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“नवग्रह में शुक्र और उसका पेड़़: गूलर” – 4 : प्रबोध चंदोल

गूलर का पेड़ बहुत पवित्र माना जाता है और इसके कई औषधीय गुण भी हैं। कहते हैं कि जहां यह पेड़ पाया जाता है, वहां की जमीन में पानी की मात्रा काफी अधिक और जमीन उपजाऊ भी होती है। जहां यह पेड़ लगा होता है, वहां सुख, शांति, समृद्धि और संपन्नता का वास होता है।

शुक्र का रंग सफेद है। इस पेड़ को भगवान दत्तात्रेय के प्रतीक के रूप में माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों के अवतार हैं।

प्रबोध चंदोल

भारतीय संस्कृति में पेड़ के मायने

नवग्रह में शुक्र (Venus) और उसका पेड़़: गूलर”

नवग्रह एक ग्रह शुक्र है। ऐसी मान्यताएं है कि इसका नाम दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य के नाम पर पड़ा है। ये भृगु ऋषि के पुत्र और भगवान शिव के घोर उपासक थे। भगवान शिव से इन्होंने अनेक वरदान प्राप्त किए थे जिनमें एक वरदान यह था कि ये मरे हुए व्यक्ति को जीवित कर सकते थे। इसी वरदान के कारण ये देव-दानव युद्ध मेें मरे दानवों को पुनः जिन्दा कर देते थे।

शुक्र ग्रह का पेड़ गूलर है परन्तु यदि किसी कारणवश गूलर का पेड़ न मिले तो आप नवग्रह वाटिका में उसके स्थान पर अंजीर के पेड़ को भी लगा सकते हैं। परंतु यहां हम केवल गूलर की बात ही करेंगे। गूलर का पेड़ बहुत पवित्र माना जाता है और इसके कई औषधीय गुण भी हैं। कहते हैं कि जहां यह पेड़ पाया जाता है, वहां की जमीन में पानी की मात्रा काफी अधिक और जमीन उपजाऊ भी होती है। जहां यह पेड़ लगा होता है, वहां सुख, शांति, समृद्धि और संपन्नता का वास होता है। इस पेड़ पर अनेक पक्षियों का बसेरा होता है जिसमें अधिकतर चिड़ियां होती हैं। इस पेड़ के पूजन अर्चन से शत्रुओं पर विजय के योग बनते हैं। शुक्र का रंग सफेद है। इस पेड़ को भगवान दत्तात्रेय के प्रतीक के रूप में माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों के अवतार हैं।

नवग्रह में इस ग्रह का स्थान पूर्व दिशा में चन्द्रमा व बुद्ध के मध्य होता है तथा चूंकि वनस्पतियों में इस ग्रह का प्रतीक गूलर का पेड़ है, अतः नवग्रह वाटिका में उसी स्थान पर शुक्र ग्रह के प्रतीक गूलर के वृक्ष का रोपण किया जाता है। इसके सेवा-संरक्षण, दर्शन, आदि से आपके जीवन में सुख, समृद्धि आदि आएगी ऐसी मान्यता है।

गूलर के औषधीय गुण 

इस वृक्ष के हर भाग में कुछ न कुछ औषधीय गुण होता है तथा इसका उपयोग अनेक बीमारियों में जैसे कि पीलिया, पित्त, दस्त, मधुमेह, त्वचा के जलने व त्वचा संबन्धी अन्य रोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है। पेड़ के पत्ते, छाल, फल, दूध व जड़ का रस आदि सभी औषधियों के रूप में पारंपरिक तरीकों से प्रयोग में आते रहे हैं। इसकी छाल को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर पेस्ट बना लें और फोड़े या मच्छर के काटने से बने डंक पर लगाएं और उसे सूखने दें। कुछ घंटे बीत जाने पर प्रभावित जगह यह पेस्ट पुनः लगाएं। यही पेस्ट शरीर में सूजन होने पर भी लगाया जा सकता है।

मुंह में छाले, अल्सर या किसी प्रकार का संक्रमण होने पर गूलर के पेड़ की 10 ग्राम छाल को 400 ग्राम पानी में कुछ देर उबालकर उसमें थोड़ी सी फिटकरी मिला लें और पानी को छानकर उसके कुल्ले करें तो आराम मिलेगा। त्वचा पर पिंपल, मुहांसे या चित्ती होने पर इसकी छाल के अन्दर के भाग को घिसकर उसका पेस्ट बना लें और उसे प्रभावित भाग पर लेप करने से आराम मिलता है। त्वचा पर जले हुए के निशान को मिटाने के लिए गूलर के फल का पेस्ट बनाकर उसमें थोड़ा शहद मिलाकर नियमित रूप से लगाने से त्वचा ठीक हो जाती है। जल जाने से खाल को ठीक करने के लिए गूलर की छाल और पत्तों का पेस्ट प्रभावित भाग पर लगाना चाहिए।

रक्त पित्त होने या नासिका से खून बहने पर इसके 10 से 15 नए कोमल पत्ते लेकर उन्हें पीसकर उनका रस निकाल लें और उसमें मिश्री मिलाकर नियमित लेने से लाभ होता है। पेचिश होने पर इसके नए कोमल पत्तों का 1-1.5 मिली ली. रस लेने से लाभ होता है। पेट में दर्द होने पर आराम के लिए गूलर के सूखे फलों में अजवायन और सेंधा नमक मिलाकर पाउड़र बना लें और उसका एक छोटा चम्मच दिन में दो बार पानी के साथ लेने से आराम आता है। इसके पके फलों को खाने से मधुमेह और कब्ज में आराम आता है। इसके पत्ते या फल को तोड़ने पर एक दूध जैसा पदार्थ निकलता है, इस पदार्थ को घाव, चोट या बवासीर के स्थान पर लगाने से आराम होता है। इसके फलों में लोह तत्व की अधिकता होती है।

अतः जिन लोगों में खून की कमी हो उन्हें इसके फल खाने से लाभ होता है। इसके पत्ते जीवाणुरोधी होते हैं अतः कुछ पत्ते लेकर उनके छोटे छोटे टुकड़े करके पानी में उबालें, जब पानी का रंग बदल जाए तो उसे ठंडा करके उस पानी से घावों को धोने से जीवाणु नष्ट होते हैं।

इस प्रकार गूलर के पेड़ का अनेक प्रकार से उपयोग होता रहा है, अतः हमें इस पेड़ के संरक्षण पर अपना ध्यान देना चाहिए।

क्रमशः

लेखक का परिचय

प्रबोध चंदोलप्रकृति एवं पर्यावरण के लिए पिछले अनेक वर्षों से समाज में कार्यरत एक प्रकृति प्रेमी, जो अब तक अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में लाखों वृक्षों का रोपण कर चुका है। आपने ’पेड़ पंचायत’ नामक संस्था की स्थापना की है ताकि इस धरती पर विलुप्त होती वृक्ष प्रजातियों को बचाकर धरती के अस्तित्व की रक्षा की जा सके। इस प्रयास में उन औषधीय पौधों को बचाने का भी संकल्प है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। भारतीय संस्कृति में किस प्रकार पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन की परंपरा है इसी पर उनके श्रंखलाबद्ध आलेख प्रस्तुत हैं।

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