डॉ. नीलिमा मिश्रा:
एक शानदार शख्सियत और बेहतरीन शायरा
प्रयागराज।
महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई के तत्वावधान में महिला काव्य मंच की अध्यक्ष रचना सक्सेना के संयोजन में प्रयागराज की एक चर्चित गजलकारा डा. नीलिमा मिश्रा पर केन्द्रित एक समीक्षात्मक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में नगर की अनेक वरिष्ठ महिला साहित्यकारों ने भी भाग लिया।
गजलकारा *महक जौनपुरी* कहती है कि नीलिमा ग़ज़ल की सिद्धस्त शायरा हैं। हालाँकि दोहे, कुण्डलिया, छंद, गीत आदि विधाओं में उनका लेखन बेहद प्रभावी रहता है रुमानियत पर शेर कहने में भी उनकी कोई टक्कर नहीं। देखिए उनका एक मतला :-
*परदे में सनम जो बैठा है कैसे उसका दीदार करूँ।*
*इक सूरत मेरे दिल में है मैं कैसे ऑंखें चार करूँ।*
*डा. सरोज सिंह* कहती है कि डा नीलिमा मिश्रा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न अगणित भावों से परिपूर्ण संवेदनशील ,सजग रचनाकार हैं।विचारों की गहनता एवं भावों की प्रगाढ़ता ही किसी रचनाकार को कालजयी बनाती हैं। ग़ज़ल को पेश करने का उनका अंदाज ही जुदा है। ग़ज़ल जज्बात और अल्फ़ाज़ का बेहतरीन गुंचा है,एक रसीला अंदाज है जो नीलिमा की ग़जलों में देखा जा सकता है। वरिष्ठ साहित्यकार *उमा सहाय* कहती है कि नीलिमा के जेहन में उर्दू शब्दों का अच्छा भंडार है और इन्होंने उर्दू लफ्जों को अपनी ग़ज़लों की पंक्तियों में माणिक मोतियों की तरह पिरोया है। नीलिमा की भाषा शैली का अंदाज पारंपरिक रूप से शायराना है ।वह एक पूर्ण परिपक्व मुकम्मिल बेहतरीन शायरा हैं।वरिष्ठ साहित्यकार *प्रेमाराय* कहती है कि नीलिमा में मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सरोकारों को सशक्त लेखनी मे निबद्ध करके अभिव्यक्त करने की अनुपम क्षमता है।बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न डा. नीलिमा मिश्रा साहित्यिक जगत मे उच्च कोटि की अप्रतिम कीर्तिलब्ध कलाकार हैं। संगीत और साहित्य का वो एक ऐसा संगम हैं जिसमें अवगाहन करने वाला आनंदातिरेक की सुखद अनुभूति करता है। डा. नीलिमा मिश्रा कलाकारों की नगरी प्रयागराज की अनुपम निधि हैं।
शहर की वरिष्ठ गजलकारा *सुमन दुग्गल* कहती है कि डाॅ नीलिमा मिश्रा साहिबा उम्दा ग़ज़लकारा के रूप में जानी जाती हैं। अपने गीतों और छंदबद्ध सृजन द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध कर रही हैं। मानवीय संवेदनाओं को निर्धारित शिल्प में ढाल कर इन्होने उन्हें ख़ूबसूरत बिम्बों के साथ अभिव्यक्ति दी है। लयात्मक ग़ज़लें, छंद गीत इस के परिचायक हैं। ये शेर इस बात को स्पष्ट करेगा:
*कई फाँके बिता कर मर गया वो रास्ते में ही*
*गरीबी किस क़दर मजबूर और लाचार होती है*
आगे वह कहती है कि डाॅ नीलिमा मिश्रा साहिबा की क़लम इंसानी जीवन के हर पहलू को चित्रित करती है। परंपरागत विषय प्रेम, विरह के अतिरिक्त इन्होंने सामाजिक, राष्ट्रीय और समसामयिक विषयों पर भी लेखनी उठाई है।
वरिष्ठ लेखिका *मीरा सिन्हा* कहती है कि उनकी रचना प्रक्रिया उनके ही शब्दोँ मे ‘शब्द की सीमायें लेकिन भाव है अगणित हमारे” ‘उनका भविष्य बहुत उज्जवल है प्रयागराज की वरिष्ठ कवयित्री *देवयानी* कहती है कि कवयित्री ने हिंदी और उर्दू भाषा को बहुत ही समझ के साथ कविता मे पिरोया।जहां इनको मिलाया उसका भी प्रयोग बहुत सुंदर रहा। अर्थ पूर्ण बंदिश पाठक को विभोर करता है।
वरिष्ठ कवयित्री *जया मोहन श्रीवास्तव* कहती है कि जीवन के हर पहलुओं को उन्होंने छुआ है।जब नीलिमा सस्वर पाठ करती है तो श्रोता मन्त्र मुग्ध हो स्वर लहरी में खो जाता है।
