यूपी के डीजीपी ने 60 साल की उम्र में क्यों उठाई लाठी?
स्नेह मधुर
लखनऊ।
वैसे यह कहना ग़लत है कि यूपी के डीजीपी ओपी सिंह साठ साल के ही गए क्योंकि उनके साठ साल के होने में अभी पूरे 13 दिन शेष हैं और जिस तरह से गुरुवार को वह लखनऊ की हिंसक भीड़ के बीच अपनी फोर्स का मनोबल बढ़ाने के लिए न सिर्फ पहुंच गए बल्कि हाथ में लाठी लेकर उसे भांजने की मुद्रा में खड़े हो गए, उससे भी कहीं नहीं लगता कि वह वास्तव में साठ साल को होने को हैं।
गुरुवार को हिंसक और बेकाबू भीड़ के बीच घायल हो रहे जवानों के बीच यह भी चर्चा हो रही थी कि उनका “बूढ़ा मुखिया” भी उनके बीच मौजूद है। इससे जवानों का हौसला भी बढ़ गया था।
वैसे जमीनी सच्चाई भी यही है कि जब उपद्रवियों की भीड़ संख्या में अधिक और बेकाबू हो जाती है तो पुलिस भी न सिर्फ रक्षात्मक मुद्रा में आ जाती है बल्कि जान बचाकर भागने भी लगती है। ऐसे तमाम उदाहरण दुनिया में हर जगह देखने को मिल जाते हैं। अगर कमांडर न हो तो पुलिस भी बिना महावत वाले हाथी की तरह हो जाती है और मुंह छिपाकर भागने की फिराक में लग जाती है। कमांडर के कमजोर होने पर भी यही स्थिति पैदा हो जाती है। अगर सही मौके पर कल ओपी सिंह मैदान में न उतरे होते तो कमोबेश यही स्थिति उत्पन्न हो सकती थी और यूपी पुलिस मुंह दिखाने लायक न रहती।
ओपी सिंह ने कम से कम यूपी सरकार को इस शर्मिंदिगी से बचा लिया।
जवानों के अलावा जब मुख्यमंत्री योगी ने इस पूरे प्रकरण की समीक्षा बैठक की तो एक एडीजी ने खड़े होकर मुख्यमंत्री से यह कहने में भी कोई संकोच नहीं किया कि जब उनका मुखिया भीड़ के बीच लाठी लेकर पहुंच सकता है तो पुलिस फोर्स किसी भी परिस्थितियों में बलवाइयों का मुकाबला करने को तैयार है।
यानी मुखिया बूढ़ा जरूर है लेकिन “बूढ़े शेर” की माफिक हैं और शेर कभी बूढ़ा नहीं होता है, इसे ओपी सिंह ने साबित कर दिया।
असल में उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह 2 जनवरी को साठ साल के हो जायेगें और 31 जनवरी को सेवानिवृत्त भी ही जायेगें। उनके जाने के बाद उनका स्थान कौन लेगा, इसकी खोज भी शुरू हो गई है। उनके बाद नए डीजीपी बनने के लिए 1985 बैच के हितेश अवस्थी, 1986 बैच के जवाहर लाल त्रिपाठी और 1987 बैच के आर पी सिंह मुख्य रूप से होड़ में हैं। लेकिन ऐसे भी कयास लगाए जा रहे हैं कि ओपी सिंह की कार्यकुशलता को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी उन्हें कुछ समय के लिए फिर एक मौका दें और तीन महीने का एक्सटेंशन दिला दें। लेकिन लोग यह भी कह रहे हैं कि यूपी सरकार को केंद्र के सामने यह साबित करने में दिक्कत आएगी कि ओपी सिंह यूपी के लिए आखिर क्यों जरूरी है? क्या यूपी में अच्छे रिकॉर्ड वाले जांबाज़ आईपीएस अफसरों की कमी हो गई है?
हालांकि आंकड़ों के अनुसार ओपी सिंह के कार्यकाल में बड़े अपराधों पर काफी लगाम लगी है और रोड होल्ड अप की घटनाएं तो शून्य तक पहुंच चुकी हैं। ओपी सिंह के कार्यकाल में अयोध्या पर आए फैसले के बाद भी बिल्कुल शांति रही और सोशल मीडिया के माध्यम से तमाम शरारती तत्वों पर लगाम लगाने में भी सफलता मिली है। खुद मुख्यमंत्री योगी का मानना है कि यूपी में अपराध नियंत्रण में हैं। लेकिन योगी की पैरवी कितना काम करेगी, इसका नतीजा तो जनवरी के आखिरी हफ्ते में ही पता चल पाएगा।
लेकिन मुख्यमंत्री योगी ओपी सिंह से कितने प्रसन्न और प्रभावित हैं, इसका एक उदाहरण गुरुवार के हिंसक उपद्रव के बाद समीक्षा बैठक में देखने को मिला, जब मुख्यमंत्री ने इन घटनाओं के लिए सीधे मंडलायुक्त और पुलिस महानिरीक्षक को जिम्मेदार ठहराते हुए एक तरफ उनकी लानत मलामत कर दी और दूसरी तरफ ओपी सिंह की पीठ भी ठोंक दी।
बैठक में मुख्यमंत्री योगी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान आईजी व कमिश्नर लखनऊ की कार्यशैली से नाराज हुए।
सीएम ने बेहद कड़े शब्दों को इस्तेमाल किया। योगी ने कहा कि आप लोग वहां थे, झगड़ा हो रहा था, डीजीपी केे पहुंचते ही बवाल कैसे शांत हो गया? अगर मैं डीजीपी को वहां नहीं भेजता तो हालात और बेकाबू हो जाते?
मुरादाबाद रेंज के आईजी रमित शर्मा से भी मुख्यमंत्री संभल में हुई घटना को लेकर बेहद नाराज हुए।
डीजीपी ओपी सिंह की कार्यशैली को सीएम ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में जमकर सराहा। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में डीजीपी की कार्यशैली से प्रभावित होकर प्रदेश के एक एडीजी स्तर के अधिकारी ने सीएम से कहा कि जब हमारे पुलिस विभाग का मुखिया 60 साल में लाठी लेकर सड़क पर उतर सकता है तो मुख्यमंत्री जी मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि कल और आने वाले समय में उपद्रवियों को कानून हाथ में नहीं लेने दिया जाएगा व किसी भी तरह की घटना को होने से रोका जाएगा।
कैसे कोई भी आईपीएस रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले तक बेहतर काम कर सकता है। लेकिन जैसे ही डीजीपी ओपी सिंह कल खुद हाथ में लाठी लेकर उपद्रवियों के बीच पहुंचे, लखनऊ पुलिस में नया जोश आ गया। ऐसे उदाहरण नहीं मिलेंगे। ओपी सिंह के मैदान ए जंग में कूदने के साथ ही साथ प्रदेश भर के पुलिस अधिकारियों व सिपाहियों में काफी जोश दिखाई पड़ रहा था।
इन संकेतों से साफ है कि डीजीपी ओपी सिंह को योगी छोड़ना नहीं चाहेगें, देखना यह है कि वह अपने संकल्प में सफल हो पाते हैं कि नहीं। वैसे यूपी में जो स्थितियां उत्पन्न हो रही है उससे यही लगता है कि उत्तर प्रदेश को अभी ओपी सिंह की जरूरत है, यह साबित करने में योगी जरूर सफल होंगे।