ललिता नारायणी
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वह बेतहाशा भागी जा रही थी कपड़ों पर धूल और गरदे से भरे हुए भी थे ।
कुछ बच्चे दूर खड़े उसको भागता देख ताली बजाकर हंस रहे थे ।
और अब वह भागते-भागते थक चुकी थी सो एक पत्थर पर बैठकर सुस्ताने लगी । फिर थके हुए कदमों से वापस उसी पीपल के नीचे आ कर लेट गई जहां उसने अपना ठिकाना बना रखा था । ऐसा पहली बार नहीं हुआ हर रोज कोई ना कोई उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करता ,
दरअसल छ: साल पहले उसका बारह साल का बेटा कहीं चला गया था…. बहुत खोजने के बावजूद बेटा तो नहीं मिला पर उसके गम में वह अपने दिमाग का संतुलन खो बैठी ।
वह इस गांव की भी नहीं थी । कोई नहीं जानता कि वह कहां से आई , कौन है , क्या नाम है , एक दिन अचानक उसी गांव के कुछ व्यक्तियों को जो सुबह शौच के लिए जाते हैं उन्हें इसी पीपल के पेड़ के नीचे सोती हुई मिली थी ।
लोगों ने बहुत जानने की कोशिश की पर वह कुछ बता नहीं पाई , बस एक ही शब्द उसकी जुबान पर था । ‘मेरा बेटा कहां है , क्या आपने देखा , मिल जाए तो कहना उसकी मां उसका इंतजार कर रही है ……
और लोगों ने इसका फायदा उठाना शुरू किया ….कुछ तो भले लोग उसको अच्छा खाना खिलाते , अच्छा कपड़ा पहनने को देते , और हल्का फुल्का काम करवा लेते
पर कुछ ऐसे भी व्यक्ति थे जो उससे भरपूर काम लेते , और फिर उसको झूठा ढाडस देते कि हम तुम्हारे बेटे से तुमको मिलाएंगे
वह बेचारी भूखी प्यासी काम करती रहती ….
जब वह थक हार कर उस पीपल के पेड़ के नीचे सो रही होती तो बच्चे शोर मचाते …..
ए *बौरिन*(विक्षिप्त ) हम लोगों ने तेरे बेटे को देखा है , आओ दिखाएं , और अपने पीछे पीछे उसे दूर तक दौड़ाते ले जाते, फिर तालियां बजाकर हंसते कहते हमने तो *मज़ाक* किया है
वह आंखों में आंसू लिए शून्य को ताकती रहती ।
आज भी हंसी मज़ाक करते हुए बच्चे उसको दौड़ाते हुए काफी दूर ले गए …अब वह अपने गांव की सीमा पार कर चुके थे और रास्ता भी भटक गए थे ,
वह ऐसी जगह थी कि जहां दूर-दूर तक ना ही कोई गांव और ना ही कोई आदमी दिखाई दे रहा था अब शाम हो चली थी ,
बच्चे परेशान थे एक पागल के साथ मजाक किया था खुद ही मजाक बन गए थे …..
कि इतनी देर में उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठे एक व्यक्ति को आते हुए देखा , बच्चे एक स्वर में चिल्लाए अंकल जी मेरी मदद करो …मेरी मदद करो …मोटरसाइकिल वाला रुका उसने देखा दस बारह साल के बच्चे और एक औरत जो थक कर जमीन पर चुपचाप बैठी है ।
पूछने पर बच्चों ने सब कुछ साफ-साफ बताया उसने जमीन पर बैठी औरत से यह कहकर कि
मां मैं ही तुम्हारा बेटा हूं , तुमने मुझे पहचाना , औरत खुशी से चीख पड़ी और रोने लगी तुम मुझे कहां छोड़ कर चले गए थे, देखो मैं कितनी थक चुकी हूं , मैंने तुम्हें कितना खोजा कहां-कहां खोजा , तुम क्यों चले गए थे …
मोटरसाइकिल वाले की आंखों में आंसू आ गये उसने औरत को अपनी बाहों का सहारा देकर उठाया …औरत ने उसे अपनी छाती से ऐसे लगाया जैसे हुए कोई छोटा बच्चा हो … मोटरसाइकिल वाले व्यक्ति ने बच्चों को गांव का रास्ता बताया
और उस औरत को मोटरसाइकिल पर बैठाकर अपने घर ले आया ।
दरवाजे पर पहुंचकर जब उसने औरत को सहारा देकर नीचे उतारा तो वह अचानक ! उस मोटरसाइकिल वाले व्यक्ति की बाहों में झूल गई , उस व्यक्ति ने अपनी मां को एक गिलास पानी के लिए आवाज देते हुए उसको जल्दी से जमीन पर लिटाया …….
ये कुदरत का एक खूबसूरत मज़ाक था…. इतनी बड़ी खुशी पाकर उसके सारे दुखों का अंत हो चुका था ।
ललिता नारायणी