एक भारतीय होने के नाते हमें अपनी धर्म, संस्कृति व परंपरा पर गर्व होना चाहिए। आज से लगभग 8 हजार वर्ष पहले हित्ती, मितानी, अरब के साथ ईरान, ईराक सहित सम्पूर्ण पश्चिम एशिया वैदिक पौराणिक व यज्ञ संस्कृति को मानने वाले थे। जिसके प्रमाण दजला फरात नलियों के मार्ग परिवर्तन से प्रत्यक्ष हो चुका है।
प्रयागराज।
इलाहाबाद संग्रहालय में आज 30 नवम्बर को क्षेत्रेश चन्द्र चट्टोपाध्याय स्मृति व्याख्यान माला के अंतर्गत प्रो०अभिराज राजेन्द्र मिश्र,पूर्व कुलपति संम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्या लय, वाराणसी का व्याख्यान ‘भारतीय धर्म एवं संस्कृति का वैश्विक स्वरूप ‘विषय पर आयोजित हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता डाँ हरिमोहन मालवीय,पूर्व अध्यक्ष हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रयागराज ने की।
कार्यक्रम के आरम्भ में निदेशक संग्रहालय डाँ सुनील गुप्ता ने मुख्य वक्ता, सभाध्यक्ष सहित सभी सुधी जनों का स्वागत करते हुए व्याख्यान माला के आयोजन व प्राच्य भारतीय विद्याओं पर प्रो०चट्टोपाध्याय के महती योगदान को रेखांकित किया।
डाँ गुप्ता ने कहा कि प्रो०चट्टोपाध्याय ने न केवल स्वयं आजीवनभारतीय मनीषा की स्वस्थ चिंतन परम्परा का संवाहन किया अपितु अपने प्रखर मेधा शिष्य परंपरा जिनमें विद्यानिवास मिश्र, जी०आर०शर्मा व प्रो०कमलेश दत्त त्रिपाठी उल्लेखनीय हैं के द्वारा अनवरत रखा।
अपने सम्बोधन में प्रो०मिश्र ने कहा कि एक भारतीय होने के नाते हमें अपनी धर्म, संस्कृति व परंपरा पर गर्व होना चाहिए। आज से लगभग 8 हजार वर्ष पहले हित्ती, मितानी, अरब के साथ ईरान, ईराक सहित सम्पूर्ण पश्चिम एशिया वैदिक पौराणिक व यज्ञ संस्कृति को मानने वाले थे। जिसके प्रमाण दजला फरात नलियों के मार्ग परिवर्तन सेप्रत्यक्ष हो चुका है।
प्रो०मिश्र ने कहा कि भारतीय संस्कृति का तिथि निर्धारण नहीं हो सकता क्योंकि यह सनातन व अनादि रही है।
इस संदर्भ में उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के ज्योतिष गणना पर आधारित निष्कर्ष को रेखांकित किया कि मैत्रायणी संहिता के मंत्र ईसा से 6000 वर्ष पूर्व विद्यमान थे।और इस निष्कर्ष का समर्थन हरमन जैकोबी सदृश जर्मनी के विद्वान ने भी स्वीकार किया है।
उन्होंने इस बात पर खेद जताया की भारतीय इतिहास से अंग्रेजों ने तमाम छेड़छाड़ की और हर उस ऐतिहासिक तथ्य को नकारा जो भारतीय संस्कृति को प्राचीन सिद्ध करता है। जैसे कलिसंवत, महाराजा विक्रमादित्य, कालिदास और यहाँ तक की बेदव्यास के अस्तित्व को काल्पनिक बताया।
प्रो०मिश्र ने बताया कि इस्ताम्बुल संग्रहालय में सुरक्षित सम्राट विक्रमादित्य के अभिनन्दन में लिखित स्वर्ण पत्र न केवल उन्हें ऐतिहासिक बताता है अपितु वहाँ तक भारतीय संस्कृति के सीधे प्रसार को दिखाता है।

अध्यक्षीय सम्बोधन में डाँ मालवीय ने प्रो०चट्टोपाध्याय को नमन कर भारतीय संस्कृति के अवदानो जैसे अंक विद्या, पंचतंत्र, वास्तु विद्या आदि को उल्लिखित किया। उन्होंने संग्रहालय को आयोजन हेतु बधाई देते हुए अपनी बात समाप्त की।
इस अवसर पर प्रो०एम०सी०चट्टोपाध्याय, प्रो०गौरी चट्टोपाध्याय, प्रो०आर०के०टण्डन,प्रो०हरिदत्त शर्मा, प्रो०रामहित त्रिपाठी, डाँ रामनरेश तिहारी’पिण्डीवासा’, डाँ रामनरेश त्रिपाठी, डाँ शान्ति चौधरी, डाँ राजेन्द्र त्रिपाठी ‘रसराज’, प्रो०सालेहा रसीद, डाँ जितेन्द्र सिंह संजय, श्री रविनन्दन, श्री हसन नकवी सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।