सीएए हिंसा पर यूपी सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ हाईकोर्ट
जे.पी. सिंह
नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद अलीगढ़ समेत यूपी के कई शहरों में हुई हिंसा को लेकर दाखिल सभी याचिकाओं पर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एकसाथ सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार की ओर हलफनामा दाखिल किया गया। लेकिन राज्य सरकार की ओर से दाखिल किए गए हलफनामे से कोर्ट पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने सीएए को लेकर हुई हिंसा को लेकर दाखिल सभी याचिकाओं पर राज्य सरकार से अलग-अलग विस्तृत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार को 16 मार्च तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च को होगी।इसके आलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर फिलहाल सुनवाई नहीं करने का फैसला किया है।
कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि हिंसा के दौरान कितने पुलिस कर्मी घायल हुए।सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि, लगभग तीन सौ पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी घायल हुए हैं। लेकिन कोर्ट में मेडिको लीगल सर्टिफिकेट दाखिल न किए जाने पर सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि, बहुत अधिक सर्टिफिकेट होने की वजह से वे दाखिल नहीं कर सके। चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के दौरान सरकारी वकील से पूछा कि, कितनी गोलियां एफएसएल जांच के लिए भेजी गईं। सरकार की ओर से कोर्ट को जानकारी दी गई कि, सभी गोलियां जांच के लिए एफएसएल भेज दी गई हैं। लेकिन हलफनामे के साथ केवल 315 बोर के एक कारतूस की रिपोर्ट दाखिल किए जाने पर कोर्ट ने बाकी रिपोर्ट पर भी जानकारी मांगी है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पुलिस कर्मियों के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी को लेकर भी जानकारी मांगी। तब राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि, पुलिस कर्मियों के खिलाफ आठ शिकायतें आई हैं और कोर्ट से 156(3) की दो रिपोर्ट्स आई हैं। लेकिन राज्य सरकार के वकील पुलिस कर्मियों के खिलाफ अब तक एफआईआर दर्ज ना करने को लेकर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। इसके बाद हाई कोर्ट ने सीएए को लेकर हुई हिंसा को लेकर दाखिल सभी याचिकाओं पर राज्य सरकार से अलग-अलग विस्तृत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने राज्य सरकार को 16 मार्च तक हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है।
अलीगढ़ में हुई हिंसा को लेकर दाखिल मोहम्मद अमन खान की याचिका पर हाई कोर्ट 26 फरवरी को सुनवाई करेगा। जबकि मुम्बई के वकील अजय कुमार, स्वामी अग्निवेश, वजाहत हबीबुल्ला समेत 13 अन्य याचिकाओं पर 18 मार्च को सुनवाई होगी। गौरतलब है कि सीएए को लेकर 15 दिसम्बर 2019 के बाद अलीगढ़ समेत कई दूसरे शहरों में हुई हिंसा में 23 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई है।
मुंबई के वकील अजय कुमार और पीएफआई संगठन की ओर से दाखिल की गई याचिका समेत कुल 14 याचिकाओं पर इलाहाबाद हाई कोर्ट सुनवाई कर रहाा है। इन याचिकाओं में पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए सीएए के विरोध को लेकर हुई हिंसा की न्यायिक जांच की मांग की गई है। इस मामले में हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को जांच कर एक महीने में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था। लेकिन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से सोमवार को सुनवाई के दौरान कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया।
हाईकोर्ट के निर्देश पर प्रदेश सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने घटना से संबंधित रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि 20 और 21 दिसंबर 2019 को सीएए के विरोध में प्रदर्शन करने के दौरान प्रदेश भर में कुल 22 लोगों की मौत हुई और 83 लोग घायल हुए, जबकि 45 पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों को गंभीर चोटें आई। उन्होंने घायलों की सूची भी प्रस्तुत की।कोर्ट ने घायल पुलिसकर्मियों के बारे में भी जानकारी मांगी है। अपर महाधिवक्ता ने बताया कि घायलों के उपचार के लिए 24 घंटे एंबुलेंस सेवा उपलब्ध रखी गई है। यह कहना गलत है कि एंबुलेंस सेवा पर किसी प्रकार की रोक लगाई गई। घायलों को उपचार की पूरी सुविधा दी गई। पुलिस और प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने अस्पतालों में जाकर उनका हालचाल भी जाना।
अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि बलवा और तोड़फोड़ की घटनाओं के सिलसिले में प्रदेश भर में कुल 883 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इसमें से 561 लोग जमानत पर बाहर आ चुके हैं। 322 लोग अब भी जेल में हैं, जबकि 111 लोगों की जमानत अर्जियां अदालतों में लंबित हैं।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य शिकायत थी कि पूरी घटना में एक भी पुलिसकर्मी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने बताया कि घटना के सिलसिले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ आठ शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनको विवेचना का हिस्सा बनाया गया है। दो शिकायतें अदालतों में दाखिल की गईं। इस प्रकार से नागरिकों की ओर से पुलिस वालों के खिलाफ कुल दस शिकायतें प्राप्त हुईं जिनकी जांच की जा रही है।
कोर्ट ने कानपुर के बाबू पुरवा में मोहम्मद कासिम को गोली मारे जाने के मामले में पूछा कि क्या घायल का किसी मजिस्ट्रेट द्वारा बयान लिया गया है या नहीं। इस पर सरकारी वकील का कहना था कि वह इस बारे में जानकारी लेकर शीघ्र ही न्यायालय को अवगत कराएंगे जबकि याची पक्ष के वकीलों का कहना था कि अब तक घायल का कोई बयान नहीं लिया गया है। कोर्ट ने पूछा कि अब तक बयान लेने के लिए किसी ने पहल क्यों नहीं की। एसआईटी जांच के बारे में भी जानकारी मांगी कि क्या कोई ऐसी अधिसूचना जारी की गई है। इस पर सरकारी वकील ने कहा कि एसआईटी जांच के लिए शासन ने अधिसूचना जारी की थी
न्यूयार्क टाइम्स और कई अन्य अखबारों में प्रकाशित समाचारों के आधार पर चीफ जस्टिस को याचिका के लिए पत्र लिखने वाले अजय कुमार का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता ने कहा कि न्यूयार्क टाइम्स और अन्य अखबारों में प्रकाशित समाचारों की जांच में पाया गया है कि यह समाचार सही नहीं है। सरकार की ओर से समर्थन में अन्य समाचारपत्रों की कटिंग भी पेश की गई। कहा गया कि निजी जानकारी के बिना सिर्फ समाचार पत्रों के आधार कोई याचिका नहीं सुनी जानी चाहिए। ऐसा करने से गलत परंपरा शुरू होगी।
कोर्ट का कहना था कि हमारे पास याचिका पर सुनवाई करने के पर्याप्त आधार हैं। हम इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहे हैं। सरकारी वकील की ओर से मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट व एफआईआर की कॉपी इत्यादि भी अदालत में दाखिल की गई। कोर्ट ने याची पक्ष के वकीलों को 16 मार्च तक अपने जवाब और दस्तावेज इत्यादि दाखिल करने का निर्देश दिया हैै। हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह इस मामले में किसी भी संवाद, दस्तावेज, पत्र आदि को रिकॉर्ड में शामिल करे। सुनवाई 18 मार्च को होगी।
सीएए के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर फ़िलहाल सुनवाई नहीं
नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में दाखिल याचिकाओं पर इलाहाबाद हाईकोर्ट फिलहाल सुनवाई नहीं करेगा। इस मामले में कोर्ट ने कहा है कि सीएए से संबंधित याचिकाओं के उच्चतम न्यायालय से निस्तारित होने के बाद ही इस तरह के मुद्दों की सुनवाई होगी।मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को इस मामले में दाखिल नजाकत अली की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए कहा कि, सीएए से संबंधित याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं और उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को इससे संबंधित मामलों की सुनवाई नहीं करने का निर्देश दिया है। इस स्थिति में याचिका पर सुनवाई उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद ही संभव है। कोर्ट ने याचिका को उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है।