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Corona war: लॉक डाउन, मैं और आसपास: 43

कृष्ण मोहन अग्रवाल

Corona war: लॉक डाउन, मैं और आसपास: 43

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लॉकडाउन: *,

एक हो गया है।लॉक डाउन और व्यंग्य
“व्यंग्य” बहुत ही व्यापक शब्द है और इसकी अनेकों विधा हैं I व्यंग्य के विवेचन में एक बड़ा ग्रंथ लिखा जा सकता है और इस विषय पर अनेकों सामाग्री उपलब्ध भी है I व्यंग्य “गागर में सागर” की अद्भुत कला है Iव्यंग्य अभिव्यक्ति का सबसे सूक्ष्म माध्यम है I
आज परिवार से ले कर, कार्यस्थल, समाज, राजनीति, राष्ट्र, विश्व प्रत्येक स्तर पर अनेकों विसंगतियाँ एवं तनाव विद्द्यमान हैं I हास्य और व्यंग्य वास्तव में तनाव मुक्त करने की एक अलौकिक विधा है I
व्यंग्य को अनेकों साहित्यकारों, विद्वानों ने अनेकों प्रकार से परिभाषित किया है I
रवीन्द्र नाथ त्यागी के शब्दों में, “समाज की कुरीतियों का भंडाफोड़ करने का कार्य प्रमुखत: व्यंग्य द्वारा ही हो सकता है I यदि उसमें हास्य भी समाविष्ट हो जाये तो रंग और भी तेज हो जायगा I”
डाo बापू देसाई के अनुसार, “व्यंग्य एक दूरबीन है जिसमें से विकृति,विसंगति, अत्याचार, अन्याय, भ्रष्टाचार को स्पष्टता से हम देख सकते हैं I”
हास्य और व्यंग्य में परस्परता और पृथकता दोनों होता है I
व्यंग्य के परिपेक्ष में सकारात्मक, सृजनात्मक एवं नकारात्मक सोच दोनों ही निहित हो सकती है I व्यंग्य के कई रूप हैं – शब्द व्यंग्य, चित्र व्यंग्य, व्यंग्य काव्य, व्यंग्य गदद्य, कैरीकेचर …. आदि हैं I कैरीकेचर में किसी व्यक्ति कीविशेषताओं का प्रायः हास्यास्पद अनुकृति द्वारा अतिशयोक्तिपूर्ण पूर्ण चित्रणहोता है । व्यंग्य में निहित संवेदनशीलता, गंभीरता, बौद्धिकता, सांकेतिकता एवं तटस्थ विश्लेषण आदि सभी व्यंग्य तत्व के अंतर्गत आते हैं । व्यंग्य हास परिहास, कटाक्ष, मनोरंजन और संदेश के लिए होते हैं और कई बार इसमें स्मस्य्या विशेष के समाधान की ओर इशारा होता है I कटाक्ष व्यंग्य नाकारात्म सोच की उत्पत्ति होते हैं और प्राय: दुर्भावना एवं अंध विरोध से प्रेरित होते हैं इसलिये अवांछनीय हैं क्यों कि इनसे वैमनस्य और अराजिकता की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है I कटाक्ष व्यंग्य के प्रचार प्रसारण से बचना चाहिये I स्थिति उस समय विषम हो जाती है जब व्यंग्यकार ही अथवा इसके प्रचारक इसके वास्तविक अर्थ को बिना समझे इसको प्रसारित करने लगते हैं और इस पर अन्य भी बिना विचार किए अपनी अनर्गल प्रतिकृया देने लगते हैं जिससे समाज में व्यापक गलत संदेश जाने कि संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है I
करोना महामारी के प्रकोप और लॉक डाउन से अचानक सोशल मीडिया पर व्यंग्य चित्रों, व्यंग्यात्मक संदेशों की बाढ़ आ गई है I
भ्रामक व्यंग्य चित्र
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प्रत्यक्ष है इस व्यंग्य चित्र में लॉक डाउन #3 में सरकार द्वरा शराब के ठेकों के खोलने के निर्णय के ऊपर कटाक्ष किया गया है और इसे गलत बताया गया है I

