिज्यिक न्यायालयों के लिए ग्रीष्मकालीन अवकाश को संशोधित नहीं किया है।

बैठक के कार्यवृत्त के अनुसार इलाहाबाद में हाईकोर्ट के न्यायलय के अधीनस्थ न्यायालयों में उपयोग के लिए अनुमोदित कैलेंडर 2020 में कोई बदलाव नहीं करने का संकल्प लिया गया। इस बैठक में मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और जस्टिस पीके जायसवाल, जस्टिस भारती सप्रू, जस्टिस पंकज मितल, बाला कृष्ण नारायण, बच्चू लाल और दिनेश कुमार सिंह, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शामिल हुए।
इस बीच ई-फ़ाइलिंग से जुड़े मामलों को लेकर हाईकोर्ट और अधीनस्थ कोर्ट को एक एसओपी जारी करने के लिए निर्देश देने की मांग के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र याचिका भेजी गई है। इस विषय में आवेदन/पीआईएल एडवोकेट सैयद मोहम्मद हैदर ने दायर किया है। याचिका में कहा गया है कि ज़रूरी मामलों की ई-सुनवाई वकीलों और मुक़दमादारों को सहूलियत नहीं दे रही है, जैसा कि सोचा गया था और इसके कई कारण हैं और इन पर अदालत को ग़ौर करने की ज़रूरत है। चूंकि अभी इस बात की उम्मीद कम है कि आने वाले कुछ महीनों में पूर्व की तरह सुनवाई हो पाएगी, इस पीआईएल में कहा गया है कि ई-फ़ाइलिंग और ई-सुनवाई के बारे में स्पष्टता और उसके सरलीकरण के लिए एसओपी बनाए जाने की ज़रूरत है।
याचिका में जिन मुद्दों को उठाया गया है और जिनके बारे में अदालत से निर्देश देने को कहा गया है वे इस तरह से हैं कि किसी वक़ील को कैसे पता चलेगा कि उसने तत्काल सुनवाई के लिए जो अर्ज़ी दी है, वह उस मेल आईडी पर पहुंच गई है। इस बारे में क्यों नहीं उसी मेल आईडी से स्वतः जवाब दिया जाए? एचसी फ़ाइलिंग को जो लोग काम देख रहे हैं, उन सभी अधिकारियों से संपर्क का विवरण हाईकोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध होना चाहिए।
इस बात को कैसे सुनिश्चित किया जाए कि ई-फ़ाइलिंग को संभालने वाला क्लर्क किसी वक़ील के मेल को हटा नहीं सकता। ऐसा नहीं हो इसके लिए क्या उपाय है? हाईकोर्ट में ई-फ़ाइलिंग का एसओपी क्या है और अधीनस्थ अदलत का एसओपी क्या होगा? हाईकोर्ट के ई-फ़ाइलिंग के मेल बॉक्स की क्षमता क्या है? अगर मेल वापस आ जाए तो कोई क्या करें? मेल को डिलीट करने के लिए कौन अधिकृत है और कब -कब वह ऐसा कर सकता है? क्या मेल को आर्काइव कारने का कोई तरीक़ा है?
वरिष्ठ जज के पास मामले को कितनी बार और क्या मेल मिलने के तुरंत बाद रखा जाता है? इसका निर्णय कौन करता है कि मामले को तत्काल या बाद में कब जज के समक्ष रखना है? 7. इसी तरह की प्रक्रिया निचली अदालत में सुनवाई के लिए क्यों नहीं है, जहां हज़ारों लोग बिना सुनवाई के जेलों में पड़े हैं? वहां भी ई-सुनवाई क्यों नहीं की जाती? निचली अदालत में भी ई-सुनवाई की पूरी व्यवस्था की जानी चाहिए। मामले में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के लिए हाईकोर्ट को अपनी वेबसाइट पर प्राप्त याचिकाओं का डेली डैशबोर्ड प्रकाशित करना चाहिए ताकि वक़ील और मुवक्किल यह जान सकें कि उनके मामले की सुनवाई होगी। हाईकोर्ट सभी ज़िला अदालतों कि लिए ऐसे वक़ील को एमिकस क्यूरी नियुक्त करे जो कंप्यूटर का प्रयोग जानते हैं और जो ई-प्रक्रिया से अवगत हैं। याचिका में अदालत से राज्य के नागरिकों के हित में इन बातों पर ग़ौर करने का आग्रह किया गया है।

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