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Coronavirus: क्या कभी न खत्म होने वाली बीमारी है कोविड-19? फर्स्ट वेव के जाने के बाद कैसे होंगे हालात

नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोनावायरस संक्रमण के 23 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। जबकि डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। ऐसे में कई देशों ने इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन किया है। दुनिया भर की सरकारें अभी यह तय नहीं कर पा रही है कि लॉकडाउन को कब हटाया जाए ताकि दोबारा स्थिति सामान्य हो सकें। इस बीच रिसर्चर्स और वैज्ञानिक इस बारे में पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कोविड-19 की पहली लहर (first wave of Covid-19) गुजरने के बाद क्या होगा? भविष्य में इसके प्रकोप को कंट्रोल करने के लिए किस तरह के कदम उठाने होंगे। साइंस जर्नल में पब्लिश की गई एक नई स्टडी में बताया गया है कि इस महामारी की शुरुआती वेव जाने के बाद क्या होगा।

क्या हो सकता है आने वाले दिनों में?
रिसर्चर्स को यहां पर दो संभावनाएं नजर आती है। पहली यह कि जिस तरह SARS-CoV-1 को कंट्रोल किया गया था उसी तरह ये भी कंट्रोल हो जाए। हालांकि इसपर ज्यादातर एक्सपर्ट सहमत नहीं हैं। दूसरा यह कि इस वायरस का ट्रांसमिशन इन्फ्लूएंजा महामारी के समान हो सकता है, जो संक्रमण की पहली लहर के बाद अब सीजनली ट्रांसमिट होता है। हालांकि SARS-CoV-2 का आने वाले दिनों में किस तरह से ट्रांसमिशन होता है ये कई फैक्टर्स पर निर्भर करेगा। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नोवल कोरोनावायरस का ट्रांसमिशन सीजन के साथ बदलता है या नहीं? यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वायरस के खिलाफ हमारी इम्यूनिटी परमानेंट है या नहीं। यदि हमारी इम्यूनिटी इस वायरस के खिलाफ HCoV-OC43 और HCoV-HKU1 की तरह शॉर्ट टर्म (40 हफ्ते) रहती है तो यह बीमारी हर साल दस्तक देगी। वहीं अगर हमारी इम्यूनिटी लॉन्ग टर्म (करीब 2 साल) रहती है तो इस महामारी का प्रकोप हमें हर 2 साल में देखने को मिल सकता है।

क्रॉस-इम्यूनिटी की डिग्री का अध्ययन
रिसर्चर SARS-CoV-2 और अन्य कोरोनावायरसों के बीच क्रॉस-इम्यूनिटी की डिग्री का अध्ययन कर रहे हैं। क्रॉस-इम्यूनिटी का मतलब है अगर आप एक प्रकार के कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाए तो दूसरा कोरोनावायरस आप पर असर नहीं करेगा। उदाहरण के लिए, SARS-CoV-1 से संक्रमित व्यक्ति HCoV-OC43 (सामान्य सर्दी का एक सामान्य कारण) के खिलाफ एंटीबॉडी बनाकर इसे बेअसर कर सकता है। इसी तरह, HCoV-OC43 से संक्रमित होने से SARS-CoV-1 के खिलाफ एंटीबॉडी बनाकर इसे बेअसर कर सकता है। जब SARS-CoV-2 की तुलना SARS-CoV-1 और MERS जैसे कोरोनावायरसों से की जाती है तो ये उसके सामने थोड़ा हल्का दिखाई देता है लेकिन HCoV-OC43 और HCoV-HKU1 की तुलना में अधिक गंभीर होता है। SARS-CoV-2 को कंट्रोल करने में जो बात इसे मुश्किल बनाती है वो है इसकी संक्रामकता। बिना लक्षणों के भी लोगों के भीतर ये वायरस हो सकता है और बीमारी एक से दूसरे तक तुरंत फैल जाती है।

पहला मामला  दिसंबर 2019 में आया था सामने
बता दें कि कोरोनावायरस किसी एक इकलौते वायरस का नाम नहीं है। यह वायरस की एक पूरी फैमिली है। 2002-2003 में सार्स वायरस (SARS-CoV) फैला था, वो भी एक तरह का कोरोनावायरस था जिसका सोर्स एक बिल्ली थी। मेर्स कोरोनावायरस (MERS-CoV) 2012-2013 में मिडिल ईस्ट में फैला था। इसका सोर्स ऊंट था। हालांकि ऐसा माना जाता है कि ये सभी वायरस चमगादड़ से ओरिजिनेट हुए और फिर ये दूसरों जानवरों में पास होने के बाद इंसानों तक पहुंच गए। SARS-CoV-2 से संक्रमण का पहला मामला दिसंबर 2019 में चीन के वुहान शहर में सामने आया था। ऐसा माना जाता है इस वायरस का सोर्स भी कोई जानवर है लेकिन अभी तक इसका पता नहीं चल पाया है। कोविड-19 के मुख्य लक्षण बुखार, थकान और सूखी खांसी हैं। कुछ रोगियों में नाक का बहना, गले में खराश और दस्त जैसै लक्षण भी देखे गए हैं।

ये वायरस इंसानों के फेफड़ों पर हमला करता है और निमोनिया मृत्यु का कारण बनता है। नोवल कोरोनोवायरस संक्रमण को R0 (आर नॉट) को डब्ल्यूएचओ ने 2- 2.5 के बीच रखा है। R0 एक गणितीय शब्द है जो बताता है कि रोग कितना संक्रामक है। यह उन लोगों की औसत संख्या बताता है जो एक संक्रमित व्यक्ति से बीमार होंगे। अगर हम R0 को 2.5 लेते हैं, तो इसका मतलब है कि एक पॉजिटिव व्यक्ति 30 दिनों में 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है।

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