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“विधि निर्माण प्रक्रिया में आयी जागरूकता”

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के विधानमंडलों में एक सौ अस्सी से अधिक शाखाएँ हैं, इनमें संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। ये सभी शाखाएँ नौ राष्ट्रमंडल क्षेत्रों में बंटी हैं। पहले संसदीय संघ एशिया प्रक्षेत्र में भारत था। अर्थात यह एशिया क्षेत्र का भाग था। दो हजार चार में इसे एक स्वतंत्र क्षेत्र बनाया गया।

सदन का बाधित होना अनुचित


डॉ दिलीप अग्निहोत्री

संविधान निर्माताओं ने संसद व विधानसभाओं में हंगामों की कल्पना नहीं की होगी। वह चाहते थे कि यहां मुद्दों पर व्यापक विचार विमर्श हो,उसके बाद बहुमत से निर्णय लिया जाए। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में सदन के भीतर हंगामा बढा है, सदन स्थगित करने की बार बार नौबत आती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संसदीय संघ सम्मेलन में इस ओर इशारा किया। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को विधायी कार्यो का व्यापक अनुभव है, वह भी सदन के बेल में आकर हंगामा या नारेबाजी करने को अनुचित मानते है। उद्घटन समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संसदीय संघ ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारतीय लोकतंत्र की भावना राष्ट्रमंडल की भावना के अनुरूप है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने लोकतंत्र को कायम रखने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए हम सबको अपनी भूमिका का निर्वाह करना है। एकता और अखंडता को कायम रखना है।


इस सम्मेलन से ठोस निष्कर्ष निकलेंगे जिनसे लोकतंत्र और मजबूत होगा। सरकार तभी काम कर सकती है जब सदन बाधित न हो इससे जनता की भावनाएं भी आहत होती हैं। सरकार अपनी नीतियों से समाज के अंतिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ देना चाहती है।

राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ का गठन कई प्रकार की साझा विरासत को देखते हुए किया गया था। यह बात पुरानी हो गई कि इसके सदस्य देशों में ब्रिटिश हुकूमत थी। फिर भी यह तथ्य भी इतिहास का हिस्सा है, यह साझी विरासत का एक बिंदु भी है। उस समय ब्रिटिश सत्ता शोषक और दमनकारी रूप में स्थापित थी। सभी देशों ने इसे झेला था। ये सभी देश ब्रिटिश आर्थिक शोषण के भी शिकार रहे थे। आज भी इनमें से अधिकांश देश विकसित नहीं हो सके है। ब्रिटेन,भारत जैसे देशों को छोड़ दे तो अन्य कहीं संवैधानिक व्यवस्था भी बहुत मजबूत नहीं है। कई देश समय समय पर असंवैधानिक व हिंसक तख्ता पलट के शिकार होते रहे। कई देशों में संविधान भी है, निर्वाचित सरकार भी है, लेकिन यहां अंतिम निर्णय का अधिकार सेना के हांथो में रहता है। फिर भी सामाजिक स्तर पर अनेक तथ्य समान है। गरीबी ,अशिक्षा, स्वास्थ,पर्यावरण,संवैधानिक तंत्र के संचालन, विधि निर्माण की प्रक्रिया संबन्धी विचार के बिंदु रहते है। राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ के भारत प्रक्षेत्र सम्मेलन में ऐसे अनेक विषयों पर विचार होगा। समान समस्याओं के समाधान हेतु साझा कार्यक्रम बनाने का भी मकसद रहता है। इस सम्मेलन में भाग ले रहे सभी लोग विधि निर्माण प्रक्रिया के जानकार है। सभी को आमजन के बीच काम करने का अनुभव है। निशिचत ही इनके द्वारा किया गया विचार विमर्श लाभप्रद होगा। इससे समस्याओं के समाधान का मार्ग प्रशस्त होगा।