अब यदि इस व्यंग्य चित्र का हम विश्लेषण करें तो – वक्तव्य “ठेके की भीड़ तो वैक्सीन बना रही है” स्पष्ट है ठेके वाली भीड़ तो वैक्सीन नहीं बना रही है I अब इसी के अनुरूप (analogy)वक्तव्य “मरकज की भीड़ कोरोना फैला रही थी !” का अर्थ निकलता है कि मरकज की भीड़ कोरोना नहीं फैला रही थी Iमतलब मरकज की भीड़ ने कुछ भी
गलत नहीं किया और उसकी भर्त्सना करना अनुचित है और उसका समर्थन करना चाहिये I क्या व्यंग्यकार यही कहना चाहता है ? क्या जो लोग इसे अग्रसारित कर रहे हैं उनका आशय यही है कि मरकज की भीड़ ने कुछ भी गलत नहीं किया ? परंतु सत्यता यही है कि मरकज की भीड़ कोरोना फैला रही थी और उसने सर्वथा गलत किया I
नकारात्मक सोच के व्यंग्य चित्र (Image 2&3)
 
इन व्यंग्य चित्रों में लॉक डाउन से उत्पन्न मज़दूरों की व्यथा बता कर सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया गया है और संदेश है कि सरकार इनके प्रति बिलकुल उदासीन है?

परन्तु क्या यही यथार्थ है ?क्या वास्तव में सरकार ने इनके लिए कुछ नहीं किया ? हाँ यह

सत्य है कि सरकार ने जो कुछ भी किया वह पर्याप्त नहीं था, यथा समय नहीं था आपेक्षा के अनुरूप नहीं था I क्या पूर्ववत सरकारों ने इस प्रकार की परिस्थितियों में इनके लिए बहुत कुछ किया था ?
फिर इस प्रकार की नकारात्मक सोच का कटाक्ष क्यों?
अंध विरोध का व्यंग्य चित्र
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किस किस नशे का बढ़ावा सरकार देती है, वर्तमान या निवर्तमान, यह अलग प्रश्न है और नशे से बाहर आ कर लोग क्या बात करेंगे यह भी  एक क्लिष्ट प्रश्न है I परन्तु नशा नशा होता है चाहे वह “अंध भक्ति” का हो या “अंध विरोध” का I जिस राजनैतिक दल से आप अत्यधिक प्रभावित होते हैं उसके “अंध भक्त” हो जाते हैं और उसी के अन्य  विरोधी राजनैतिक दल के “अंध विरोधी” हो जाते हैं I वास्तव में “अंध भक्ति” और “अंध विरोध” में गहरा संबंध है I एक के बिना दूसरे का

अस्तित्व नहीं है I दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं I इसे आस्तिक और नास्तिक से जोड़ कर भी समझ सकते हैं I
अन्ध भक्ति सकारात्मक सोच और आस्था से उत्पन्न होती है जब कि अन्ध विरोध नकारात्मक सोच और अज्ञानता से उत्पन्न होता है । यह निर्विवाद सत्य है व्यक्ति को सकारात्मक सोच रखनी चाहिये न कि नकारत्मक । न अन्ध भक्त हों और न अन्ध विरोधी । सुतार्किक सकारात्मक सोच रखना ही श्रेयस्कर है।

अन्ध भक्ति से तानाशाह का जन्म हो सकता है, और आवश्यक नहीं है तानाशाह हमेशा देश का अहित ही करे, परन्तु अन्ध विरोध से अराजकता फैलती है और अराजकता समाज का कभी हित नहीं करती I

शराब दुर्व्यसन है एवं वर्जित हैं I अन्ध भक्ति या अंध विरोध दुर्व्यसन नहीं हैं परन्तु इनके परिणाम घातक हो सकते हैं । अंध विरोध के बारे में बहुधा तर्क दिया जाता है, ‘निंदक नियरे रखिए आँगन कुटी छवाय’ I परन्तु यहाँ यह बात गौर करने की है कि निन्दा और अन्ध विरोध में बहुत अंतर है। निंदा तर्क आधारित होती है परंतु अन्ध विरोध सिर्फ अन्धा होता है और कुतर्क आधारित होता है। इस अवस्था में सोचने की शक्ति समाप्त हो जाती है । अन्ध भक्ति में ऐसा नहीं होता है। व्यक्ति की सोचने की शक्ति विद्द्यमान रहती है और वह सुतर्क देता है अथवा मौन रहता है।.