वरिष्ठ कवयित्री *कविता उपाध्याय* कहती हैं कि नीलिमा मुशायरों की जान हैं। उनकी कविताओं में सूफियाना असर तो दिखता ही है कहने का अंदाज भी निराला है, जिससे श्रोता झूमने पर मजबूर हो जाता है।
*ऋतन्धरा मिश्रा* कहती है कि डॉ नीलिमा की ग़ज़लें दिल से रूह में उतर जाती है और सात सुुुुरों के स्वर गजल, छंद, दोहे, गीत, मुक्तक मे सुरों का स्वरूप लय मे दिखता है।
*डा. पूर्णिमा मालवीय* कहती है सुपरिचित हस्ताक्षर काव्य गजल कहानी में अपनी पैठ बनाने वाली, कुशल संचालक, मितभाषी डॉ नीलिमा मिश्रा से साहित्य जगत अनभिज्ञ नहीं है। जिस किसी विधा पर वह अपनी धारदार लेखनी चलाकर सुरमई कंठों से संपूर्ण साहित्य जगत को मुक्त कंठ से प्रशंसा करने को बाध्य कर देती है।
*डा अर्चना पाण्डेय* का कहना है कि सामाजिक संबंधों एवं मानवमूल्यों के प्रति सजगता एवं उत्तरदायित्व, नारी के अस्तित्व की चिंता आपकी रचनाओं में सहज ही निरूपित हैं। अंत में रचना सक्सेना ने उनकी उत्कृष्ट लेखनी के विषय में कहा कि साहित्य और शिक्षा के जगत से ताल्लुक रखने वाली गजलकारा नीलिमा मिश्रा साहित्य जगत की एक चमकता सितारा है जिन्होने जीवन के विभिन्न रंगों, मानवीय संवेदनाओं, समाज की विसंगतियों पर अपनी कलम उठाई।
इस परिचर्चा की अध्यक्षता महक जौनपुरी ने की।
रिपोर्ट: रचना सक्सेना
अध्यक्ष महिला काव्य मंच प्रयागराज ईकाई उ0प्र0
डॉ नीलिमा मिश्रा का रचना संसार
बाकी सब अफ़साना है
एक हक़ीक़त तू ही है बस बाक़ी सब अफ़साना है,
तुझमें ही खोये रहना है होश में किसको आना है।
दिल का सौदा घाटे का है फिर भी सौदा सस्ता है,
मैं तो इसको समझ चुकी हूँ इस दिल को समझाना है।
एक दूजे की ख़ातिर दोनों इस संसार में आये हैं,
मैं उसकी दीवानी हूँ और वो मेरा दीवाना है।
जग वालों ने ग़ैर ही समझा लेकिन इसका दुख भी नहीं,
मुझको बस तूने पहचाना और किसने पहचाना है।
तेरे प्यार की भिक्षा पाकर मैं धनवान हुई ऐसी,
लगता है के दुनिया भर का मेरे पास ख़ज़ाना है।
परदे में सनम जो बैठा है
परदे में सनम जो बैठा है कैसे उसका दीदार करूँ,
इक सूरत मेरे दिल में हैं कैसे मैं आँखें चार करूँ।
ये दुनिया कितनी ज़ालिम है मिलने भी न दे कि क़रार मिले,
हसरत इक आशिक -ए-ज़ार की है हर वक़्त उसे मैं प्यार करूँ।
मैं कैसे भूलूँ इश़्क तेरा तू मेरी आख़िरी ख़्वाहिश है,
तू इश़्क का जलवा दिखला दे फिर मौत से भी मैं प्यार करूँ।
ये भी तो वफ़ा की जन्नत है उस यार को मैं दिल दे बैठी,
गर ये है ख़ता तो ऐ हमदम मैं ऐसी ख़ता हर बार करूँ।
ये दर्द -ए-मोहब्बत है नीलम ये यूँ ही अयाँ हो जाता है,
दिल के आँगन में है सब कुछ मैं काहे यहाँ दीवार करूँ।
मुहब्बत में यक़ीनन ज़िंदगी दुश्वार होती है
ये वो शै है जो यारां खुद ब खुद तैयार होती है
तुम्हारी याद की ही चाँदनी हर सिम्त है छिटकी,
उसी की रोशनी मे ज़िंदगी अब पार होती है
मेरे महबूब को क्यों नाज़ अपने घुंघरुओं पर था,
किसी पाज़ेब में इतनी कहाँ झंकार होती है।
दुआ कीजे नही हो भाइयों में आपसी झगड़ा,
हमेशा घर के आँगन में वहाँ दीवार होती है।
नही सुनता कोई भी अब किसी की बात महफ़िल मे ,
सभी को अपने कहने की ही जल्दी यार होती है।
कई फाँके बिताकर मर गया वो रास्ते में ही ,
ग़रीबी किस क़दर मजबूर और लाचार होती है।
हमारे देश का अब मीडिया भी बिक चुका इतना,
किसी घटना से पहले ही ख़बर तैयार होती है।
कहीं भी वेदना देखूं तो आँसू थम नहीं पाते,
मेरे भावों के झरने से नदी की हार होती है।
