कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा।
–संजय शर्मा
मेरी कोरोना डायरी… पहला दिन
दस बाई दस का कमरा होगा यह, जहां रहते हुए मुझे 24 घंटे से ज्यादा हो चुके हैं। इरा मेडिकल कॉलेज का यह कमरा सालों बाद मेरे एकांकी जीवन का गवाह बना। या यूं कहूं पहली बार! अकेले रहने का अनुभव छात्र राजनीति में डाला था और एक बार निजी जिंदगी में तनाव और डिप्रेशन के कारण कई दिनों तक घर से नहीं निकला था, पर इस बार कारण मजबूरी के थे। कोरोना ने मेरी तरह करोड़ों लोगों की जिंदगी को ऐसे ही एकाकी कर दिया है।
लॉकडाउन लगने के पहले दिन से लेकर पैतालिस दिनों तक लगातार रोज कई घंटे अपनी गाड़ी में खाना भरकर लोगों को बांटता रहा। करीबी लोग कहते रहे… बाहर बहुत खतरा है। मगर मुझे ईश्वर की सत्ता पर कुछ ज्यादा ही यकीन है, तो मैं कहता यह बंदे भी ईश्वर के ही बंदे हैं। लॉकडाउन खुला और मेरी लापरवाही ने मुझे अस्पताल के इस कमरे में पहुंचा दिया।
घर पर था तो तीन चार दिन से बुखार, खांसी और शरीर में बहुत दर्द था। दो दिन खुद को अपने ऊपर के कमरे में अलग किया। चौथे दिन सिविल अस्पताल में जांच करायी और पॉजिटिव होने के बाद काफी पड़ताल के बाद इरा जाने का फैसला किया। मेरी समस्या यह है कि मैं हर पल मजे में रहता हूं। शायद ही किसी ने मुझे अवसाद के पलों में देखा हो। घर पर रिपोर्ट का पता चलते ही चिल्लाया वाह मैडम अब तुमसे दस दिनों की छुट्टïी मिली। बेटे सिद्घार्थ के चेहरे की रंगत उड़ी दिखी तो मेरी बेटी वन्या मायूस। कई सालों से घर पर रह रही परिवार की तरह मोनी पीछे पड़ गयी प्लीज अंकल मत जाओ। मैं यहां पर बढिय़ा खाना खिला दूंगी।
पर मुझे शुगर की समस्या थी और वन्या छोटी है और कमरे में आ जाती है तो मैंने अस्पताल जाने का फैसला बनाए रखा। वो पल मुश्किल था जब बबिता मुझे लिफ्ट तक छोडऩे आयी और आंखों में बहुत आंसू दिखे। यह डर शायद हर परिवार के लोगों को होता होगा कि जाने वाले की वापसी होगी या नहीं। मैंने आंसू देखकर ठहाका लगाया और कहा मेरे बीमा का पैसा इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला। मोनी ने हम दोनों के फोटो खींचे।
संग्राम पिछले आठ सालों से मेरी गाड़ी चला रहा है कह रहा मैं छोडऩे चलूंगा मैंने मना किया। अटैची में पूरा पिकनिक का सामान, जिसमें ओशो की भी चार किताबें। रात लगभग दस बजे इरा पहुंचा। खुद अटैची लेकर गेट तक गया। गाड़ी साइड में खड़ी की। गार्ड से कहा एडमिट होना है। उसने पूछा किसको। मैंने कहा मुझे… ऐसा लगा जैसे चार सौ चालीस वोल्ट का करंट लगा हो। पीछे हटकर बोला- गजब है आप खुद गाड़ी चलाते हुए आ गए।
यह सारा रोमांच तब उडऩ छू हो जाता है जब आप पहले चरण में हकीकत का सामना करते हैं। एक बेसमेंट में ले जाया गया। पहले बांये हाथ की कोहनी के पास की नस फिर दांये हाथ से खून निकालने की नाकाम कोशिश के बाद मेरी हथेली की नस के पीछे से खून निकाला गया। चेस्ट का एक्सरे हुआ। भयंकर तरह की पीपीई किट पहने लोगों के बीच मेरी तरह एक और बुजुर्ग हॉफते हुए आए। देखकर लग रहा था कि कैसे बचेगा इनका जीवन। डॉक्टरों की टीम उन्हें बचाने में जुट गयी। रात ग्यारह बजे अपने इस प्राइवेट रूम में पहुंचा। एक बजे तक घर से ही फोन आते रहे। बहुत कड़ा गद्दा, पतला तकिया, पर कमरे में टीवी और एसी था। नर्स रात के लिए विटामिन सी और डी की गोली दे गयी। रात तीन बजे तक नींद नहीं आयी और मैं ओशो की मृत्यु एक उत्सव है को समझता रहा। बाकी कल की कहानी कल।
घर पर रिपोर्ट का पता चलते ही चिल्लाया वाह मैडम अब तुमसे दस दिनों की छुट्टïी मिली। बेटे सिद्घार्थ के चेहरे की रंगत उड़ी दिखी तो मेरी बेटी वन्या मायूस।
