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Corona War: लॉकडाउन मैं और आस-पास: 38

लाक डाउन में तवज्जों मांगते एडवोकेट्स के
तंग हालात

पंकज श्रीवास्तव

आजादी के पहले देश के अभिजात्य वर्ग के लोगों का दबदबा वकालत पेशे पर रहा। इंग्लैंड से बार – ऐट – ला कर आने वाले लोगो को कोर्ट को ऐड्रेस करने के लिए “Right of audience ” उपलब्ध था। 

आजादी के बाद देश के हर तबके के लोग उच्च, मध्य. गरीब एवं marginalized सभी वकालत पेशे से जुड़े। उनके सामने इस पेशे की व्यवसायिक निर्भरता हेतु चुनौतिया व दुश्वारियों का आना स्वाभाविक था और है भी ।
उस समय देश के प्रधानमंत्री वकालत पेशे से जुड़े थे व विधि विशेषज्ञ श्री अशोक सेन, भारत सरकार के विधि मंत्री थे, अपने देखी – परखी परंपरा व अनुभवो की प्रेरणा से उन्होंने “एडवोकेट्स एक्ट,1961” निर्मित कराया । इस में रोज खाने-कमाने वाले मेहनतकश अधिवक्ताय़ो की बेहतरी के लिये सुरक्षात्मक कदम उठाने के लिये भी प्रावधान रखें गए जिससे गरीब तबके से आए अधिवक्ता अमीर अधिवक्ताओं के पिछलग्गू ही न रह जाएं। एडवोकेट्स एक्ट,1961 की धारा 6 (d ) एवं 7 (d ) के अवलोकन से यह भली-भांति विदित होता है कि अधिवक्ताओं के हितों को सुरक्षात्मकता प्रदत्त करने की जिम्मेदारी अधिवक्ताओं द्वारा चयनित देश की संस्था बार कौंसिल आफ इण्डिया और राज्यों की बार कौंसिलों पर है ।
अधिवक्ताओं के पंजीकरण का अख्तियार राज्य की बार कौंसिलों द्वारा करने का प्राविधानित किया गया। मगर इसके लिए सरकार को निर्धारित स्टैम्प शुल्क व बार कौंसिल द्वारा निर्धारित लगभग 5 अन्य प्रकार के शुल्कों के.बैंक ड्राफ्ट कुल रू० 15,165 /- ( जैसा उ० प्र० मे प्रभावी है ), इसमें से एक ड्राफ्ट के पैसे एडवोकेट्स एक्ट के.अन्तर्गत Bar Council Of India द्वारा निर्मित नियम 40 एवं 41 के अनुसार देय राशि ” Bar Council Of India Advocates Welfare Fund” के पक्ष मे अदायगी हेतु भी सम्मलित रहता है। इन सब पैसों के भुगतान की रस्म अदायगी के बाद ही कोई व्यक्ति अपने घर – परिवार के लिए अधिवक्ता की हैसियत से कमा पा सकने की स्थिति में होता है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज और समाज से देश बनता है ।

इस समय देश वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। सर्वोच्च प्राथमिकता इस आपदा से निपटने की है। धनाढ्य वर्ग के लोगों को छोड़ दीजिए तो काफी लोगों के हालात खस्ताहाल हैं। हालांकि वकालत पेशे में भी बहुत से लोग खुशहाल हैं, मगर उनके अनुपात में ज्यादा संख्या रोज खाने-कमाने वालों की है। इस पेशे में या हमारे Legal system  मुकदमों की ड्राफ्टिंग के अलावा ” work from home ” का फार्मूला नहीं लगता।
बार कौंसिल के आर्थिक कार्यकलापों में पारदर्शिता बनी रहे और सांस्थानिक अविश्वास न उत्पन्न हो, इसलिए बार कौंसिल के एकाउंट्स का हर वित्तीय वर्ष के अंत के पहले आडिट होने तथा प्रांत एवं केन्द्र दोनों सरकारों द्वारा प्रकाशित होने वाले गजट में पूरे आंकड़ों के अनिवार्य रूप से प्रकाशित किए जाने के भी प्राविधान एडवोकेट्स एक्ट में हैं। इनका अनुपालन भूले से भी कभी नहीं सम्पादित किया जाता। बार कौंसिल के सदस्यगण मनमाने तरीके से मोटी कमाई करने मे जुटे रहते हैं और कानून द्वारा निर्धारित किए गये कर्तव्यों जो poor व marginalised lawyers के प्रति है, उनकी अनदेखी किए रहते हैं।

