कृष्ण मोहन अग्रवाल
लॉकडाउन: *मेरे आस पास और सोशल मीडिया*
सोशल मीडिया – फेस बुक, ट्विटर और व्हाट्सएप आदि पर सक्रिय प्रतिभागियों की संख्या, करोना महामारी और लॉक डाउन की घोषणा के बाद से दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया हमें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ संपर्क रखने, अपनी भावनाओं और यादगार क्षणों को साझा करने, और हमारे सामाजिक नेटवर्क को बढ़ाने के लिए बनाए गए हैं ताकि हम अपनों के संपर्क में रह सकें क्यों कि अक्सर किन्हीं अप्रत्याशित कारणों से हमारा हमारे अपनों से संपर्क टूट जाता है तो उन्हें खोजने में सोशल मीडिया बहुत मददगार साबित होते हैं। हम सोशल मीडिया के माध्यम से अपने बहुत पुराने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ आसानी से संपर्क साध लेते हैं, जब कि हम लंबे अंतराल से उनके ठिकाने, उनके मोबाइल नंबर को नहीं जानते हैं और उनसे संपर्क साधने में हम अपने आपको को असक्षम पाते हैं।
एक ओर हम इन सामाजिक मीडिया प्लेटफार्मों पर अपने व्यक्तिगत डेटा और विवरण सबसे खुशी – खुशी साझा करते हैं, अपने अति अतरंग क्षणो को साझा करने में भी जरा भी संकोच नहीं करते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार द्वारा पूछे जाने पर अपने व्यक्तिगत डेटा को साझा करने के लिए अत्यधिक सतर्क रहते हैं। उदाहरण के लिए एनपीआर और एनआरसी, और इसे निजता का हनन और संविधान के विरुद्ध बताते हैं। जब कि सरकार नीतिगत व्यक्तिगत लाभकारी योजनाओं को तैयार करने, भविष्य की रणनीतिक नीतियों को बनाने के लिए और आम जनता के हित में डेटा बेस तैयार करने के लिए यह विवरण पूछती है। ऐसा सालों साल प्रत्येक सरकार करती रही है। हम ईमेल आईडी बनाने, सोशल मीडिया अकाउंट बनाने या सिम कार्ड खरीदने आदि के लिए अपने प्रत्येक व्यक्तिगत विवरण को साझा करने के लिए तैयार हैं, इसमें हमें जरा भी संकोच नहीं है और हम एक बार भी यह नहीं सोचते हैं कि हमारे इस डाटा का उपयोग कहां-कहां, कैसे कैसे होगा?
हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है, बहुधा हम इस अधिकार का दुरुपयोग करके अतिव्यक्ति करते हैं। ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हमारी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए सबसे आसान माध्यम हैं। हम अपनी प्रशंसा, रोष, क्रोध, विभिन्न घटनाओं और नीतियों पर सहमति, असहमति एवं प्रतिकृया बड़ी सुगमता से इन प्लेटफॉर्म पर व्यक्त करते हैं। प्रिंट मीडिया और प्रसारण मीडिया (रेडियो और टेलीविजन) हर किसी के लिए आसानी से सुलभ नहीं हैं और इन मीडिया की अपनी सीमाएँ भी हैं।
संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी असीमित नहीं है, इस संवैधानिक अधिकार की भी सीमाएँ हैं। परंतु अधिकतर लोग अपने बोलने के स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार को तो याद रखते हैं परंतु इसकी सीमा को भूल जाते हैं अथवा इससे जानबूझ कर अनभिज्ञ होने का अभिनय करते हैं ।
परिणाम स्वरूप इन सोशल मीडिया पर हर प्रकार की सामग्री परोसी जाती है जो अश्लील अभद्र शब्दों और भाषा से भरी होती है। जहां एक ओर इन सोशल मीडिया की उपयोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता वहीं ये सोशल मीडिया अनेकों बार सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा भी बन रहे हैं, नफरत फैला रहे हैं और इससे इन सोशल मीडिया का उद्देश्य ही प्राय: लुप्त हो गया है। कभी-कभी यह बहुत शर्मनाक पल हो जाता है जब आप फेस बुक या व्हाट्सएप एक्सेस कर रहे होते हैं। इस पर गलती से कोई अभद्र सामग्री खुली होती है, और आपकी मां, बहन, बच्चे या अन्य किसी बुजुर्ग की नजर इस पर पड़ जाती है।
सबसे अच्छी बात तो यह है कि लोगों को स्वयम समझदार होना चाहिए और आत्म नियंत्रित होना चाहिए लेकिन जब ऐसा नहीं होता है तो हमें बाहरी नियंत्रण की आवश्यकता होती है।
यक्ष प्रश्न – क्या सोशल मीडिया पर अश्लीलता और अश्लील शब्दों/भाषा को नियंत्रित करने की आवश्यकता है?
यदि हाँ, तो भारत सरकार को सोशल मीडिया पर अश्लीलता को नियंत्रित करने के लिए मजबूत पहल करनी चाहिए। किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर किसी भी ऐसे संदेश को पोस्ट करना संभव न हो जिसमें एक भी अश्लील शब्द किसी भी भारतीय भाषा या अंग्रेजी का शामिल हो।
अनेकों वैबसाइट पर स्पेशल कैरेकटर !, @, #, $, %, ^, &, * …….. आदि का प्रयोग करना वर्जित होता है चूंकि इन वेबसाइट को इस प्रकार बनाया जाता है। अत: उपरोक्त अश्लील भाषा को नियंत्रित करने का सुझाव लागू करना संभव प्रतीत होता है। आज प्रद्योगिकी इतनी उन्नत है कि “असंभव” शब्द अतार्किक हो गया है।