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‏”भेद मिट गए आम खास के”: डॉ रविशंकर पांडेय

‏भेद मिट गए आम खास के
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डॉ रविशंकर पांडेय

धानी धूसर
हरी दरी पर
फूले फूल सफेद कांस के
बीज बिखेर दिया
ये किसने
अंधकार में ज्यों उजास के !

ज्वार बाजरे की
खेती यह
खेती है चांदी सोने की
मौसम भी
फूला फूला है
ऋतु आई सपने बोने की।

बाढ़ और
सूखा वाले सब
बीत गए दिन भूख प्यास के !

हरे धान के
खेत झूमते
लहराए ज्यों चूनर धानी
क्वारी कच्ची धूप
क्वार की
बैठ प्यार की बुने कहानी।

वनतुलसी के
गंधज्वार में
डूब गए घर आस पास के !

कंकरीली मिट्टी में
सहसा
फूटा बादल राग रेत से
खून पसीने के
बल बूते
जाग उठे हैं भाग खेत से।

क्या हजूर अब
क्या मजूर अब
भेद मिट गए आम खास के !!

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