दूसरा दिन:
सुबह छह बजे ही कमरे में रोशनी हो गयी। दरवाजे और खिड़कियों से पड़े पर्दे हटा दिये गये हैं जिससे इंफे क्शन न फैले। मुझेएकदम अंधेरे में सोने की आदत है। रातभर दरवाजों और खिड़कियों से बाहर का नजारा नजर आता रहा। रात तीन बजे बाद बुखार 101 डिग्री तक पहुंच चुका था। शरीर टूट रहा था। लग रहा था मानो पैरों को किसी ने कुचल दिया हो। एक 650 एमजी की डोलो खायी और सो गया। लगभग साढ़े छह बजे पीपीई किट में नर्स शुगर, वीपी और आक्सीजन चेक करने को आ गयी। शुगर वीपी सामान्य निकला। शुगर थोड़ी बढ़ी हुई थी। इनके जाने के बाद फिर झपकी आयी तभी बेड की चादर डालने और सफाई के लिये लोग कमरे में आ गये यह वही समय था जब सबसे ज्यादा नींद आती है। पर मजबूरी। इनके जाने के बाद चाय बनायी। चाय बनाने की केतली और स्टीम के लिये नयी मशीन मिली है अस्पताल से। साथ में ब्रेड बटर लाया था। आठ बजे अस्पताल का नाश्ता भी आ गया। चिल्ला और ब्राउन बटर।
बुखार और दर्द जहां परेशान कर रहा था वहीं इतने फोन इतने मैसेज अंदर से खुशी भी दे रहे थे। कई राजनेता, नौकरशाह और पत्रकार साथियों के लगातार फोन बजते रहे। मेरे पड़ोसी नितिन और विनय कई बार वीडियो काल करते रहे। दोस्त विवेक कुछ ज्यादा परेशान नजर आया। शाम हो गयी मुझे सोचने का मौका ही नहीं मिला।
सभी समझाने में लगे और कह रहे कि चिंता मत करना। लोगों की दुआयें तुम्हारे साथ हैं। कोरोना को हरा दोंगे। इस टाइप के उत्साह बढ़ाने वाले मैसेजों की बाढ़ थी। शाम को डाक्टर आये और मुझसे कहा कि मेरे लिए एक एंटी वायरल दवा शुरू करनी है। फैवीफ्लू। मैंने कहा यह क्या है। जवाब आया आपके चेस्ट में हल्का इंफेक्शन लग रहा है। यह सबसे कारगर दवा है। 200 एमजी की नौ गोली एक साथ यानी 1800 एमजी की गोली खिलायी गयी। नर्स ने बताया कि होम आइसोलेशन के मरीजों को यह दवा नहीं देते क्योंकि यह कभी-कभी नुकसान करती है। पहले लीवर की सभी जांच की जाती है तभी यह दवा शुरू की जाती है।
यहां रात का खाना भी आठ बजे आ गया। ऐसा खाना बबिता बनाती तो कभी न खाता। मल्टीग्रेन आटे की रोटी और बिना किसी और आयल की दाल सब्जी के साथ सलाद। नर्स ने कहा भी आप चाहे तो खाना घर से भी मंगा सकते हैं पर मैंने सोचा कि अस्पताल में आये हैं तो यहां के नियम ही माना जाय। लिहाजा बेमन से यही खाना खाया। शरीर में कमजोरी बढ़ती जा रही थी। पन्द्रह पन्द्रह मिनट की नींद के झोंके आते रहे। घर पर सभी के टेस्ट करा दिये। रिपोर्ट कल आएगी। बबिता से कहा घर पर कुछ ऐसा करो जिससे बच्चे खुश रहें। किसी भी घर में कोरोना के मरीज होने से मायूसी छा जाती है। तब घोषणा हुई कि घर में आये नये मेहमान काई एक महीने का हो गया है तो उसका बर्थडे मनाया जायेगा। जमेन शैफर्ड काई के लिये बबिता ने केक बनाया और उसको टोपी पहनाकर फिर बर्थडे बनाया गया। सिद्घार्थ और बेटी वान्या दोनों खुश। मुझे वीडियो कॉल पर दिखाया।
कितनी छोटी-छोटी खुशी तलाशनी हैं बड़ी-बड़ी जिंदगी से यह इम कमरे में महसूस हो रहा है। सामने से आ रही सूरज की रोशनी को देखकर लग रहा है यही किरण मेरे कमरे में भी आयी होगी। ओशो- जिंदगी बहुत सुनहरा सपना है। तुम…मुझे पाना है तुमको। तुम्हारी संपूर्णता के साथ।
बुखार और दर्द जहां परेशान कर रहा था वहीं इतने फोन इतने मैसेज अंदर से खुशी भी दे रहे थे। कई राजनेता, नौकरशाह और पत्रकार साथियों के लगातार फोन बजते रहे।
कोरोना पॉजिटिव होने के बाद मैं इरा मेडिकल कॉलेज में एडमिट हूं। बहुत सारे साथियों ने फोन करके कहा कि लिखूं वहां से कि कैसा महसूस कर रहा हूं तो रोज का संस्मरण लिखता रहूंगा।
: संजय शर्मा