उ०प्र० सरकार ने वर्ष 1974 मे अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु Advocates Welfare Act बनाया । इसके अन्तर्गत एक ट्रस्ट स्थापित किया गया। प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता महोदय एवं राज्य सरकार के विधि – परामर्शी एवं प्रमुख सचिव, न्याय विभाग को इस ट्रस्ट के पदेन चेयरमैन व महामंत्री होने की व्यवस्था की गई। बार कौंसिल उ०प्र० के दो सदस्यों व चेयरमैन को भी इस ट्रस्ट का सदस्य बनाया गया। प्रदेश में जितने वकालतनामे मुकदमों में दाखिल होते हैैं ( चाहे जिस भी न्यायालय में हो ), उस पर अधिवक्ताओं के कल्याण हेतु रू० 10 /- का अतिरिक्त स्टैम्प लगाने की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार, वर्तमान में इसमें अनुमानित लगभग रू० 10 से 12 करोड़ अधिवक्ताओं के कल्याण कोष में जमा होती है।

दि० 24.4.2020 को बार.कौंसिल उ०प्र० के सदस्यगण श्री अव्दुल रज्जाक व श्री बलवंत सिंह ( जो ट्रस्ट के सदस्य भी है ) ने उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता महोदय को पत्र प्रेषित किया है कि अधिवक्ता कल्याण से संबंधित स्टैम्प की बिक्री से एकत्रित हुए लगभग रू० 250 करोड़ सरकार ने अधिवक्ता कल्याण ट्रस्ट में भुगतान नहीं किया है और भुगतान का सिलसिलेवार व्योरा मांगा है।

इस मुश्किल की घड़ी में जो अधिवक्ता जरूरतमंद हैं, उनकी तंग हालत को देखते हुए अधिवक्ता कल्याण ट्रस्ट से बार कौंसिल उ०प्र० द्वारा मदद दिया जाना लाजिमी प्रतीत होता है।

मा० उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने
W P. (P.I.L.) no.569 0ff 2020 ( In Re Assistance of the Needy Advocates & Registered Advocates Clerks ) मे 20.4.2020 को आदेश पारित करते हुए हाईकोर्ट बार एसोसिएशन एवं बार कौंसिल को एक कमेटी बनाते हुए जरूरतमंद अधिवक्ताओं का उद्धारक बनने को कहा भी है।

यह गौर तलब है कि व्यवसायिक डिफॉल्टरोंं पर दरियादिली और आम तंगहाल अधिवक्ता जो आपदा काल में दुश्वारियां झेलने में अपने को असहाय या अक्षम पा रहे हों, उसको उसके वास्ते बने कल्याणकारी ट्रस्ट के पैसे से मदद- इमदाद दिलाने के लिए प्रबंधन हेतु कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया जाना, आश्चर्यजनक है।

पता नहीं लगता कि और कौन सी विपदा तथा खतरे से बचने के लिए सम्बंधित योजना को धता बताकर सारे धन को सुरक्षित रख लिया गया है और उसका उपयोग अत्यन्त जरूरत मंद अधिवक्ताओं के लिए भी नहीं किया जा रहा है। क्या इससे भी बड़ी आपदा का इंतजार है?

पंकज श्रीवास्तव अधिवक्ता, उच्च न्यायालय प्रयागराज।
9450622645

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