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ओपी सिंह ने डीलिट की मानद उपाधि क्यों ठुकरायी?

डीजीपी ने खुद को इस विवाद से अलग करते हुए स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए प्रदेश में शांति का माहौल बनाना अधिक महत्वपूर्ण है, न कि मंचों पर सम्मानित होना। यह ओपी सिंह की दूरन्देशी ही थी जिससे उन्होंने साजिशकर्ताओं के नापाक इरादों को भांप लिया और उनकी मंशा सफल नहीं होने दी। ऐसा समझा जाता है कि इलाहाबाद विश्विद्यालय की छवि अब ऐसी नहीं रही जहाँ से मिलने वाली डिग्री को लोग सम्मान से देखें। वर्तमान कुलपति का कार्यकाल भी विवादों से भरा रहा है।

स्नेह मधुर

प्रयागराज।

एक तरफ प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय का दीक्षान्त समारोह २३ वर्षों के अन्तराल के बाद गुरुवार को मनाया गया लेकिन इसी दिन नयी दिल्ली स्थित जंतर मंतर पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों/पुराछात्रों और शिक्षकों ने पूर्व प्रोफेसर रामकिशोर शास्त्री और पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रोहित मिश्रा के नेतृत्व में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अधःपतन के खिलाफ “इविवि बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति” के तत्वावधान में धरना भी दिया। इस तरह से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का यह दीक्षान्त समारोह गौरवपूर्ण न होकर विवादित हो गया, खासकर तब जब उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह भी इस समारोह में शामिल नहीं हुए जबकि उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से डीलिट की मानद उपाधि दी जाने वाली थी।

उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने यूनिवर्सिटी प्रशासन को चिट्ठी लिखकर डीलिट की मानद उपाधि के लिए अपना नाम चुने जाने पर आभार जताया था लेकिन साथ में उन्होंने मानद उपाधि स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। एक तरह से ओपी सिंह ने अपनी सदाशयता और बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए उस आग को ठंडा करने की कोशिश की थी जिसमें उन्हें राजनीतिक मोहरा बनाकर कुछ लीग प्रदेश में अशान्तिपूर्ण माहौल बनाने के साजिश में लगे हुए थे। यह ओपी सिंह की दूरन्देशी ही थी जिससे उन्होंने साजिशकर्ताओं के नापाक इरादों को भांप लिया और उनकी मंशा सफल नहीं होने दी।

ज्ञातव्य है कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के कुछ छात्र और पूर्व शिक्षक डीजीपी को मानद उपाधि दिये जाने का विरोध इस आधार पर कर रहे थे कि यह परंपरा के विरुद्ध है। डीजीपी ने खुद को इस विवाद से अलग करते हुए स्पष्ट कर् दिया कि उनके लिए प्रदेश में शांति का माहौल बनाना अधिक महत्वपूर्ण है,न कि मंचों पर सम्मानित होना।

इलाहबाद विश्वविद्यालय का यह समारोह इसलिए भी मज़ाक बनकर रह गया क्योंकि इस समारोह में पूर्व घोषणा के बाद भी उत्तराखंड की राज्य्पाल ने भी शिरकत करने से मना कर दिया जबकि इस समारोह में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी को भी उपाधि दी जानी थी। इस समारोह में काफी आमंत्रित लोगों ने अपनी भागीदारी नहीं दी। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल भी नहीं आयीं। इस समारोह में इलाहाबाद का कोई सांसद भी मौजूद नहीं था जबकि यहाँ पर प्रदेश सरकार के तीन-तीन मंत्री हैं जो लगभग हर कार्यक्रम में शामिल होते रहते हैं। समारोह में भाजपा की तरफ से मात्र पूर्व विधायक नरेन्द्र सिंह गौड़ ही देखे गये। ऐसा लगता है कि कुलपति की दागदार छवि ने पूरी सरकार को इस समारोह का बहिष्कार करने के लिए बाध्य कर दिया। छात्रो को भी प्रवेश न मिलने के कारण वे खफा थे। उनके आक्रोश को देखकर उन्हें हिरासत में लेकर दिनभर के लिए थाने में बिठाये रखा गया था। इस तरह से इलाहाबाद विश्वविद्यालय का यह समारोह राजनीति का अखाडा बन कर रह गया।

इलाहबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष रोहित मिश्रा ने नयी दिल्ली में जंतर-मंतर पर आयोजित धरने में कहा कि आज शिक्षक दिवस के दिन विवि में हो रहे दीक्षांत समारोह में किसी भी आम छात्र को जाने की इजाजत नहीं है। एक तरफ जहां विवि प्रशासन जश्न मना रहा है, वहीं विवि का आम छात्र सड़क पर पुलिसिया लाठियों से पीटा जा रहा है। साथ ही विवि के पुराछात्र रहे यूपी डीजीपी ओपी सिंह ने मानद उपाधि लेने से मना कर दिया है। ये तमाम घटनाएं पूरब के ऑक्सफ़ोर्ड के ऊपर एक एक दाग की तरह है। उन्होंने ये भी कहा कि इस महान शिक्षण संस्थान और उसके दीक्षांत समारोह की इस दुर्गति को देखते हुए हम सभी लोगों ने आज का दिन “अधःपतन दिवस” के रूप में मनाया।

पूर्व शिक्षक संघ (आटा) के अध्यक्ष प्रो रामकिशोर शास्त्री ने कहा कि विगत साढ़े तीन वर्षों से विश्वविद्यालय सतत गर्त की ओर प्रवाहमान है। भ्रष्टाचार चरम पर है और परिसर के लोकतांत्रिक मूल्यों की नृशंस हत्या की जा चुकी है। कुलपति हांगलू और विवि प्रशासन पर लगभग 500 मुकदमे न्यायालय में लंबित है साथ ही लगभग 3 दर्जन अवमानना के मामले माननीय न्यायालय में लंबित है जो कुलपति हांगलू की प्रशासनिक असफलता का खुला उदाहरण है। मंत्रालय द्वारा विवि की इस दुःखद दुर्व्यवस्था की जांच हेतु तीन तीन जांच समितियां भेजी गई जिन्होंने विवि के कुलपति रतन लाल हांगलू द्वारा प्रायोजित अकादमिक अराजकता,भ्रष्टाचार और अलोकतांत्रिक गतिविधियों को सही पाया किन्तु इसके बावजूद भी मंत्रालय मौन बैठा हुआ है।
हमारी मांग है कि कुलपति रतन लाल हांगलू को तत्काल निलंबित कर उन्हें छुट्टी पर भेजा जाय साथ ही कुलपति के कार्यकाल में हुई समस्त नियुक्तियों/कार्यवाहियों/निर्णयों की सीबीआई जांच कराई जाए। प्रोफेसर शास्त्री ने कुलपति को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा कि अगर मानव संसाधन मंत्रालय अपनी ही कमेटियों की रिपोर्ट को स्वीकार कर ले तो स्पष्ट हो जायेगा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय अवैध नियुक्तियों का अड्डा बन चुका है और नियुक्ति पाने की पहली शर्त भ्रष्ट आचरण में लिप्त होना है.

धरने को समर्थन देने पहुंचे दिल्ली विवि के पूर्व शिक्षक संघ अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्र ने कहा कि इलाहबाद विवि देश का एक महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थान है जिसने देश को समय समय पर सार्थक और सशक्त दिशा देने का काम किया है किंतु आज ऐसे महान विवि की दुर्दशा को देखकर अत्यंत कष्ट होता है। हम सरकार से आग्रह करते है कि जल्द से जल्द इस दुर्व्यवस्था से विवि को मुक्त कराए अन्यथा हम राष्ट्र की एक महान धरोहर को खो देंगे।
धरना में जनकवि गौरव अधिराष्ट्र,सचिन पाठक,विश्वदीपक त्रिपाठी,विश्वदीप शुक्ला,श्री प्रकाश, प्रशांत,अमित,सचिन,लकी सिंह,अनुराग ओझा,आकांक्षा,रागिनी,वंदना सहित सैकड़ों छात्र/पुराछात्र मौजूद रहे।

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