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समीक्षा: “लॉकडॉउन: मैं और आसपास”: “इस दैवी आपदा को नजदीक से महसूस करने का अनुभव देती है पुस्‍तक”: रामधनी द्विवेदी

कोराना वॉर: लॉकडाउन: मैं और आसपास
संपादक : स्‍नेह मधुर

समीक्षक: रामधनी द्विवेदी

कोरोना संकट और उससे उपजे हालत पर विभिन्न वर्ग के लोगों द्वारा लिखे संस्मरणों और विश्लेषणों का नायाब संग्रह है यह पुस्तक। यह कोई एक गांव, कस्‍बे, शहर या राज्‍य पर आई आपदा नहीं है। इससे सारी दुनिया के देश आक्रांत हैं। चीन की अभेद्य दीवारों से बाहर निकली और एक-एक कर दुनिया के सभी देशों में अपने पंख फैलाती यह आपदा एक ऐसे जीव के कारण थी जिसे कोई आंखों से देख नहीं सकता था, लेकिन उसमें अपने वंश को बढ़ाने की अपार क्षमता थी। रक्‍तबीज की तरह उसके वंशज बढ़ते जा रहे थे, एक एक देश को अपनी गिरफ्त में लेते हुए। और मानव असहाय था, अपनी जान देने के लिए अभिशप्‍त!

किसी दवा का इस पर असर नहीं! गजब यह भी कि यह केवल मनुष्‍य को ही शिकार बना रहा था अ‍न्‍य जीवों को न जाने क्‍यों छोड़ दे रहा था? विज्ञानियों ने इसे कोविड 19 का नाम दिया क्‍योंकि कोरोना वायरस के परिवार का था जिसे दिसंबर 2019 में पहचाना गया था। कोरोना वायरस से ही आम सर्दी और फ्लू होता है। लेकिन उसके इस नए भाई ने पूरी दुनिया को दहला दिया है। यह जाते जाते लौट आता है। जिस देश में इसे नियंत्रित मान लिया गया था, वहां फिर वह लौट आया है और तेज तेवरों के साथ। अपने देश का भी कोई हिस्‍सा ऐसा नहीं है जहां यह न पहुंचा हो। सुदूर हिमालयीय क्षेत्र से समुद्रतट और समुद्र के अंदर उगे द्वीपों तक भी इसकी पहुंच हो गई है।

देश का कोई व्‍यक्ति न होगा जिसे इसने प्रत्‍यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित न किया हो। किसी की नौकरी गई तो किसी के परिजन। जो लोग सुदूर क्षेत्रों में जा कर रोजी रोटी कमा रहे थे, वे सब कुछ छोड़कर अपने देश लौटने लगे। पूरे देश में भगदड़ जैसी स्थिति थी। लोगों ने इसे पलायन का नाम दिया। लोग एक इतिहास घटते हुए देख रहे थे। सरकारें असहाय सी दिख रहीं थीं। संवेदनशील लोगों ने इस स्थिति में अपनी ओर से मदद करने कोई कमी नहीं दिखाई। रोज ऐसी खबरें सामने आती थीं जो भयभीत करने वाली होती थीं। वरिष्‍ठ पत्रकार स्‍नेह मधुर ने, जिसने जैसा देखा और महसूस किया, उनकी अभिव्‍यक्ति को कोराना वार: लॉकडाउन मैं और मेरे आसपास” में संकलित और संपादित किया है। यह पुस्‍तक इस दैवी आपदा को नजदीक से महसूस करने का अनुभव देती है। लेखकों में पत्रकार, अधिकारी, डाक्‍टर और समाजसेवी है तो खुद भुक्‍तभोगी भी और कमलेश बिहारी माथुर जैसे वे लोग भी जो अपने देश से हजारों किमी दूर कनाडा में रहते हुए भी इस पीड़ा को अनुभव कर रहे हैं। इसमें इतनी विविधता है कि यदि एक बार पढ़ना शुरू किया जाए तो बीच में रोका नहीं जा सकता।

संग्रह में उस बेटी ज्‍येाति पर लिखी दो कविताएं हैं सुभाष राय और खुद स्‍नेह मधुर की जिसने अपने पिता को साइकिल पर बैठा कर हजारों किलोमीटर की दूर तय की और उन्‍हें घर तक पहुंचाया। इस आपदा ने पुलिस का जो मानवीय चेहरा दिखाया, उस पर भी पूर्व पुलिस अधिकारी विभूति नारायण राय का विमर्श है। एक रचनाकार की कई रचनाएं हैं, उन्‍हें यदि एक साथ रखा जाता तो लेखकों के नाम के दोहराव से बचा जा सकता था और एक व्‍यक्ति की सभी रचनाएं एक साथ पढ़ने को मिल जातीं जैसा कविताओं के साथ है। फिर भी ऐसा संग्रह पहली बार देख कर संतोष होता है और इससे भी कि इस विपदा ने संवेदनशील दिलों को गहराई तक झकझोर दिया है।

कोराना वायरस: लॉकडाउन
मैं और आसपास
संपादक – स्‍नेह मधुर

आवरण: डॉ अजय जेटली
पृष्‍ठ – 160
मूल्‍य 450
प्रकाशक – शतरंग प्रकाशन, लखनऊ

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