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“योगी की बड़ी समस्या युवाओं को रचनात्मक विकल्प देना है”

योगी जी की सबसे कठिन समस्या यूपी की युवा शक्ति को रचनात्मक विकल्प देना 

दिनेश कुमार गर्ग 

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ से बड़ा कोई नेता इस समय नहीं है । यह वह प्रदेश है जहां नेता ही नेता पैदा हुआ करते थे। पण्डित मदन मोहन मालवीय, पण्डित मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, गोविन्द वल्लभ पन्त, डाॅक्टर सम्पूर्णानन्द, इन्दिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, कल्याण सिंह उर्फ बाबू जी, मुलायम सिंह यादव उर्फ नेता जी, राजनाथ सिंह (वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री) आदि आदि ।

जवाहर लाल नेहरू की राजनीति महात्मा गांधी से जुड़े उन्हीं के अत्यंत प्रिय अनुयाई के रूप में शुरू हुई तो गांधी जी की तरह वह भी अंग्रेजों के बहुत प्रिय राजनेता बने और परिणामतः अंग्रेजों ने उन्हे अत्यंत विश्वासपात्र मानकर भारत की अंतरिम सरकार जो वर्ष 1946 में गठित की गयी थी, उसका प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया था । वह प्रधानमंत्री के रूप में एक भयावह परिणाम देने वाले कन्फ्यूज्ड प्रधानमंत्री साबित हुए । भयावह इस लिये कि पार्टीशन के वक्त उन्हे पता था , उनकी सरकार देख चुकी थी कि बंगाल में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को धार देने के लिए डायरेक्ट ऐक्शन के नाम पर नोआखली और कलकत्ते मे भीषण हिन्दू नरसंहार किया था जिसको केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार दोनों जब रोक पाने में विफल रहीं तो उसके प्रतिकार में कलकत्ते में हिन्दुओं ने भी शस्त्र उठाया । मुस्लिम साम्प्रदायिक आक्रमण और हिंसा का जब बराबरी से जवाब मामले लगा तब वे शान्त हुए, पर नेहरू की सरकार न हिंसा रोक सकी न हिंसा प्रभावितों की मदद कर सकी। 

नेहरू की नाकामियों का सिलसिला थमा नहीं , वह मानव त्रासदी के प्रति उदासीन था खासकर हिन्दू शरणार्थियों के प्रति बुरी तरह उदासीन ,बेरुखा और क्रूर । पार्टीशन में बड़ी संख्या में आबादी इधर से ऊँकार जायेगी यह उसे जानकारी थी , वह देख रहा था की लोग रेल से, इक्के गाड़ियों, बैलगाड़ियों से, पैदल सीमा पार से आ रहे हैं या सीमा पार जा रहे हैं, परन्तु उसकी सरकार ने इन आने-जाने वालों की सुरक्षा और सहूलियत के लिए कुछ नहीं किया , वह तो लेडी माउंट बैटन की ऑखों के सपने पढ़ने वाला कवि और साहित्यकार बना बैठा दिल्ली भी नहीं संभाल पा रहा था , अगर पटेल गृहमंत्री पद पर न होते तो शायद आज पच्चीसों भारत होते और आधा दर्जन पाकिस्तान होते । 

बहरहाल उत्तर प्रदेश तब यूनाइटेड प्राविंस यानी यूपी था और उसके मुख्यमंत्री पण्डित गोविन्द वल्लभ पन्त बनाये गये जिन्होंने कृषि, उद्योग, अवस्थापना और शिक्षा के विशाल तंत्र को खड़ा किया और उनकी बनाई रूपरेखा पर यूपी यानी वर्तमान का उत्तर प्रदेश चलता रहा सन् 1989 तक जब तक कि राज्य में जातिवादी राजनीतिक विभाजन कर सत्ता हासिल करने वाले नेताओं का वर्चस्व नहीं था   

दुर्भाग्य से नेता जी मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम की जातिवादी राजनीति की सफलता से प्रेरित होकर ओबीसी की जातिवाद राजनीति कर कांशीराम और सुश्री मायावती की राजनीति को दलित वोट बैंक तक सीमित कर दिया परन्तु विकास की राजनीति को विराम भी लगा दिया । 1989 में राजनीतिक सत्ता पाते ही मुलायम सिंह ने बैकवर्ड राजनीति का एक नया आयाम खोला – नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण का । इस प्रतिगामी राजनीति के बल पर मुलायम सिंह, मायावती और मुलायम सिंह के पुत्र श्री अखिलेश यादव 2017 तक उप्र की राजनीति में हावी रहे । परिणामस्वरूप उत्तरप्रदेश एक “बीमारू” राज्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ । यूपी को दंगे, अपहरण, बलात्कार, रोड होल्ड अप, एक्सटार्शन, माफिया राज के लिए एक नेगेटिव पब्लिसिटी मिली, बिजली नहीं, रोड नहीं, हवाई जहाज और हवाई अड्डे नहीं, पाॅलिसी नहीं, इन्वेस्टमेंट नहीं, हर तरह से हीन होने के कारण यूपी की तरक्की रुक गयी , आबादी बढ़ी, तरक्की रुकी तो रोजगार आदि की खोज में आबादी का पलायन बढ़ा । 

