Dr Ram Shivastava
former principal, Holkar College Indoor MP
” क्या आप मेरी रक्षा करेंगे मुझे नष्ट किया जा रहा है, मेरी कई जगह से पपड़ियाँ निकल चुकी है ; मुझ पर इसी तरह अभिषेक के नाम पर अपमिश्रित पदार्थों का सतत् लेपन और बेरहमी से दूध,दही और दूषित जल, जिसे कोई नहीं पी सकता, का प्रहार किया जाता रहेगा तो मैं शीघ्र ही लुप्त हो जाऊँगा । फिर आप सिर्फ़ मन्दिर की घण्टियाँ बजाकर मुझे याद करते रहना। अभी समय रहते मेरी रक्षा करो ।”: महाकाल
मेरा महाकाल से सीधा ताल्लुक ६५ साल पुराना है । मैं फ्रीगंज उज्जैन में धण्टाघर से मक्सी रोड जाने वाली पुराने विजली घर पर कोने के मोड के मकान में रहता था । उस समय मैं “भूत मास्टर का स्कूल कहे जाने वाले” माधवनगर माध्यमिक पाठशाला में पढता था । हमारे हेड मास्टर सौभाग्य मल जैन हुआ करते थे । मैं लगभग रोज अपने जीजाजी के साथ बडे सबेरे उठकर पैदल ही राम घाट क्षिप्रा किनारे जाकर डुबकी लगाकर, हरसिद्धी माता, बडे गणपतिऔर महाकाल के दर्शन करके माली मोहल्ला का चक्कर काट कर बस स्टेण्ड के पास उज्जैन आगर चलने वाली नेरो गेज छुक छुक गाडी का आनन्द उठाते घर लौटा करता था ।
उन दिनों महाकाल के गर्भ गृह में प्रवेश का एक ही व्दार था, जहॉ से अभी सामान्य दिनों में लोग भीतर घुसते हैं । कुण्ड के सामने बने दालान के इसी प्रवेश व्दार से लोग भीतर जाते थे इसी दरवाजे से बाहर निकलते थे । भीतर गर्भगृह में इतनी उमस और गर्मी होती थी कि निकलने के बाद लगता था पसीने से तर होकर महाकाल बाबा ने सबको फिर से नहला दिया । इसके बाद जब मैंने पहिला कुंभ का मेला १९५६ का देखा तो उसके दो साल पहिले ही, प्रवेश व्दार के समीप एक और दरवाजा बना दिया गया जिससे दर्शनार्थी दर्शन करके बाहर निकल रहे थे । बीच में आने जाने के लिए रेलिंग लगा दी गई जो आज भी है । १९६८ के कुंभ के मेले के पहिले गर्भगृह के ठीक पास में एक नया दरवाजा और सीढियां बनाई गई। रास्ता बनाने के लिये बडे मजबूत पत्थरों को काटने के लिये सुनार के लम्बी फ्लेम वाले स्टोव की लौ से पत्थर को गरम किया जाता था, फिर उस गरम पत्थर पर चूने का पानी डालकर ठंडा होने देते थे । ठंडा होने पर पत्थर के ऊपर जमी पपडी को खुरच दिया जाता था । इस तरह विना कोई मूल रचना को नुकसान पहुंचाये सीढियां और नया दरवाजा तैय्यार किया गया जो आज चैनल लगाकर बन्द रखा जाता है ।इसके बाद १९९२ के कुंभ के बाद वर्तमान प्रवेश दीर्घा का शनै: शनै: विकास किया गया ।
१९५२-५३ में महाकाल का पवित्र शिवलिंग साफ सुथरी, चिकनी सपाट थी । उसमें कहीं पर कोई खरोंचें, पपडी या गड्डे नहीं थे । उस समय के शिवलिंग को आज भी जब मैं अपनी आंखे बन्द करके सोचता हूं , तो मेरी आॉखों के सामने महाकाल का वह दिव्य आकर्षक स्वरूप झूमने लगता है । बचपन में ऑखे बन्द करके अपने आराध्य के दर्शन करने का आनन्द ही अजब है । आज भी मेरे दिल दिमाग में वही रूप बसा है ।
पर पिछले ६५ सालों में, हमने जिस बेरहमी से महाकाल के पवित्र ज्योतिर्लिंग का क्षरण कर दिया है, यह अक्षम्य अपराध है । पिछले पॉच सालों में तो लिंग की चार जगहों से पपडी खिर चुकी है, तीन साफ दिख रही दरारों की लकीरें बन चुकी हैं, गड्डे बन रहे हैं । मैं लगातार २०१२ से सोशल मीडिया, फेसबुक, ट्वीटर पर महाकाल की तरफ से गुहार लगा रहा हूं “मेरी रक्षा करो” । सूचना के अधिकार के तहत सरकार से जानकारी चाही पर जबाव नकारा , कुछ भी नहीं । महाकाल के मुख्य पुजारी ‘ रमण त्रिवेदी ‘ से कई वार अनुरोध किया कोई कार्यवाही नहीं हुई । महाकाल के प्रशासकीय अधिकारियों से भी कई बार निवेदन किया पर सब चुप।
आखिर अब माननीय सर्वोच्च अदालत ने समस्या का संज्ञान लेकर पहल की है। सुप्रीम कोर्ट को उनकी महती पहल के लिए बधाई। मुझे विश्वास है, महाकाल के ज्योतिर्लिंग की रक्षा करके हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित करके लाखों करोड़ों श्रद्धालुओं की पवित्र आस्था का सम्मान अवश्य करेंगे ।