तुम्हारे शेर की तासीर बिलकुल है अलग नीलम,
तुम्हारी हर ग़ज़ल दर्दे जिगर का सार होती है।
एक वादा
एक वादा आपको खुद से भी तो करना चाहिए,
चाहतों के रंग से दामन को भरना चाहिए।
अबकी फागुन में बसंती रंग की साड़ी पहन,
हाथ में तुमको भी तो सरसों उगाना चाहिये।
झाड़ियों में जुगनुओं को ढूँढने निकलो कभी
दिल के कोने में कहीं बचपन भी रखना चाहिए ।
हाथ में मेंहदी लगाकर खिलखिलाकर करके हँसो
एक प्यारी सी ग़ज़ल खुद पर भी कहना चाहिये।
तोड़ दो ज़ंजीर जो पैरों में चुभती हो तुम्हे,
प्यार का संगीत अब दिल में उतरना चाहिये।
कोई बचपन का पुराना मीत तुम भी ढूँढ लो,
ख़्वाब नीलम अब कोई भी टूटना ना चाहिये।
हमारी पायल
हमारी पायल की झंकार,
बहाती प्रेम भरी रसधार।
उठाती मन में तरल तरंग,
करे उत्कर्षित अंग उमंग।।
सुनो तुम मधुर -मधुर ये राग,
लगा देगी हिरदय में आग।
रखे हम स्वाभिमान का ध्यान,
नही सह पायेंगे अपमान।
रहें हम कभी न होकर तंग
करें उत्कर्षित अंग उमंग ।।
हमारे प्यार का ये संसार,
करे जीवन में सुख संचार।
न समझो हमको अबला नार,
न करना हमपे अत्याचार ।।
देखकर हों देवीदिक दंग,
करे उत्कर्षित अंग उमंग ।।
हमीं से फूलों में लाली,
हमीं हैं मदिरा मतवाली ।
हमीं से प्रात हुई लाली,
हमीं हैं दुर्गा माँ काली ।।
हमारा जग में अद्भुत ढंग,
करे उत्कर्षित अंग उमंग।
सुब्ह की आसमाँ पर जो लाली रही
सुब्ह की आसमां पर जो लाली रही,
पूरी दुनिया की रंगत निराली रही।
खारो खस पर चमकती हुई ओस थी ,
फूल के बोझ से झुकती डाली रही।
मंदिरों में बजी घंटियाँ इक तरफ ,
मस्जिदों की अजाँ भी निराली रही।
नन्द बाबा के आँगन में लीला किए,
वो बिरज की जमीं भाग्यशाली रही।
राधे राधे जपे कृष्ण की बाँसुरी
कृष्ण राधे की जोड़ी निराली रही।
कृष्ण ने ज्ञान गीता का रण में दिया,
पार्थ की भूमिका बस सवाली रही।
तेज तूफान था सब उतरते गये,
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही।
नौकरी कर रहा है धड़ल्ले से वो
डिग्रियाँ जिसकी सारी ही जाली रही।
लगते ससुराल के लोग अच्छे बहुत,
प्यारी जीजा को छोटी ही साली रही।
बेटियाँ मार दीं नीलिमा कोख में,
बेटा होने पे बजती ही थाली रही।
राष्ट्रीय एकता पर कुंडलियाँ छंद
कैसे -कैसे देश हैं कैसे -कैसे लोग ।
फैल गया हर देश में, एक भयानक रोग ।
एक भयानक रोग, सुरंक्षा अपनी करिए ।
घर में रह कर आप, सफ़ाई से ही रहिए ।।
लापरवाही कर्म, किया इटली ने जैसे ।
दंड पा रहा विश्व, कल्पना करिए कैसे ।।
भारतवासी मना रहे, नव संवत्सर आज ।
माता दो आशीष तुम, पुलकित रहे समाज ।
पुलकित रहे समाज, न फैले ये बीमारी ।
घर -घर हो सुख शांति, हटे ये आफ़त भारी ।
ध्यान करो नवरात्र, रहो होकर बउपवासी ।
कोरोना को मात, दिलायें भारतवासी ।।
सीमा पर तैनात हैं, लाखों वीर जवान ।
घर में रह कर हम करे, उन सब का सम्मान ।उन सबका का सम्मान, बजाकर घंटा थाली ।
प्राण गँवाकर नित्य, करें सब की रखवाली।
राशन पानी ख़र्च, करें सब धीमा धीमा ।
व्रत लो सारे लोग, न तोड़े कोई सीमा ।।
सैनिक डाक्टर वेश में, दूर करे जो क्लेश ।
ईश्वर उनको मानिए, रखे नया वो वेश ।
रखे नया वो वेश, हमारा जीवनदाता ।
भारत माँ का पूत, हमारा भाग्यविधाता ।।
प्रातकाल में योग, कर्म करिये सब दैनिक ।
रक्षा करिये नित्य, स्वयं घर में बन सैनिक ।।
नारी का सम्मान हो, बेटी की हो शान ।
वो घर केवल घर नही, मंदिर उसको मान ।
मंदिर उसको मान, प्रेम से रहते सारे ।
खुशी बरसती नित्य, चमकते चाँद सितारे ।।
महके फूले बेल, खिले बगिया फुलवारी ।
नवदुर्गा का रूप, पुण्य भारत की नारी ।।