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“BEHIND THE SMOKE-SCREEN”: a book on Emergence of the National War Academy

This book running into 219 pages, authored by noted chronicler and researcher Tejakar Jha and published by Research India Press is a very readable book. It’s of particular interest to history lovers and academics, military scholars and intellectuals as it sheds interesting light in the circumstances leading to the formation of the National Defence Academy ( NDA), after going through an illuminating gestation period from the initial concept of a National War Academy. 

Tejakar Jha

Extraordinary feature of the book so well articulated by Tejakar Jha is the priceless contribution of Dr Amarnatha Jha, erstwhile Vice Chancellor of Allahabad University and most acclaimed erudite administrator and visionary.

Dr Amarnatha Jha

Amarnatha Jha had jotted down notes in his daily diary in the 1940s and early ‘50s and the author has very intelligently appropriated the notes resulting to churning out of this book which is strongly recommended to be read and kept in the library shelves for larger readership . I am underlining this more because not many people know about the efforts and intellectual exercises by burning of the midnight oil in designing the basic idea of a National War Academy . I leave it to the readers to find out themselves from the book about the factors , application of wisdom for becoming architects of this most significant military institution .

The diary jottings also give an insight of the social , literary and cultural environment that existed in Allahabad those days . Any one associated with this historic city , it’s university( known as Oxford of the East ) , will be able to connect to the happenings . It’s a treat . I may be biased being a born Allahabadi but I have to be fair , objective and honest to the book and the author . Hence , these candid thoughts !

Shantanu Mukharji IPS( retired) former National Security Advisor to the Prime Minister of Mauritius and a student of history

Shantanu Mukherji IPS

पुस्तक का सारांश

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान पूर्वी अफ्रीका के सूडान देश की रक्षा करते हुए भारत के बहुत से सैनिक शहीद हुए। उनके स्मृति में कुछ बनाने के लिए सूडान के राजा ने भारत के औपनिवेषिक सरकार को एक लाख बौन्ड दान दिया।

सन् 1925 से द्वितीय विश्वयुद्ध तक भारत के कुछ दूरदर्शी नेता, जो खिलाफत आन्दोलन के पश्चात हुए हिन्दू नरसंहारों से खिन्न थे, भारत में हिन्दू समाज के सैन्य प्रशिक्षण की वकालत करने लगे थे। शिक्षा जगत के माने हुए शीर्षथ नेतृत्व, जिनमें अग्रणी ये इलाहाबाद विश्वविधालय के डा. अमरनाथ झा और कलकत्ता के डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, ने देश में घूम-घूम कर सैन्य शिक्षा के विकास के लिए प्रयास कर रहे थे।

31 अक्टूबर, 1928, को U.T.C. के एक मीटिंग में तत्कालीन सेना सचिव, टोटेनहैम, को डा. अमरनाथ झा ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मैं सैन्य शिक्षा के लिए भारत में एक ऐसा संस्था चाहता हूँ जैसा सैन्डहर्स्ट है और वैसी शिक्षा जैसी कैम्ब्रिज में है। इस बैठक में जे. पी. थौम्पसन भी थे।

1945 में, ऐसे में सूडान के दान का क्या किया जाय, ये प्रश्न उत्पन्न हुआ। भारत सरकार ने जेनरल औचिनलेक के नेतृत्व में एक सैन्य शिक्षा अकादमी बनाने का निर्णय लिया। काम दूरुह था। तीन उप समिति बनाई गई – प्लानिंग एण्ड स्टैबनिशमेंट, सिलेबस तथा कन्सट्रक्शन | कन्सट्रक्सन उपसमिति के अध्यक्ष हुए- मसकरेंहास, जो भारतीय सेना के मुख्य अभियन्ता थे। बाकि दोनो समितियों के अध्यक्ष नियुक्त हुए डा. अमरनाथ झा । झा साहब इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रख्यात उपकुलपति थे विगत एक दशक से, और शिक्षा जगत के सबसे ख्याति प्राप्त व्यक्ति तो थे ही, 1927 से युनिवर्सिटी ट्रेनिंग कोर के कमान्डेन्ट भी थे और सैन्य प्रशिक्षण पर भी अधिकार रखते थे।

