के.एम. अग्रवाल
सालों से मन में यह बात आती थी कि कभी आत्मकथा लिखूँ। फिर सोचा कि आत्मकथा तो बड़े-बड़े लेखक, साहित्यकार, राजनेता, फिल्मकार, अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी, वैज्ञानिक, बड़े-बड़े युद्ध जीतने वाले सेनापति आदि लिखते हैं और वह अपने आप में अच्छी-खासी मोटी किताब होती है। मैं तो एक साधारण, लेकिन समाज और देश के प्रति एक सजग नागरिक हूँ। मैंने ऐसा कुछ देश को नहीं दिया, जिसे लोग याद करें। पत्रकारिता का भी मेरा जीवन महज 24 वर्षों का रहा। हाँ, इस 24 वर्ष में जीवन के कुछ अनुभव तथा मान-सम्मान के साथ जीने तथा सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस विकसित हुआ। लेकिन कभी लिखना शुरू नहीं हो सका।
एक बार पत्रकारिता के जीवन के इलाहाबाद के अनुज साथी स्नेह मधुर से बात हो रही थी। बात-बात में जीवन में उतार-चढ़ाव की बहुत सी बातें हो गयीं। मधुर जी कहने लगे कि पुस्तक के रूप में नहीं, बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में पत्रकारिता के अनुभव को जैसा बता रहे हैं, लिख डालिये। उसका भी महत्व होगा। बात कुछ ठीक लगी और फिर आज लिखने बैठ ही गया।
गतांक से आगे…
‘मेरा जीवन’: के.एम. अग्रवाल: 76:
नीड़ का निर्माण फिर: 5
इंटर कालेज का
शिलान्यास
सन् 1998 की बात है। नेत्र सर्जन डा.राकेश कुमार (IAS) जिलाधिकारी के रूप में महराजगंज आ चुके थे। उन दिनों राजकीय कन्या हाई स्कूल यहां एक अनुदान प्राप्त इंटर कालेज के तीन चार पुराने कमरों में चलता था। भवन इतना जर्जर था कि बरसात में छत से जगह जगह पानी चूता था। लड़कियों का बैठना मुश्किल था। एक दिन इसकी प्रधानाचार्या दमयंती यादव जी, जिनसे कभी कभी कालेज में ही मुलाकात हो जाती थी, मुझसे मिलीं। वह कहने लगीं, ‘अग्रवाल जी, आप तो जानते ही हैं कि स्कूल के भवन की क्या हालत है। बरसात में दो तीन फुट की भी ऐसी जगह नहीं होती जहां पानी नहीं टपकता हो।’
उन्होंने रुक कर फिर कहा, ‘ डी.एम. साहब से आपकी अच्छी मुलाकात है। चलिए उनसे मिलकर इंटर कालेज के लिए खाली पड़ी जमीन पर निर्माड़़ कार्य कराने के लिए कहा जाय।’
मैंने कहा कि पहले आप अपनी छात्राओं को लेकर डी.एम. साहब से मिलिए और ज्ञापन दीजिए। फिर इसके बाद हम भी आपके साथ चलकर मिलते हैं। दमयंती जी ज्ञापन देने डी.एम. कार्यालय पर गयीं, लेकिन इत्तेफाक से वह कार्यालय पर मौजूद नहीं थे। उन्होंने ज्ञापन उनकी टेबिल पर रखवा दिया।
एक दिन बाद मैं प्रधानाचार्या दमयंती जी के साथ जिलाधिकारी डा.राकेश कुमार से मिलने गया। दमयंती जी ने उन्हें बताया कि राजकीय कन्या इंटर कालेज के भवन के लिए तीन चार लाख रूपये भी आकर पड़े हैं, लेकिन भवन निर्माण नहीं हो पा रहा है। डी.एम. साहब ने उस निर्माण एजेंसी का नाम जानना चाहा। जल निगम का नाम बताये जाने पर उन्होंने तुरंत जल निगम के इंजीनियर को बुलवा लिया, जिसने बताया कि भवन के निर्माण का कार्य एक दूसरे विभाग को मिला है, जिसका दफ्तर लखनऊ में ही है। उस दफ्तर का फोन नंबर नहीं पता चला तो उन्होंने तत्काल नेपाल सीमा के पास नौतनवा में स्थित सरकारी निरंजना होटल को फोन किया और उस विभाग के इंजीनियर का टेलीफोन नंबर जानना चाहा। और उन्हें तत्काल टेलीफोन नंबर मिल भी गया। उन्हें पता था कि उत्तर प्रदेश का कोई भी बड़ा अधिकारी एक बार नौतनवा (सोनौली) होकर नेपाल जरूर जाता है और वह इसी सरकारी निरंजना होटल में भी जरूर ठहरता है। इस होटल में ठहरने वाले प्रदेश के अधिकतर बड़े अधिकारियों के नंबर होते हैं।
डी.एम. डा . राकेश कुमार ने तत्काल उस इंजीनियर से फोन पर बात करके पांचवें दिन यहां आकर काम शुरू करने के लिए ‘ हां ‘ भी करा लिया। उस इंजीनियर ने यह भी बताया कि इस काम को शुरू करने के लिए सात लाख रू मिला भी हुआ है। इस प्रकार आधे पौन घंटे में ही यह तय हो गया कि पांचवें दिन से निर्माण कार्य शुरू हो जायेगा।
इसके बाद डी.एम.साहब ने तत्काल कानूनगो, लेखपाल को बुलवाया और कहा कि जिला विद्यालय निरीक्षक को साथ ले जाकर, जमीन की पैमाईश करके, जमीन उन्हें हैण्डओवर कर दें।
