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कांग्रेस की बर्बादी यानी दिल्ली में “आप” की बहार

आप को मिलीं 62 और भाजपा को 8 सीट

63 सीटों पर कांग्रेस को ज़मानत ज़ब्त

डॉ दिलीप अग्निहोत्री

दिल्ली की राजनीति शुरू से कांग्रेस और भाजपा में विभाजित रही है। आम आदमी पार्टी का प्रादुर्भाव वस्तुतः कांग्रेस की जमीन पर हुआ था। कांग्रेस ने पहली बार अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बना कर अपनी रही सही जमीन भी आप के हवाले कर दी थी। ये बात अलग है कि वह सरकार मात्र चौबीस दिन चली थी,लेकिन इसने आप के उज्ज्वल और कांग्रेस धूमिल भविष्य की इबारत लिख दी थी। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोटबैंक आप में चला गया था। बेहतर वोट प्रतिशत के बाद भी तब भाजपा को दिल्ली विधानसभा में मात्र तीन सीटों पर सन्तोष करना पड़ा था। इस बार भी यही हुआ। कांग्रेस मुकाबले से बाहर रही। उसका दशकों से जो वोटबैंक था,वह भाजपा विरोधी था। वह स्वभाविक रूप से आप के खाते में ट्रांसफर हो गया।

फ्री सौगात की भूमिका

आम आदमी पार्टी विकास के चाहे जो दावे करे,लेकिन उसका चुनाव प्रचार पूरी तरह फ्री सौगात पर आधारित था। अरविंद केजरीवाल प्रत्येक सभा में फ्री वाली मात्र तीन उपलब्धि ही गिनाते थे। एक फ्री बिजली,दूसरी फ्री पानी तीसरी फ्री बस यात्रा। उनकी सरकार ने मॉडल के रूप में कुछ सरकारी स्कूल व अस्पताल का भारी धनराशि से सुधार किया। लेकिन यह अभियान व्यापक नहीं बन सका। इसलिए केजरीवाल ने इसे चुनाव का प्रमुख मुद्दा नही बनाया।


आप की जीत से विपक्षी पार्टियां इस प्रकार खुश है,जैसे उन्हें भी सत्ता मिल गई है। लेकिन कुछ समय बाद केजरीवाल की जीत उनके लिए ही चुनौती बनेगी। अनेक क्षत्रप विपक्षी गठबन्धन में अपनी कमान के लिए प्रयासरत रहे है। जबकि केजरीवाल ने तो दो हजार चौदह में ही अपनी यह चाहत जगजाहिर कर दी थी। इसके लिए वह सीधे नरेंद्र मोदी को चुनौती देने उतर गए था। पहले वह गुजरात भ्रमण पर उतरे,फिर मोदी को चुनौती देने वाराणसी चुनाव में उतर गए थे। वैसे दोनों ही जगह उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी। लेकिन यह चाहत एक बार फिर हिलोरे ले सकती है।

विपक्ष के अनेक बुजुर्ग दिग्गज नेता फिलहाल निष्क्रिय है। इनके उत्तराधिकारी अपने बलबूते बढ़ने का प्रयास कर रहे है। इन लोगों को अपने अपने गृह प्रदेशों में ही सीमित रहना पड़ेगा। अब ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल में प्रतिष्पर्धा हो सकती है।


यह सही है कि भाजपा ने इस चुनाव में बहुत मेहनत की। अनेक मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री चुनाव में उतरे। यह स्वभाविक भी था। भाजपा कैडर और विचारधारा पर आधारित पार्टी है। इसमें प्रधानमंत्री, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि सभी पार्टी कार्यकर्ता होते है। इन्होंने अपनी तरफ से प्रयास किया। दिल्ली के मतदाताओं का मन कुछ अलग था। इसी को स्वीकार करना होता है।

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