तकरीबन एक वर्ष की अल्प अवधि में ही उन्होंने 1946 में विश्व-स्तर की एक सैन्य शिक्षण संस्थान के प्रारूप को बनाकर सेना प्रमुख के समक्ष पेश कर दिया और यही पारित भी हुआ।

1947 में इनकी बनाई हुई सिलेबस भी पारित हो गई। सिलेबस बनाने के लिए इन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा सहित कई देशों के शीर्ष सैन्य शिक्षण संस्थाओं का अध्ययन भी किया।

इनकी कार्यकुशलता को देखते हुए, सेना प्रमुख ने इनको जिम्मेवारी सौंपी की देश के बारह चुनी हुई राज्य सरकारों एवं प्रमुख रियासतों के राजाओं तथा सेना के विभिन्न अंगों से मिलकर इस सैन्य संस्था के लिए आवश्यक समर्थन जुटाएँ। इस कार्य को भी झा साहेब ने अथक परीश्रम के पश्चात 1947 में पूरा कर एक रिपोर्ट पेश कर दिया।

22 सितम्बर, 1946, को मुम्बई में झा साहब जब वहाँ के सदन को सम्बोधित करने गए, तब उनका परिचय देते हुए बम्बई के प्रधानमंत्री, बी.जी. खेड़ ने कहा “भविष्य आप को भारतीय सैन्य शिक्षा का मुख्य वास्तुकार के रूप में याद करेगा”।

इस प्रयासों के वजह से 1 जनवरी, 1949, को देहरादून में नैशनल वॉर अकादमी की शिक्षा का प्रारम्भ हो गया। 1952 में यह संस्थान, भवनों के निर्माण के पश्चात, खड्ङ्कवास्ला पुणे, आ गया । भारत में स्वतंत्रता के पश्चात सैन्य विभाग का नाम रक्षा मंत्रालय हो गया और यह संस्थान नैशनल डिफेंस अकादमी बन गया।

इस सैन्य संस्थान के लिए उपयुक्त स्थान के चयन में भी झा साहेब ने सेना प्रमुख का सहयोग किया और इसमें दो महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान रखा गया। एक कि किसी भी वक्त संस्थान में उपस्थित पन्द्रह

हजार प्रशिक्षु एवं कर्मीयों के लिए पास ही आवश्यक मात्रा में जल का श्रोत हो। दूसरा यह की यह चयनित स्थान पूणे के पास कोण्डना दुर्ग के समक्ष हो। यह दुर्ग छत्रपति शिवाजी ने मुगलों से बहुत परिश्रम से जीता था और उनको यह दुर्ग बहुत प्रिय था। यह दुर्ग हिन्दू अस्मिता का जीवन्त द्योतक था, अतः झा साहब ने कहा कि यहां प्रशिक्षुओं में यह दुर्ग देश प्रेम की भावना जागृत करेगी, जो सेना के लिए महत्वपूर्ण है। झा साहब ने एक दोहा लिखा था इस दौरान –

परलोक-भूलोक मंह, जौं सुख चाहहु मीत।

हिन्दू, हिन्दी, हिन्द में, करहु, रैन दिन प्रीत ।।

इस सैन्य संस्था के प्रारूप को बनाते समय यह प्रस्ताव, झा साहब ने रखा कि सेना की वार्षिक आवश्यकता से कहीं अधिक प्रशिक्षु लिए जाएंगे। सेना के आवश्यकता के अतिरिक्त जो प्रशिक्षु होंगे वे भारत के विभिन्न राज्यों के पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों में लिए जा सकेंगे तथा शेष सभ्य समाज में एक उपयुक्त नेतृत्व प्रदान करेंगे। आज जो अग्निवीर कार्यक्रम है, शायद इसी बात से प्रेरित है।

झा साहब के अनुमोदन पर ही विश्वविद्यालय स्तर पर चल रहे U.T.C. प्रोग्राम को 1948-9 में N.C.C. में तब्दील किय गया। प्रस्तुत पुस्तक झा साहब की दैनिक डायरी, सेना के संचिका एवं तात्कालिक मिडिया रिर्पोटों के आधार पर लिखा गया है।

इस पुस्तक के साक्ष्यों को नेशनल डिफेंस अकादमी के अध्यक्ष ने भी 2023, 21 अप्रैल को स्वयं देख कर इतिहास का अभिन्न एवं श्रेष्ठ काम माना। उनके द्वारा बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष को लिखा पत्र संलग्न है।

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