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के विधानमंडलों में एक सौ अस्सी से अधिक शाखाएँ हैं, इनमें संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था है। ये सभी शाखाएँ नौ राष्ट्रमंडल क्षेत्रों में बंटी हैं। पहले संसदीय संघ एशिया प्रक्षेत्र में भारत था। अर्थात यह एशिया क्षेत्र का भाग था। दो हजार चार में इसे एक स्वतंत्र क्षेत्र बनाया गया। राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ भारत क्षेत्र में भारत केंद्र शाखा के अंतर्गत भारत की संसद और तीस राज्य व संघ राज्य क्षेत्र शाखाएँ हैं। भारत क्षेत्र के ऐसे सम्मेलनों का आयोजन दो वर्ष में एक बार किया जाता है। दो वर्ष पहले इसके छठा सम्मेलन पटना में हुआ था। संसदीय प्रक्षेत्र सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया क्षेत्र और साउथ ईस्ट एशिया क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। सम्मेलन की औपचारिक शुरुआत से पहले संसदीय संघ भारत क्षेत्र की कार्यकारी समिति की बैठक लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में हुई।

ओम बिरला ने विधान सभा के मुख्य कक्ष में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ भारत क्षेत्र के सातवें सम्मेलन का उद्घाटन किया। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन उद्घाटन सत्र में विशिष्ट सभा को संबोधित किया। इसमें मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ मौजूद थे। उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित स्वागत भाषण,तथा उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सभापति रमेश यादव धन्यवाद ज्ञापित किया।

उदघाटन सत्र में संसद सदस्य, उत्तर प्रदेश विधानमंडल के वर्तमान और पूर्व सदस्य तथा अन्य विशिष्ट लोग भी उदघाटन शामिल हुए। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल उत्तर प्रदेश विधान सभा में इस सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करेंगी। सम्मेलन में पूर्ण सत्रों के में बजट प्रस्तावों की चर्चा के लिए जनप्रतिनिधियों की क्षमता बढ़ाना जन प्रतिनिधियों का ध्यान विधायी कार्यों की ओर बढ़ाने पर विचार होगा। राज्य उपसभापति हरिवंश पहले विषय पर चर्चा के दौरान मुख्य भाषण देंगे, जबकि केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी दूसरे विषय पर मुख्य भाषण देंगे। शासन संचालन में वित्त की भूमिका ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है। इसलिए यह माना गया कि विधानमंडल बजट प्रस्तावों
पर गम्भीरता से विचार विमर्श करें। इस बात पर हमेशा जोर दिया गया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लापरवाही भी देखी जा रही है। बजट चर्चा भी राजनीतिक हंगामे की भेंट चढ़ जाती है। बिना चर्चा के अनेक वित्तीय प्रसत्ताव पारित कर दिए जाते है। बजट सरकार का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक नीति का साधन होता है। इसमें सरकार की प्राथमिकताओं का व्यापक ब्यौरा होता है। विधेयक पारित करने से पहले इस पर व्यापक विचार विमर्श होना चाहिए। देश की जरूरतों और लोगों की अपेक्षाओं तथा उपलब्ध संसाधनों पर सम्यक विचार होना चाहिए।


प्रजातंत्र में बजट प्रक्रिया पर विधायी भागीदारी होती है। विधि निर्माताओं को यह बात सदैव याद रखनी चाहिए। विधानमंडल बजट से जुड़े निर्णयों में संतुलित मत और सुझाव देने में भी मदद करते हैं। बजट प्रक्रिया में विधानमंडल को अपनी अहमियत समझनी चाहिए। सम्मेलन में जन प्रतिनिधियों का ध्यान विधायी कार्यों की ओर बढ़ाने पर भी विचार होगा। जनप्रतिनिधियों की क्षमता बढ़ाना और विधायी कार्यों की ओर उनका ध्यान बढ़ाना संसदीय लोकतन्त्र की सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । पहली बार जनप्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित हुए सदस्यों को संसदीय प्रक्रियाओं,पद्धतियों, परिपाटियों, आचरण और परम्पराओं से परिचित कराने के लिए विधायी जानकारी दिया जाना बहुत जरूरी है। पारित किए जाने वाले क़ानूनों के बारे में ब्रीफिंग सत्र विधायी कार्यों की ओर जनप्रतिनिधियों का ध्यान बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। निरंतर बदल रही लोक नीति के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने की जनप्रतिनिधियों की योग्यता बहुत हद तक आधिकारिक और विश्वसनीय जानकारी की उपलब्धता पर निर्भर करती है । जानकार और सशक्त जनप्रतिनिधि अपने निर्वाचनक्षेत्रों की जरूरतों और लोगों की इच्छाओं से अधिक परिचित होते हैं। समस्या के समाधान में सहभागी बन सकते है।

 

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