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“नव संकल्पों के साथ नए वर्ष का स्वागत!!!”: रंजन श्रीवास्तव

(अमृत कलश: 4)

रंजन श्रीवास्तव/ भोपाल

समय है नव वर्ष पर नव संकल्पों का। 

सभी की यही कामना होती है कि नव संकल्पों के साथ नव वर्ष की शुरुआत हो। वैसे 2025 पिछले अन्य वर्षों से थोड़ा भिन्न है और हम इस वजह से अपने नव संकल्पों को एक नया दृष्टिकोण दे सकते हैं I यह वर्ष ऐसा है कि इसके समाप्त होते ही 21वीं शताब्दी का एक चौथाई समय समाप्त हो चुका होगा। इसलिए इस वर्ष के शुरुआत में सरकार हो या कोई व्यक्ति जिन्होंने इस समय काल को जिया है, अपने संकल्पों के साथ साथ एक आत्मचिंतन कर सकता है कि वह इन बीते 24 वर्षों में प्रगति के किन सोपानों को वह हासिल कर सका; कहाँ कुछ बाक़ी रह गया; क्या क्या बाधाएँ रहीं और अभी तक के यात्रा से सीख लेते हुए हमारा आगे का रोडमैप और लक्ष्य क्या रहेगा जिससे जब हम 2025 के अंतिम सोपान पर खड़े हों तो एक नई उपलब्धि हमारा स्वागत कर रही होI

जहाँ तक सरकार का प्रश्न है तो सबसे बड़ा संकल्प तो यही होगा कि उन संकल्पों को जो हम पिछले दो दशकों से सुनते आये हैं उनको साकार किया जाय। वर्ष समाप्त होने से पहले प्रदेश में विकास की दृष्टि से जो अच्छी बात हुई है वह है केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखा जाना तथा मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के बीच पार्वती कालीसिंध चंबल लिंक परियोजना के सहमति पत्र पर हस्ताक्षर होना I मोहन यादव सरकार इन दोनों परियोजनाओं को गति मिलने से केंद्र सरकार को धन्यवाद दे रही है और इसे डबल इंजन सरकार की उपलब्धि बता रही है I

चूँकि राजस्थान में भी भाजपा सरकार है अतः ऐसी आशा की जा रही है कि पार्वती कालीसिंध और चंबल परियोजना के क्रियान्वयन में भी कोई बाधा नहीं आएगी I अगर समय पर ये परियोजनाएं पूरी होती हैं तो जाहिर है मध्य प्रदेश में कृषि क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी तथा पेयजल की उपलब्धता भी बढ़ेगी। इन परियोजनाओं के संदर्भ में पर्यावरणविदों की भी चिंताएँ हैं । आशा है सरकार उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं करेगी ।

अपने कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने वृहद नदी जोड़ो परियोजनाओं के तर्ज पर प्रदेश के अंदर अन्य नदियों को जोड़ने की बात कही ख़ासकर उन्होंने इंदौर के कान्ह नदी तथा उज्जैन में क्षिप्रा नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का ज़िक्र किया । देखना यह है कि इस वर्ष ऐसी नदियों को पुनर्जीवित करने के कार्य पर सरकार क्या कदम उठाती है ।

सरकार क्षेत्रीय निवेशक सम्मेलनों के बाद ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को लेकर तैयारी कर रही है । पिछले दो दशकों में आयोजित किए गए इन्वेस्टर्स समिट से औद्योगीकरण के क्षेत्र में प्रदेश की कोई बड़ी तस्वीर बदली हो ऐसा दिखता नहीं । देखना है कि 2025 में सरकार ऐसा क्या करती है कि बड़े निवेशकों का मध्य प्रदेश में निवेश के प्रति आकर्षण बढ़े । सबसे बड़ी चुनौती है किसानों की आय को दुगुना करना । क्या 2025 में सरकार इस दिशा में कोई ऐसा ठोस और महत्वपूर्ण कदम उठाती है जिससे किसानों के चेहरे पर मुस्कान आए ? इस नए वर्ष में सरकार खासकर मुख्यमंत्री के लिए यह भी आत्मचिंतन का विषय होना चाहिए कि क्या कारण है कि मध्य प्रदेश में सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगा पायी? क्या कारण है कि गरीब व्यक्ति तो आज भी दो वक्त के रोटी के लिए संघर्ष कर रहा है पर सरकारी व्यवस्था में गले गले तक धंसे ऐसे लोग जिनके यहाँ लोकायुक्त या इनकम टैक्स के छापों के दौरान काली कमाई की अकूत धन संपत्ति निकल रही है दिन प्रतिदिन ज्यादा से ज्यादा मजबूत हुए हैं ।

यह सोचा भी नहीं जा सकता कि ऐसे लोग बिना सत्ता के वरदहस्त के आगे बढ़े हैं। बिचौलियों का दखल सरकारी व्यवस्था में फेविकोल के जोड़ से भी ज्यादा मजबूत दिखता है। परिवहन विभाग का एक आरक्षक सिर्फ 7 वर्ष की नौकरी में इतना कुछ कमा लेता है कि वह अधिकारियों के नाक का बाल बन जाता है और परिवहन विभाग ही चलाने लगता है। क्या विभागों के मंत्री इतने अक्षम हैं कि उनको उनके विभाग के बारे में कुछ पता ही नहीं है कि क्या चल रहा है? सरकार के अंदर और बाहर भ्रष्टाचार पर काबू किए बिना अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के जीवन में सुधार लाना सिर्फ एक सपना बना रहेगा इस सम्पूर्ण शताब्दी के पूरा होने पर भी और उसके बाद भी । जरूरत है कि सरकार “ना खाऊंगा ना खाने दूंगा” के नारे को कठोरता से हकीकत में चरितार्थ करे।

दरअसल सीधी बात यह है कि बिना गंगोत्री को साफ़ किये, गंगा में प्रदूषण को साफ़ नहीं किया जा सकता। इसके लिए मुख्यमंत्री और पूरे मंत्रिमंडल को नव वर्ष में एक बड़ा संकल्प करना पड़ेगा कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री की दृढ़ता से सफाई होगी।

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