दर असल उत्तर प्रदेश एक बहुत ही सघन जनसंख्या वाला ऐसा भारतीय प्रदेश है जिसको विश्व के पांचवे सबसे बड़े राष्ट्र के बराबर रखा जाता है । यूपी की आबादी 24 करोड़ से ऊपर होगी और विकास के पथ पर यह राज्य सन् 1989 के बाद से दिखना बन्द हो गया था । अतः ऐसे प्रदेश की जिम्मेदारी जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने योगी आदित्यनाथ को एक ब एक दी तो सम्पूर्ण राजनीतिक और मीडिया जगत स्तब्ध रह गया – एक अनुभवहीन प्रशासक को इतने बडे आबादी वाले और इतने संक्लिष्ट राजनीतिक-सामाजिक-धार्मिक चुनौतियों वाले प्रदेश की बागडोर देने को लोगों ने मोदी जी की चकित करने वाले जोखिम लेने को अदा बतायी। परन्तु योगी आदित्यनाथ ने चार ही महीने बाद अपनी पहली कैबिनेट मीटिंग से जिस तरह भाजपा के राजनीतिक वादे -किसानों की कर्ज माफी -को पूरा करने का काम शुरू किया तो उनकी पगड़ी पर फिर इन्वेस्टर्स समिट की सफलता , कानून-व्यवस्था को स्थापना, महिलाओं की सुरक्षा और गौरव की वापसी , बिजली की उपलब्धता बढ़ना आदि के चार चांद लगते ही गये । कोविड प्रबन्धन की तो अन्तरराष्ट्रीय प्रशंसा हुई । योगी के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश हवाई अड्डों और एक्सप्रेस वे का प्रदेश बन गया है । इस समय प्रदेश में हर कोने में एक्सप्रेस वे बन रहे हैं । यह सफर पूर्वांचल एक्सप्रेस वे से शुरू हुआ तो अब बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे, गंगा एक्सप्रेस वे, गोरखपुर एक्सप्रेस वे, लखनऊ कानपुर एक्सप्रेस वे, गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेस वे आदि आदि 16 एक्सप्रेस वे या तो पूरे हो गये हैं या काम चल यहा है और पूरा होने की कगार पर हैं ।

इसी तरह कुशीनगर अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, अयोध्याधाम अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डा संचालित हो गये हैं जबकि जेवर सहित शीघ्र ही कुल पांच अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बन जायेंगे । हर जिले में मेडिकल कालेज बन चुके हैं और विश्व विद्यालय बनाने का काम चल रहा है । यानी विकास फुल स्पीड पर है । 

योगी जी केवल विकास पुरुष की भूमिका में ही 24 कैरेट नहीं हैं वरन् वह दक्ष राजनीतिज्ञ के रूप में भी 24 कैरेट साबित हो चुके हैं । वह अकेले ऐसे राजनेता हेमैं जिनकी लोकप्रियता हर वर्ग में है , उन वर्गों में भी लोकप्रिय हैं जो भाजपा को किसी भी हालत में वोट नहीं देते । वह मोदी जी की तरह अपने प्रदेश के बाहर पूरे देश में लोगों द्वारा पहचाने जाते हैं और उनकी सभाओं में बड़ी संख्या में लोग उनको सुनने आते हैं चाहे सभा बंगाल में हो ,हरियाणा- हिमाचल में हो या तमिलनाडु केरल में हो , लोग उन्हे सुनने आते हैं । उनके नारे बहुत मई मौजूं और लोकप्रिय होते हैं – बटेंगे तो कटेंगे उन्ही का दिया नारा है जो पूरे भारत ही नहीं, पूरे विश्व में भारतीय समाज से बाहर भी चर्चित हुआ है । 

पर ऐसे लोकप्रिय और बड़े नेता की यह छवि क्या अगले चुनाव तक अक्षुण्ण रह पायेगी ? यह एक बड़ सवाल है जिसको गम्भीरता से योगी आदित्यनाथ को भी लेना चाहिए।

कहने का तात्पर्य यह कि योगी जी ही योगी जी के लिए चुनौती हैं । योगी जी की भारत की सीमाओं से बाहर फैलती पहचान और लोकप्रियता का स्रोत योगी जी का कुशल प्रशासन रहा है जिस पर पिछले सात वर्ष से किसी भी तरह का प्रश्न नहीं उठाया जा सका । प्रशासन चाहे कानून-व्यवस्था का रहा हो, चाहे सामाजिक सुरक्षा बोध का ,चाहे प्रगति – विकास और आर्थिक प्रबन्ध का, योगी आदित्यनाथ जी के प्रबन्धन को जनता में ए ग्रेड का माना जाता रहा है । परन्तु इधर कुछ बातें ऐसी भी हुई हैं जो विकराल जन असन्तोष का रूप तो नहीं ले सकीं क्योंकि योगी सरकार ने बहुत संवेदनशीलता दिखाई और मौके की नजाकत को ठीक-ठीक भांपते हुए अपने पैर पीछे भी किये जिससे बिगड़ती बात बन गयी। 