डी.एम. के कमरे से निकलते निकलते दमयंती जी ने धीरे से मुझसे कहा, ‘ डी.एम. साहब से कह दीजिए कि लड़कों वाले राजकीय इंटर कालेज की जमीन भी लड़कियों के कालेज को दे दें, लड़कों का कालेज जब बनेगा तब बनेगा।’ मैंने यह अनुरोध डी.एम. साहब से किया और उन्होंने तत्काल कानूनगो से कहा, ‘सभी दसों एकड़ जमीन राजकीय कन्या इंटर कालेज के लिए नाप कर दे दीजिए।’
हम दोनों तुरंत कानूनगो, लेखपाल के साथ चलकर जिला विद्यालय निरीक्षक सरजू प्रसाद को भी ले लिए और मौके पर पहुंच कर जमीन की पैमाईश होने लगी। जमीन के चारों ओर निशान के लिए गड्ढा खोदना था। मैं तुरंत अपने घर गया और कुदाल लेकर आया। गड्ढे खोदे गये। सीमेंट के पिलर काफी दूरी पर पड़े थे। मैं और ‘आज‘ अखबार के संवाददाता रवीन्द्र नाथ चौबे ने मिलकर कंधे पर ढोकर पिलरों को मौके पर गड्ढों तक पहुंचाये। बहरहाल, निशानदेही और जिला विद्यालय निरीक्षक को दस एकड़ जमीन कब्जे में देने का कार्य संपन्न हो गया। हमने एक लम्बी सांस ली। मन प्रसन्न था।
डा. राकेश कुमार IAS
अब प्रश्न था, पांचवें दिन विद्यालय भवन के शिलान्यास का। मैंने डी.एम. साहब को एक सुझाव दिया कि पढ़ने में तेज छात्राओं से इसका शिलान्यास करवाया जाय तो एक नया संदेश जाएगा। डा.राकेश कुमार ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘ कल आप मिलिए। हो सकता है, मैं कुछ और अच्छा सोचूं।’
दूसरे दिन जब डी.एम. राकेश कुमार से मिला तो उन्होंने कहा,
‘हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई चार लड़कियों से इसका शिलान्यास करवाया जायेगा।’ कोई सिक्ख परिवार महराजगंज में नहीं था तो तत्काल एक मेसेंजर को नौतनवा स्थिति एक इंटर कालेज भेजा गया और एक सिक्ख छात्रा का नाम मंगवाया गया।
छात्राओं से कालेज भवन का शिलान्यास कराते जाने की बात की जानकारी जब तत्तकालीन भाजपा विधायक चंद्र किशोर को मिली तो वह छटपटाने लगे। लेकिन उनकी हिम्मत नहीं थी कि इस संदर्भ में वह जिलाधिकारी डा.राकेश कुमार से बात कर सकते, क्योंकि वह जानते थे कि डा.राकेश नेताओं से चिढ़ते थे।
चन्द्र किशोर उन दिनों प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री भी थे। वह मंडलायुक्त आर.सी.गुप्ता के पास पहुंच गये और अपना रोना रोया कि वह सदर के विधायक हैं, कालेज का शिलान्यास उनसे करवाया जाना चाहिए लेकिन जिलाधिकारी छात्राओं से शिलान्यास करवाना चाहते हैं। मंडलायुक्त गुप्ता जी बहुत ही सीधे प्रकृति के अधिकारी थे। उन्होंने जिलाधिकारी को फोन करके कहा, ‘जाने दो, विधायक को ही शिलान्यास करने दो।’ बहरहाल, मंडलायुक्त की बात को डा.राकेश कुमार ने स्वीकार कर लिया।
17 मार्च, 1998 को विधायक, माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री चन्द्र किशोर ने राजकीय कन्या इंटर कालेज भवन का शिलान्यास किया, लेकिन मैं सिर्फ इसलिए शिलान्यास समारोह में नहीं गया क्योंकि विधायक चन्द्र किशोर ने कभी भी इस कालेज के भवन के निर्माण के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
इस प्रकार राजकीय कन्या इंटर कालेज के भवन का शिलान्यास हो गया, जो वर्षों से लटका पड़ा था। इससे एक बात साफ हो गई कि जिलाधिकारी या कोई भी उच्चाधिकारी चाहे तो विकास के कार्य तेजी से हो सकते हैं, बिना समय गंवाए।
एक बात और बता दूं। जिलाधिकारी डा.राकेश कुमार हमेशा यह सोचते रहते थे कि कौन सा ऐसा काम किया जाय, जो लोगों के हित में हो और जिले का विकास हो। वह बहुत ही सरल स्वभाव के और किसी भी काम को पूरा करने के लिए एक निर्धारित समय सीमा को वह पकड़े रहते थे। मजाल था कोई अधिकारी निर्धारित समय से अधिक समय ले ले। उनकी कार को कोई भी नागरिक हाथ दिखाकर रोक सकता था और अपनी कठिनाइयों को मौके पर ही कह सकता था। वह सचमुच बेहद ईमानदार अधिकारी थे। यही कारण है कि महराजगंज के लोग आज भी उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं।
के एम अग्रवाल:
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क्रमशः 77