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राजनीति के “अटल” आदर्श

राजनीति के अटल आदर्श

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन का अधिकांश समय विपक्ष में व्यतीत हुआ। इस रूप में उन्होंने सिद्धांत और मुद्दों पर आधारित विरोध की मिसाल कायम की,सत्ता में रहे तो सबको साथ लेकर चलने का प्रयास किया। उनका कोई भी निजी स्वार्थ कभी नहीं रहा,उन्होंने राष्ट्र और समाज की सर्वोच्च माना।उसी के लिए सदैव समर्पित रहे।
उनका राजनीति में पदार्पण विपरीत परिस्थितियों में हुआ था। सम्पूर्ण देश में कांग्रेस का वर्चस्व था। संसद से लेकर विभिन्न विधानसभाओं में उसका भारी संख्याबल होता था। इसके अलावा आजादी के आंदोलन से निकले वरिष्ठ नेता कांग्रेस में थे। ऐसे में जनसंघ जैसी नई पार्टी और युवा अटल के लिए रास्ता आसान नहीं था। राजनीति जीवन का यह उनका पहला दायित्व था। जनसंघ के विचार अभियान में मुख्य धारा में पहचान बनाना चुनौती पूर्ण था। अटल जी मे विलक्षण भाषण क्षमता थी। इसे उन्होंने राष्ट्रवादी विचारधारा से मजबूत बनाया। उन्नीस सौ सत्तावन में वह लोकसभा पहुंचे थे। सत्ता के संख्याबल के सामने जनसंघ कहीं टिकने की स्थिति में नहीं था। अटल जी ने यह चुनौती स्वीकार की। कमजोर संख्या बल के बाबजूद अटल जी ने जनसंघ को वैचारिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया। यहीं से राजनीति का अटल युग प्रारंभ हुआ। विपक्ष की राजनीति को नई धार मिली।अटल जी विपक्ष में रहे, उनके भाषण सत्ता को परेशान करने वाले थे, लेकिन किसी के प्रति निजी कुंठा नहीं रहती थी। पाकिस्तान के आक्रमण के समय उन्होंने विरोध को अलग रख दिया। सरकार को अपना पूरा समर्थन दिया। राजनीत की जगह उन्होंने राष्ट्र को महत्व दिया। आज विपक्ष धार्मिक रूप से उत्पीड़ित लोगों के लिए बनाए गए नागरिकता कानून पर सवाल उठता है, विभाजनकारी आर्टिकल तीन सौ सत्तर को बनाये रखने के लिए जमीन आसमान एक करता है,सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाता है। अटल जी सत्ता में आये तो लोककल्याण के उच्च मापदंड स्थापित कर दिए। विदेश मंत्री बने तो भारत का विश्व में गौरव बढा दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी गुंजाने वाले पहले नेता बन गए। यह अटल जी का शासन था, जिसमें लगातार इतने वर्षों तक विकास दर सर्वाधिक बनी रही। अटल जी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। अटल जी सबसे पहले उन्नीस सौ छियानबे में तेरह दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
उन्नीस सौ अठानवे में अटल जी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। यह सरकार तेरह महीने ही चली क्योंकि सहयोगी दलों ने उनसे समर्थन वापस ले लिया था। उन्नीस सौ निन्यानबे में वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। इस बार उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। इतना ही नहीं उपलब्धियों का रिकार्ड बनाया। पोखरण में परमाणु परीक्षण का निर्णय अटल जी ने किया था। इस परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए। अटल ने प्रतिबन्धों का डट कर मुकाबला किया। फिर ऐसा समय आया जब प्रतिबंध लगाने वाले देश भारत से संबन्ध सामान्य करने को आतुर हो गए।

अटल जी विश्व के भी महान नेता बन गए। वह जब विदेश मंत्री थे, तब दुनिया सोवियत संघ और अमेरिकी खेमे में विभक्त थी। अटल जी ने दोनों के बीच संतुलन स्थापित किया। जब वह प्रधानमंत्री बने तो विश्व की राजनीति बदल चुकी थी। सोवियत संघ का विघटन हो गया था। अटल जी ने इसमें भी भारत के अलग प्रभाव को बुलंद किया। पाकिस्तान से संबन्ध सुधारने के लिए बस यात्रा की। यह उनका उदार चिंतन था। लेकिन पाकिस्तान नहीं बदला। यह उंसकी फितरत थी। देश के बड़े शहरों को सड़क मार्ग से जोड़ने की शुरूआत भी अटल जी के शासनकाल के दौरान हुई। पांच हजार किमी. से ज्यादा की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को तब विश्व के सबसे लंबे राजमार्गों वाली परियोजना माना गया था। दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया।
अटल जी ने गांवों को सड़क से जोड़ने का काम शुरू किया था। उन्हीं के शासनकाल के दौरान प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरूआत हुई थी। इसी योजना से लाखों गांव सड़कों से जुड़े। इस योजना का प्रमुख उद्देश्‍य ग्रामीण इलाकों में पांच सौ या इससे अधिक आबादी वाले पहाड़ी और रेगिस्‍तानी क्षेत्रों में ढाई सौ लोगों की आबादी वाले सड़क-संपर्क से वंचित गांवों को मुख्य सड़कों से जोड़ना था। अटल जी के शासनकाल में ही भारत में टेलीकॉम क्रांति की शुरूआत हुई। टेलीकॉम से संबंधित कोर्ट के मामलों को तेजी से निपटाया गया और ट्राई की सिफारिशें लागू की गईं। स्पैक्ट्रम का आवंटन इतनी तेजी से हुआ कि मोबाइल के क्षेत्र में क्रांति की शुरूआत हुई। पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया। एक बार फिर पाकिस्तान को भागना पड़ा था। अटल जी अब हमारे बीच नहीं है। लेकिन अटल युग आज भी प्रासंगिक है। इससे पक्ष और विपक्ष दोनों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उनका व्यक्तित्व व कृतित्व पदों की सीमा से ऊपर था। जब वह गम्भीर रूप से बीमार थे तब भी लोग उनके पास जाते थे।पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कुछ वर्ष पहले नई दिल्ली आए थे, तब वह भी अटल जी के आवास पर गए थे। सभी लोग जानते थे कि अटल जी से न बात होगी, न आशीर्वाद मिलेगा, न वह किसी को कोई पद दे सकते हैं, न किसी को हटा सकते हैं, न किसी का चुनाव में सहयोग कर सकते हैं, फिर भी वह महत्वपूर्ण बने रहे। यह स्थिति किसी भी राजनेता के लिए दुर्लभ होती है। इसके पीछे उनकी सुदीर्घ समाज और विचार साधना थी। अटल जी किसी पद के कारण महत्वपूर्ण नहीं थे। वैसे भी छह दशक के सार्वजनिक जीवन में वह मात्र आठ वर्ष ही सत्ता में रहे, इसमें पहले तेरह दिन,तेरह महीने और फिर पांच वर्ष प्रधानमंत्री रहे। करीब दो वर्ष विदेश मंत्री रहे,शेष राजनीतिक जीवन विपक्ष में ही बीता। लेकिन विपक्ष और सत्ता दोनों क्षेत्रों में उन्होंने उच्च कोटि की मर्यादा का पालन किया। उनका जीवन सभी के लिए प्रेरणादायक है।

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