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के. एम. अग्रवाल
‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 90:
सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका। एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।
गतांक से आगे…
नीड़ का निर्माण फिर: 19

महराजगंज की “कुछ शक्सियतें”:4
इतिहास की बात करें तो महराजगंज गौतम बुद्ध की धरती मानी जाती है। आधुनिक काल की बात करें तो यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रो. शिब्बनलाल सक्सेना की धरती मानी जाती है। इसी अवधि में कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी यहां हुए, जिन्होंने जीवन पर्यंत यहां की सेवा की और अब आज नहीं हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं, जिनसे मैं स्वयं भी गहराई से जुड़ा रहा और जिनके बारे में लिखना ज़रूरी लगता है।
“डा. सी.पी. सिंह “
कोई व्यक्ति कवि हृदय हो, पूरे मन से ग़ज़ल सुनाता हो, लेकिन स्वयं कोई गीत, कविता या ग़ज़ल न लिखता हो, ऐसे व्यक्ति थे डा.सी.पी.सिंह। दो दो बार दिल का खुला आपरेशन हो चुका, पेसमेकर लगा हुआ, लेकिन इतना जिंदादिल कि कोई नौजवान भी शर्मिंदा हो जाये, ऐसे थे डा.सी.पी.सिंह।
सामान्यतया बाहर से किसी अच्छी नौकरी पर आये व्यक्ति, अवकाश ग्रहण करने के बाद या तो लखनऊ में बस जाते हैं या फिर लड़कों के पास रहने चले जाते हैं। लेकिन डा. सिंह यहां जिला अस्पताल से डिप्टी सी.एम.ओ. के पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद भी, यहां महराजगंज की जमीन से ऐसे जुड़ गए कि यहीं के होकर रह गये।
पेशे से चिकित्सक डा. सिंह एक मरीज से जितना लगाव रखते थे, अपने निजी शौक के रूप में उतना ही लगाव संगीत यानि कि ग़ज़ल गायकी से रखते थे। अधिक से अधिक सामाजिक होने और दिल के मामले में ये सदैव से विनम्र रहे हैं। शायद यह विनम्रता ही थी, जो महराजगंज में ये सबकी पसंद की ‘ चीज ‘ हो गये थे।
1942 में गाजीपुर के मलिकपुरा में जन्मे डा.सी.पी.सिंह जमींदार परिवार से थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा निकट के गांव लालपुर हरी में हुई। बाद में उनकी पढ़ाई लखनऊ में हुई और वहीं ये युवा अवस्था में लखनवी मिजाज के निकट आये। फिर कानपुर में 1972 में MBBS की पढ़ाई पूरी करके सरकारी नौकरी में आ गये। इस दौरान रायबरेली, गोण्डा, आजमगढ़ और गोरखपुर में चिकित्सक के रूप में सेवा कार्य करते रहे।
1985 से 1987 तक महराजगंज में रहने के दौरान ही इन्हें महराजगंज से लगाव हो गया। फिर Dy CMO होकर गोरखपुर चले गये। पुनः 1990 में जब दोबारा महराजगंज आना हुआ तो फिर यहीं के होकर रह गये। इस बीच वह जिला कुष्ठ अधिकारी बन गये। और जब वर्ष 2000 में इन्होंने अवकाश ग्रहण किया तो महराजगंज में ही बस जाने का इनका इरादा पक्का हो गया। शायद इसका प्रमुख कारण यहां के लोगों से उन्हें मिलने वाला अगाध प्रेम था।
एक चिकित्सक के रूप में डा. सिंह ने महराजगंज में जो नाम कमाया, वह कम ही लोगों को मिल सका है। एक अच्छे चिकित्सक से भी ऊपर वह एक अच्छे इंसान थे। यही कारण रहा कि पैसे के अभाव में कोई मरीज उनके यहां से निराश नहीं लौटा। कहीं कोई सामाजिक कार्य हो, कोई उन्हें प्रेम से बुलाये, वह अवश्य जाते थे। लोगों के आग्रह पर पूरे तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर सबका दिल जीत लेते थे। महराजगंज में कभी कभी आयोजित होने वाले ‘महालंठ सम्मेलन’ की वह आवश्यक ‘पूंजी’ थे। वह हमेशा यही चाहते थे, यहां कुछ न कुछ विकास कार्य होता रहे और लोगों के बीच भाई चारा बना रहे।
और फिर 24 जनवरी, 2020 का वह दिन भी आया, जब वह बम्बई डाक्टर को दिल दिखाने गये थे और लखनऊ पहुंचते पहुंचते उनके दिल ने उनको जवाब दे दिया। दिल का बादशाह हम सबसे जुदा हो गया।
यह अच्छी बात है कि उनके चिकित्सक पुत्र डा.आनंद सिंह ने महराजगंज से ही जुड़े रहना पसंद किया।
क्रमशः 91