बलवा ने केंद्रीय मंत्री नकवी को बनाया साहित्यकार
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं मुख्तार अब्बास नक़वी
स्नेह मधुर
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी अब लेखकों की दुनिया में भी शामिल हो गए हैं। दो दिन पूर्व कश्मीर जाने वाले मोदी सरकार के 36 मंत्रियों में से सबसे पहले मंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले मुख्तार अब्बास नकवी ने मंत्री रहते हुए साहित्यकार बनने का भी रिकॉर्ड अपने नाम कर ही लिया। उनका पहला उपन्यास “बलवा” डायमंड प्रकाशन ने प्रकाशित कर दिया है और इसी क्रम में उनके दो और उपन्यास भी आने ही वाले हैं।
गंगा-यमुना और सरस्वती की नगरी प्रयागराज के निवासी मुख्तार अब्बास नकवी शुरू से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे हैं। इलाहाबाद में लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा के बाद वह रामपुर से भारतीय जनता पार्टी के सांसद पहली बार बने और उसके बाद राष्ट्रीय राजनीति की पायदान पर लगातार चढ़ते ही गए। लेकिन राजनीति के शिखर तक पहुंचने से पूर्व उन्होंने रचनात्मक लेखन में भी अपने हाथ आजमाए।
नकवी बचपन से ही लिखने-पढ़ने के शौकीन थे जिसे उन्होंने युवावस्था में भी जारी रखा। सामाजिक गतिविधियों के अलावा रचनात्मक लेखन से उनका प्रेम बना रहा। शेरों शायरी के शौकीन तो वह थे ही, उन्होंने कहानियां भी लिखनी शुरू कर दी थीं जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी होती रहती थीं। उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व एक उपन्यास वैशाली लिखा था जो प्रकाशित भी हुआ था, लेकिन मृदु एवम् अल्प भाषी नकवी ने अपनी इस उपलब्धि का प्रचार प्रसार नहीं किया। उनके दिमाग में कई नए प्लॉट चल रहे थे। उनकी योजना कई पुस्तकों को एक साथ प्रकाशित करने की भी थी।
बलवा उपन्यास का बीज 80 के दशक में ही इनके दिमाग में पड़ गया था। वह कभी-कभी इस प्लॉट के चरित्रों की चर्चा भी करते रहते थे लेकिन किसी को क्या मालूम था कि चार दशक बाद वे चरित्र वास्तव में जीवंत हो जायेगें और पुस्तक के रूप में सामने आ जायेगे।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मुख्तार अब्बास नकवी ने राजनीतिक सफर के दौरान फिल्मों में भी अभिनय के साथ पटकथा लेखन के क्षेत्र में भी अपनी किस्मत आजमाई। नकवी ने प्रसिद्ध फिल्मकार मधुर भंडारकर की फिल्म “कारपोरेट” और “ट्रैफिक सिग्नल” की भी पटकथा लिखी है। हालांकि मृदुभाषी और संकोची स्वभाव के मुख्तार अब्बास नकवी ने अपनी इस उपलब्धि की कभी किसी से चर्चा भी नहीं की। लेकिन राजनैतिक व्यस्तताओं के बीच भी उन्होंने न सिर्फ अपनी संवेदनशीलता औररचनाशीलता को बचाए रखा बल्कि उन अनुभवों को भी सहेजे रखा जो उन्होंने अपनी आंखों से देखे थे और भोगे भी थे और जो आज भांति-भांति रूप ग्रहण कर दुनिया के सामने आने लगे हैं।
