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“पेड़ और हम” -2 : प्रबोध चंदोल

हमारी संस्कृति में हमारी जीवनशैली इस प्रकार की रही है कि हमारी सभी आवश्यकताएं प्रकृति से पूरी  होती रहें और प्रकृति में उपलब्ध सभी संसाधन बिना किसी हानि के सदा विद्यमान भी रहें।

प्रबोध चंदोल

भारतीय संस्कृति में पेड़ के मायने

भारतीय संस्कृति में प्रकृति से मानव का रिश्ता अटूट रहा है। प्रकृति के सान्निध्य में रहते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने प्रकृति के अनेक रहस्यों की खोज की। उन्होंने जंगल में पायी जाने वाली असंख्य जड़ी बूटियों पर परीक्षण किए और उनका मानव कल्याण के लिए उपयोग किया। धरती हो या अंतरिक्ष भारत के मनीषियों ने सभी क्षेत्रों में अध्य्यन किया और समय समय पर अपने अनुभवों को आमजन के हितार्थ उपयोग में लाने के लिए स्वंय अपने जीवन में उपयोग किया बल्कि अपने योग्य शिष्यों को हस्तांरित किया ताकि वे जनकल्याण के लिए उनका उपयोग कर सकें।

वनों में रहते हुए अनेक ऐसे लोगों ने वहां की वनस्पतिेयों पर भी असख्ंय प्रयोग किए और इन प्रयोगों के परिणामस्वरूप एकत्र किए गए ज्ञान को बाद में जनहित के उपयोग में लाया गया। चाहे वह ज्ञान वनस्पतियोें को औषधि के रूप में प्रयोग करने का हो या उनके पर्यावरणीय महत्व का हो। हमारी संस्कृति में हमारी जीवनशैली इस प्रकार की रही है कि हमारी सभी आवश्यकताएं प्रकृति से पूरी  होती रहें और प्रकृति में उपलब्ध सभी संसाधन बिना किसी हानि के सदा विद्यमान भी रहें।

हमारे पूर्वज यह भलि-भांति जानते थे कि यदि पेड़-पौधे जिंदा रहेंगे तो हम भी जीवित रहेंगे और यदि ये नष्ट हो गये तो हमारा जीवन भी समाप्त हो जाएगा। मनुष्य और पेड़ों का जीवन अन्योनाश्रित है इसीलिए हमारी संस्कृति में वनस्पतियों को जिंदा प्राणी माना गया और कभी भी इनके अनावश्यक दोहन को स्वीकृति नही दी गई।

अनेक वनस्पतियों और पेड़ों का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में औषधियों के रूप में करते रहे हैं। और इसीलिए अनेक वृक्षों को तो हम देवतातुल्य मानकर उनकी उपासना भी करते हैं। यही कारण है कि हमारे ऋषियों ने अनेक वृक्षों का सम्बन्ध मानव के जीवन से जोड़ दिया ताकि मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हुए प्रकृति के संरक्षण का काम भी करता रहे। इस तरह से सभी नो ग्रह के अपने अपने अलग अलग वृक्ष हैं। इसी प्रकार से 27 नक्षत्र हैं जिनके अलग अलग 27 वृक्ष हैं तथा 12 राशियों के भी अपने अपने अलग अलग 12 वृक्ष हैं। जो मनुष्य अपने जन्म नक्षत्र वृक्ष या अपनी राशि के वृक्ष का सेवा भाव से पालन पोषण, वर्धन और रक्षा करता है, उस मानव के जीवन मेे पुण्य की प्राप्ति होकर हर प्रकार से कल्याण होता है।

यदि किसी मनुष्य के जीवन मेें किसी ग्रह का कुप्रभाव हो गया है तो यदि वह मनुष्य उक्त ग्रह के वृक्ष का पालन पोषण, वर्धन, रक्षण और उसके सान्निध्य में रहते हुए अपना आचरण शुद्ध कर लेता है तो उसके जीवन की सभी बाधाएं व कष्ट दूर हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है।

इसी प्रकार पांच पवित्र छायादार वृक्षों के समूह को पंचवटी कहते हैं। धनवन्तरि वाटिका में अनेक औषधीय पेड़ों का रोपण, संरक्षण व संवर्द्धन किया जाता है। तीर्थंकर वाटिका में जैन तीर्थंकरों के केवली वृक्षों का रोपण किया जाता है।

जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हो चुके हैं और जिन वृक्षों के नीचे इन तीर्थंकरों को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्हें केवली वृक्ष कहा जाता है। जैन धर्म के आचार्यों का यह मानना है कि इन वृक्षों के नीचे तीर्थंकरों के ज्ञान प्राप्त करने से इनमें उनका अंश आ गया है, अतः इन वृक्षों की सेवा, दर्शन व अर्चना करने से संबन्धित तीर्थंकरों की कृपा प्राप्त होती है।

सिख धर्म में गुरूद्वारों व सरोवरों के निकट विविध उपयोगी वृक्षों को लगाने की परंपरा रही है अतः गुरू सेवा में काम आने वाले धर्मस्थल के पास स्थित वृक्ष समूहों को गुरू के बाग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुरू के नाम पर लगाए गए वृक्ष अधिक फलते फूलते हैं तथा सर्वत्र लोकहितकारी होते हैं।
अगले लेखों में हम आपको क्रमवार उपर्युक्त सभी वाटिकाओं के वृक्षों का अलग अलग परिचय देते हुए पर्यावरण में उनके महत्व तथा उनके औषधीय गुणों के बारे में भी बताएंगे।

क्रमशः

लेखक का परिचय

प्रबोध चंदोलप्रकृति एवं पर्यावरण के लिए पिछले अनेक वर्षों से समाज में कार्यरत एक प्रकृति प्रेमी, जो अब तक अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में लाखों वृक्षों का रोपण कर चुका है। आपने ’पेड़ पंचायत’ नामक संस्था की स्थापना की है ताकि इस धरती पर विलुप्त होती वृक्ष प्रजातियों को बचाकर धरती के अस्तित्व की रक्षा की जा सके। इस प्रयास में उन औषधीय पौधों को बचाने का भी संकल्प है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। भारतीय संस्कृति में किस प्रकार पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन की परंपरा है इसी पर उनके श्रंखलाबद्ध आलेख प्रस्तुत हैं।

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