‘अन्ध भक्ति’ और ‘अन्ध विरोध’ दोनो अति का परिणाम हैं और उक्ति है,”अति सर्वत्र वर्जयेत”।

परन्तु अन्ध विरोध ज्यादा घातक है इससे समाज में अराजकता फैलने की सम्भावना बढ़ जाती है।

व्यवस्था पर व्यंग्य चित्र
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सरकार ने करोना महामारी से उत्पन्न संकट के लिए बीस लाख करोड़ के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की I जैसे जैसे इस राहत पैकेज के विवरण आते जा रहे हैं लोगों में निराशा बढ़ती जा रही है क्यों कि इनमें जन सामान्य को, मध्यम वर्ग को राहत जैसा कुछ दिख ही  नहीं रहा है I अधिकतर राहत ऋण संबंधी नियमों को तरल एवं आसान करने की हैं जिससे अंततोगत्वा उनके ऊपर एक अतरिक्त बोझ और बढ्ने वाला है I इस लॉक डाउन से जन सामान्य को जो

आर्थिक क्षति हुई है उसमें उसे कोई राहत दिखाई नहीं देती I

इसके अतिरिक्त यदि कहीं थोड़ी बहुत राहत है भी तो वह लाभार्थी तक वास्तव में कितनी पहुँच पाएगी, यह एक प्रश्न चिन्ह है I

सकारात्मक व्यंग्य चित्र
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इस व्यंग्य चित्र में बालक ने करोना महामारी से उत्पन्न स्थिति का बहुत सजीव चित्रण किया है Iकिस प्रकार से डॉक्टर भारतवर्ष को करोना महामारी से बचाने का कठिन प्रयास कर रहे हैं और किस प्रकार कुछ मूर्ख लोग उनके प्रयास को विफल करने में लगे हैं और पुलिस को अपनी शक्ति उन मूर्खों को नियंत्रित करने में बर्बाद करनी पद रही है I

व्यंग्य चित्र में स्पष्ट संदेश है किसी भी बड़ी समस्य्या से निबटने
के लिये मूर्खो को नियंत्रित करना आवश्यक होता है अन्यथा किये
गए सभी प्रयास विफल हो जाते हैं I

समस्य्या हो या न हो स्टुपिड लोगों पर लगाम कसना बहुत जरूरी है I

विघटनकारी शक्तियों पर व्यंग्य चित्र

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एक इस देश को इस्लामिक बनाना चाहता है और दूसरा वामपंथी। दोनों ही देश की अखंडता, देश के सौहार्द, देश की शांति को नष्ट करना चाहते हैं, छिन्न-भिन्न करना चाहते हैं I

गणित के सूत्र से (-) और (-) से (+) बनता है। इसलिये ये दोनों ही यहाँ सगे भाई बने हैं I सूक्ति भी है, ‘चोर चोर मौसेरे भाई’ और इसी लिए दोनों में खूब छनती है।

यक्ष प्रश्न – हमें कैसे समाज का निर्माण करना है और इसके लिए कैसे व्यंग्य चित्र बनने चाहिए? हमें अंध भक्त या अंध विरोधी होना चाहिए अथवा सुतर्क से किसी भी नीति का समर्थन या विरोध करना चाहिए?क्या हमें स्टुपिड से हमेशा सतर्क रह कर उनका कड़ाई से सही बंदोबस्त निरंतर करते रहना चाहिए जिससे वह किसी प्रकार का अवांछित माहोल उत्पन्न करने की धृष्टता करने का साहस कर ही न पायेँ अथवा जब स्थित अनियंत्रित होने लगे तभी उन पर नियंत्रण करना चाहिए?

 

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