बात यह है कि उत्तर प्रदेश में युवा वर्ग भारी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं में अपना कैरियर संवारने का प्रयास करते हैं । उन्हें सरकार जीवन के 35 वर्ष की आयु तक यह अवसर प्रदान करती है । इस तरह के युवाओं के दो तीन प्रमुख केन्द्र है – प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ में लखनऊ विश्वविद्यालय, गोरखपुर विवि, मेरठ में चौ चरण सिंह विवि । उत्तरप्रदेश का लोक सेवा आयोग प्रयागराज में है जहां जातिवादियों के राज-पाट के दौरान भ्रष्टाचार एक संस्थागत रूप में घर कर गया था । लोकसेवा आयोग उप्र में भ्रष्टाचार की गन्दगी बाबू से लेकर डिप्टी सेक्रेटरी स्तर तक पहले कांग्रेस कार्यकाल से ही आने लग गयी थी, पर वह एक व्यापार के रूप में जातिवादियों के समय स्थापित हुई जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने भी टिप्पणी की और लोकसेवा आयोग के चेयरमैन को हटाने के आदेश भी दिये थे । 

बहरहाल, जैसे ही योगी आदित्यनाथ सरकार बनी , लोक सेवा आयोग पर भी उनकी निगाह गयी और शुचिता पारदर्शिता स्थापित करने का प्रयास शुरू हुआ। नये चेयरमैन ने पीसीएस और आरओ – एआरओ परीक्षाएं एक ही दिन मे कराने की परम्परा को बदल कर तीन दिनों की व्यवस्था कर दी । इस व्यवस्था में कदाचित यह ध्यान नहीं रखा गया कि परीक्षार्थियों को प्रवास व अध्यासन में कितनी भीषण तकलीफें तीन दिनों तक झेलनी पड़ेंगी । छात्र जो पहले से ही हताश थे -बार बार परीक्षाओं के स्थगन और रिजल्ट न देने से, भर्तियां रुकने से, क्रुद्ध होकर लोक सेवा आयोग पर एकत्र हो इस निर्णय का विरोध करने लगे । आयोग का निर्णय सदिच्छा पूर्ण था पर छात्रों के लिए उसके अमानवीय परिणाम या अनुभव पर आयोग ने ध्यान नहीं दिया था । छात्र कहां तीन दिन रुकेंगे, क्या खायेंगे, कितना आर्थिक बोझ सह सकेंगे ? इन बातों पर सम्भवतः विचार नहीं किया गया था जिससे भारी असन्तोष उत्पन्न हुआ। उस पर आन्दोलन के पहले दिन ही पुलिस के लट्ठ ने स्थिति को और उग्र बना दिया । राजनीतिक दलों के गोपनीय हाथ इस असन्तोष को भड़काने में लगे तो यह आन्दोलन लखनऊ तक फैल गया । इसी बिन्दु पर सरकार ने संवेदनशीलता और बुद्धिमानी दिखाते हुए छात्रों की मांगों पर समुचित कार्यवाही कर मामले को शान्त कर दिया। 

तो क्या मान लिया जाये कि अब योगी के अगले तीन साल शान्ति से कटेंगे और वह तीसरी बार विधानसभा चुनाव में अपने राजनीतिक दल भाजपा का नेतृत्व कर पायेंगे ? यह सोचना भारी भूल होगी । कारण यह कि उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों में भारी भ्रष्टाचार की बातें मीडिया में सुनाई पड़ती हैं । विश्व विद्यालय में पढ़ने वाले अण्डर ग्रेजुएट छात्रों की मानसिकता पर इन बातों का भारी असर होता है, वे सब आदर्शवाद से अनुप्राणित युवा इन गन्दे भ्रष्टाचारियों के बनाये माहौल से विद्रोह पूर्वक व्यवहार को हमेशा तैयार रहते हैं । जब वे ग्रेजुएट हो जाते हैं तो नौकरी की तलाश में सबसे पहले सरकारी नौकरी की तरफ मुंह करते हैं पर सरकार में भर्तियों का लटकना, भर्तियां टलना, परीक्षाओं में हेरा-फेरी अनिश्चितता उन्हें पूर्ण विद्रोही बनने को प्रेरित करती है । सब जानते हैं कि न तो शिक्षक भर्ती ठीक से हो पाती है, न पुलिस भर्ती, न आयोग की भर्तियां। बस ठेल-ठाल कर इज्जत बचाने भर को कुछ वैकेन्सियां भरी जा सकी हैं । 

योगी जी को 2027 के पहले पहले तक युवा शक्ति को उनके योग्य माहौल बनाकर देने की एक बड़ी चुनौती होगी, भर्तियों को अदालती लफड़ों से मुक्त कराकर सब कुछ पटरी पर ले आना कठिन तो है पर जब वह प्रदेश को माफिया मुक्त कर सकते हैं तो युवाओं के लिए सरकारी नौकरी की भर्तियां भी सन् 1970-80 की भांति समयबद्ध, शुचितापूर्ण कर पायेंगे, बशर्ते उन्होंने यह तय कर लिया तो ।

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